आज भी माँ कहती है-
“बेटी, कल्पनालोक में विचरण करना छोड़ दे,
क्रियाशील हो जा, ज़िन्दगी और भी खूबसूरत दिखेगी”
और मैं हमेशा की तरह सच्चे मन से माँ से ही नहीं
अपने आप से भी वादा करती हूँ
कि धरातल पर उतर कर
ज़िन्दगी के नए मायने तलाश करूँगीं
लेकिन ये तलाश कहाँ पूरी होती है.
ताउम्र चलती है और हम भटकते हैं
हर पल इक नई राह पर चल कर
जाने क्या पाने को....













