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मंगलवार, 29 मार्च 2011

चित्रों में हाइकु (त्रिपदम)



 प्यारी सी बेटी न्यूशा

चंचल  नैन
हर पल उड़ते हैं
पलकें पंख 

गुलाबी से हैं
आज़ादी के नग़में
सुरीले सुर

खुतकार सी
ये उंगलियाँ रचें
तस्वीर नई


वीरान पथ
निपट अकेली मैं
कोहरा गूँगा 

नीले सपने
गहरे भेद भरे
विस्तार लिए


साकी सा यम
मौत अंगूरी न्यारी
रूप खिलेगा/नशा चढ़ेगा/मोक्ष मिलेगा

मुत्यु प्रिया सी
इक दिन आएगी
गले मिलेंगे

(खुतकार=पेंसिल)


सोमवार, 20 अप्रैल 2009

पदम तले त्रिपदम

हरिद्वार के पतजंलि योगपीठ में प्रकृति के साथ बिताए कुछ पल यादगार बन गए। बेटे वरुण ने पूरे आश्रम में घूम घूम कर सभी फूल पौधों के चित्र खींचें. उसकी स्वीकृति लेने के बाद इन तस्वीरों में त्रिपदम सजा दिए.


 

पदम तले 

त्रिपदम पले हैं 

सुगन्ध भरे



नवयौवना
गुलानारी रूपसी
नई नवेली 




न्यारा है रूप
 चित्रकला अनोखी
रंगों की माया



  बिन्दु चक्र में
 सम्मोहन की छाया 
भरा रहस्य


   
स्नेह के धागे
पीले केसर जैसे
अति सुन्दर 




मैं और तुम
उपवन के माली
फूल खिले हैं

                                                                               


बाँहें फैलाए
धरा खड़ी निहारे
नीला आकाश





काँटो का संगी 
गुलाब नाज़ुक सा 
गुलों का गुल




धरा सजी है 
लाल पीले रंग से 
पत्ते मुस्काए




गुलाबी गोरी
 प्रहरी तने हुए
नाता गहरा



हरा कालीन
 टंके हैं बेल-बूटे
बेमोल कला

  




धुंधले साए
 छटेंगे इक दिन
खिलेंगे फूल 




रंग रंगीला
महकता जीवन
कण्टकहीन



दृढ़-निश्चयी
 जीने का लक्ष्य पाएँ
ठान लो बस



दहका रवि
हो गए लाल पीले
खिलते फूल



गुलाबी बाँहें
 नभ को छूना चाहें
हँसी दिशाएँ




मंगलवार, 10 जून 2008

तस्वीरों का सफर ... !

दमाम से कुछ दूरी पर देहरान में एक नया मॉल खुला. शाम को जब तक पहुँचते सला का वक्त हो गया था... सो हमने विंडो शौपिंग का ही सबसे पहले आनंद लिया... उसी दौरान अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें लेने का मन हो गया... बस किसी तरह इच्छा पूरी कर ही ली ..






देखा हमने
मॉल देहरान का
नया नवेला








पल दो पल
बातों में मशगूल
पिता औ' पुत्र







दोस्त मिले दो
दम लेने को बैठे
कॉफी थे पीते








सला का वक्त
पर्दे में गपशप
दुकाने बंद





फैलती खुश्बू
सिनामन रोल की
मुँह में पानी













बुर्के में बंद
ख्वाहिशे हैं हज़ार
पूरी हों अब

सोमवार, 12 मई 2008

हाइकु (त्रिपदम)










कैसे लिखूँ मैं
बुद्धि जड़ हो गई
मन बोझिल

सोचा था मैंने
सफ़रनामा न्यारा
दर्ज करूँगी

लेखनी रुकी
थम गए हैं शब्द
गला रुँधा है

कविता हो न
लेख लिख न पाऊँ
बात बने न

अर्धांग रूठा
निपट अकेली माँ
दर्द गहरा

साथी जो छूटा
मन-पंछी व्याकुल
रोता ही जाए

समझूँ कैसे
माँ के अंतर्मन को
छटपटाऊँ

सरल नहीं
लिख पाना कुछ भी
हाल बेहाल

देखा जो मैंने
मैना जब चहकी
मन बहला

माँ ने भी देखा
ठंडी सी आह भरी
नैनों में नीर

पंछी निर्मोही
कर्म करे अपना
मोह न जाने

उड़ जाते हैं
चींचीं करते बच्चे
पाते ही पंख

यादों के साए
खुश्बू बनके छाएँ
करती इच्छा

शनिवार, 15 मार्च 2008

जल बिन मानव !



त्रिपदम चित्रों में --

जीवन जले
जल बिन मानव
कैसे जिएगा ?







बहता जल
जल से जीवन है
कीमत जानो

बुधवार, 12 मार्च 2008

त्रिपदम (हाइकु) चित्र में







सिहरी काँपीं
आगोश मे सकून
सूरज तापे



(दम्माम में 8-10 क्लिक करने के बाद ही मेरी मन-चाही मन-भावन तस्वीर उतर पाई)

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

तस्वीरों में सफर की कहानी





साउदी अरब में कुछ बड़े बड़े कम्पाउंड छोड़कर अधिकतर घर कुछ इस तरह माचिस की डिब्बी से होते हैं. जिसका कुछ हिस्सा खोलकर धूप और ताज़ी हवा का थोड़ा मज़ा लेने की कोशिश की जाती है.


धूप का एक भी टुकड़ा घर के अन्दर आ जाए तो समझिए कि हम बहुत भाग्यशाली हुए अन्यथा पति की दया पर निर्भर कि किसी दोपहर को धूप लगवाने परिवार को बाहर ले जाएँ.
हमने अपने घर के एक कमरे में जैसे ही सूरज के सुनहरे आँचल को फैलते देखा.... हाथ जोड़कर सर झुका दिया......






नाश्ते में चटकदार रंग के ताज़े फल खाने से पहले तस्वीर लेना न भूलते. हर बार अलग अलग ऐंगल से तस्वीर खींच कर फिर ही खाते.
उसके बाद घर के कोने कोने से यादों की बेरंग धूल को ढूँढ ढूँढ कर साफ करते.
बन्द घर में भी ऐसी महीन धूल कहीं न कहीं से दनदनाती हुई आ ही जाती है... सुबह भगाओ तो दोपहर को फिर आ धमकती है...दोपहर अलसाई सी धूल शाम तक फिर कोने कोने पर चढ़ जाती है.... लकड़ी का कुत्ता जो अम्बाला शहर से कुछ दूर एक गाँव नग्गल की कोयले की एक टाल से लाया गया है, जिसके पैरों तले धूल बिछी पड़ी है...

जिस तरह रेतीली हवाएँ कभी आहिस्ता से आकर सहला जाती हैं तो कभी तेज़ी से आकर झझकोर जाती हैं , उसी तरह हरा भरा पेड़ जब ठूँठ हो जाता है तो दिल को झझकोर डालता है... लगता जैसे पेड़ का अस्थि पंजर अपनी बाँहें फैला कर शरण माँग रहा हो....






जड़ में भी चेतन का अनुभव होता है....
चित्त को चंचल करती इस जड़ को ही देखिए...
आपको क्या दिखता है.....


बस इसी तरह घर भर में डोलते सुबह से शाम
हो जाती. दोनों बेटे तो अपने कमरे में अपनी अपनी पढ़ाई में मस्त रहते. हम कभी मोबाइल पर उर्दू रेडियो का स्टेशन पकड़ने की कोशिश करते तो कभी अंग्रेज़ी और अरबी गाने सुनकर मन बहलाते. किताबें तो आत्मा में उतरने वाला अमृत रस जो जितना पीते उतना ही प्यास और बढ़ती...
एक हाथ में 'दा सीक्रेट' तो दूसरे हाथ में 'वुमेन इन लव' ..... एक रोचक तो दूसरी नीरस....लेकिन पढ़ना दोनो को है सो पढ़ रहे हैं. जल्द ही उस विषय पर कुछ न कुछ ज़रूर लिखेंगे.
सुबह से जलती मोमबत्ती आधी हो चुकी थी ...... लौ का रंग भी गहरा हो गया था .... नई मोमबत्ती की तलाश शुरु हुई ... !
हमें ही नहीं बेटों को भी अपनी अपनी मेज़ पर जलती मोमबत्ती रखना अच्छा लगता है. मन में कई बार सवाल उठता है कि तरह तरह की मोम बत्तियाँ जलाने के पीछे क्या कारण हो सकता है... !!

गुरुवार, 1 नवंबर 2007

हाईकू : चित्रों में


कटते वृक्ष
ज़मीन सिसकती
गहरी पीड़ा.





पिचका पेट
भूख से धँसी आँखें
भविष्य ज़र्द




विवशता थी
दायरों का घेरा है
बँधना ही था.





युद्ध की आग
बिलखे बचपन
कुछ न सूझे.



(गूगल द्वारा चित्र)