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रविवार, 24 अगस्त 2014

फूल और पत्थर




मेरे घर के गमले में 
खुश्बूदार फूल खिला है
सफ़ेद शांति धारण किए 
कोमल रूप से मोहता मुझे .... 
छोटे-बड़े पत्थर भी सजे हैं 
सख्त और सर्द लेकिन
धुन के पक्के हों जैसे 
अटल शांति इनमें भी है 
मुझे दोनों सा बनना है 
महक कर खिलना 
फिर चाहे बिखरना हो 
सदियों से बहते लावे में 
जलकर फिर सर्द होकर 
तराशे नए रूप-रंग के संग 
पत्थर सा बनकर जीना भी है !!