जाने किस झोंक में मैंने
जौंको को अपनी पीठ पे छोड़ दिया !
मीठा मीठा दर्द जिन्होंने मेरे खून में घोल दिया
जाने क्यों उठती आहों को मैंने आने से रोक लिया.
आँख मींच कर लीच को मैंने बाँहों में भींच लिया
साँस खींच कर आते दर्द को खून में सींच लिया.
कुछ लीचें मेरी अपनी हैं, मेरी मज्जा से ही बनी हैं
ये लीचें कुछ न्यारी हैं जो मेरे ही खून से सनी हैं.
इन पंक्तियों को पढ़कर सबसे पहला भाव मन में क्या आ सकता है ?
उसे टिप्पणी के रूप में देंगे तो आभार होगा.