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मंगलवार, 18 नवंबर 2025

डाक बक्सा ( To Letter Box)

To Letter Box 

तेरा लाल रंग कहीं पीला पड़ा 

तो कहीं काला और बदरंग हुआ 

और तू 

खाली खाली वीरान सा 

खामोश खड़ा 

शायद सोचता होगा 

एक दिन 

कोई तो आएगा और 

ज़ंग लगा ताला तोड़ कर 

फिर से आबाद कर देगा तुझे 

लो आज तुम्हारी तम्मना पूरी हुई 

आज सरहद को भुला कर 

एक मियां बीबी आए 

अपने  खत औ खिताबत के साथ 

प्यार मुहब्बत का पैगाम लेकर 

सरहद वागा भी जी उठा

डाकिया बन कर 

खतों  की खुशबू फैलाने लगा 

उनमें कहीं आंसुओं का खारापन 

तो कहीं इश्क की खुशबू महकने लगी 

यही नहीं हुआ डाक बक्से 

अनगिनत एहसासों में डूबे लफ़्ज 

भी जी उठे 

और छा गई रौनक तुझ पर 

सुर्ख हुआ समूचा वजूद तेरा 

हो सके तो बताना , एहसास कराना 

मुझे ही नहीं सारी कायनात को 

खतो  के जरिए मुहब्बत जगाना 

इसे कहते हैं 

खतो  के जरिए मुहब्बत जगाना 

इसे कहते हैं 


इंतज़ार में 

मीनाक्षी धन्वंतरि 


सोमवार, 18 मई 2020

ताउम्र भटकना



आज भी माँ कहती है-
“बेटी, कल्पनालोक में विचरण करना छोड़ दे, 
क्रियाशील हो जा, ज़िन्दगी और भी खूबसूरत दिखेगी” 
और मैं हमेशा की तरह सच्चे मन से माँ से ही नहीं 
अपने आप से भी वादा करती हूँ
कि धरातल पर उतर कर 
ज़िन्दगी के नए मायने तलाश करूँगीं  
लेकिन ये तलाश कहाँ पूरी होती है. 
ताउम्र चलती है और हम भटकते हैं 
हर पल इक नई राह पर चल कर 
जाने क्या पाने को....  

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

सीमा का रखवाला

बादल, बिजली, बारिश घनघोर
और महफ़ूज़ घरों में हम

सैनिक डटे सीमाओं पर
हर पल रखवाली में व्यस्त
रखवाली में व्यस्त, कभी ना होते पस्त
दुश्मन हो,  या हो क़ुदरत का अस्त्र

अचल-अटल हिमालय जैसे डटे हुए
 बर्फ़ीले तूफ़ानों में गहरे दबे हुए
आकुल-व्याकुल से नीचे धँसे हुए
घुटती साँसों से लड़ते बर्फ़ में फँसे हुए

उठती गिरती साँसों का क्रम  रुक जाता
सीमा पर लडते लड़ते ग़र गोली खाके मरता
दुश्मन को मार के मरता अमर कहाता
अकुला के सोचे तड़पे,  सीमा का रखवाला

निष्ठुरता क़ुदरत की हो या हो मानव की
करुणा में बदले, स्नेहमयी सृष्टि हो जाए
सीमाहीन जगत के हम  प्रेमी हों जाएँ
दया भाव हो सबमें हर कोई ऐसा सोचे !!

"मीनाक्षी धंवंतरि" 

मंगलवार, 21 जून 2016

प्रेम - Unconditional



सागर की लहरों से बतियाती 
रेत पर लकीरें खींचती पीठ करके बैठी 
कोस रही थी चिलचिलाती धूप को 
सूरज की तीखी किरणें तीलियों सी चुभ रहीं थीं 
 हवा भी लापरवाह अलसाई  हुई कहीं दुबकी हुई थी 
बैरन बनी चुपके से छिपकर कहीं से देख रही होगी
सूरज के साथ मिल कर मुझे सता कर खुश होती है 
पल भर को मैं डरी-सहमी  फिर घबरा के सोचा 
क्या हो अगर धूप और  हवा दोनों रूठ जाएँ 
दूसरे ही पल चैन की साँस लेकर सोचा मैंने 
सूरज, चाँद , सितारे , हवा और पानी सब 
 जब तक साँस है तब तक सबका साथ  है 
जन्म-जन्म के साथी निस्वार्थ भाव से 
करते हम सबको प्यार बिना शर्तों के !