मैं बहते खून की खूबसूरती को निहार रही थी....चमकता लाला सुर्ख लहू.... फर्श पर गिरता भी खूबसूरत लग रहा था....अपनी ही उंगली के बहते ख़ून को अलग अलग एंगल से देखती आनन्द ले रही थी....
अचानक उस खूबसूरती को कैद करने के लिए बाएँ हाथ से दो चार तस्वीरें खींच ली....लेकिन अगले ही पल एक अंजाने डर से आँखों के आगे अँधेरा छा गया....भाग कर अपने कमरे में गई... सूखी रुई से उंगली को लपेट कर कस कर पकड़ लिया.... उसी दौरान जाने क्या क्या सोच लिया....
एक पल में ख़ून कैसे आँखों में चमक पैदा कर देता है और दूसरे ही पल मन को अन्दर तक कँपा देता है .... सोचने पर विवश हो गई कि दुनिया भर में होने वाले ख़ून ख़राबे के पीछे क्या यही कारण हो सकता है...
बहते ख़ून की चमक...तेज़ चटकीला लाल रंग...उसका लुभावना रूप देखने की लालसा.... फिर दूसरे ही पल एक डर...गहरा दुख घेर लेता हो .... मानव प्रकृति ऐसी ही है शायद...
पल में दानव बनता, पल मे देव बनता मानव शायद इंसान बनने की जद्दोजहद में लगा है......
क्या सिर्फ मैं ही ऐसा सोचती हूँ ......पता नहीं आप क्या सोचते हैं... !!!!!
मन भटका
जंगली सोचें जन्मी
राह मिले न
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खोजे मानव
दानव छिपा हुआ
देव दिखे न
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बँधी सीमाएँ
साँसें घुटती जाती
मुक्ति की चाह