खिड़की के बाहर खड़े पेड़
हमेशा मुझे लुभाते हैं....
उनकी जड़ें कितनी गहरी होगीं..
मानव सुलभ चाहत खोदने की ...
उनका तना कितना मज़बूत होगा ...
इच्छा होती छूकर उन्हें कुरेदने की ...
उनकी शाखाओं में कितना लचीलापन होगा...
पकड़ कर उन्हें झुका लूँ
या झूल जाऊँ उन संग
खिड़की के बाहर खड़े पेड़
हमेशा मुझे बुलाते हैं..
कभी सर्द कभी गर्म
हवाओं का रुख पाकर
अचानक शाख़ों में छिपे पंछी चहचहाते
जबरन ध्यान तोड़ देते हैं मेरा.....!!!