Translate
शनिवार, 21 मई 2016
बच्चों जैसा उतावलापन था ! लाइसेंस लेते वक्त !
शनिवार, 28 जून 2014
छोटे बेटे के जन्मदिन पर पूरा परिवार एक साथ !
कल दोपहर विजय रियाद से पहुँचे , एक साथ पूरे परिवार का मिलना ही जश्न जैसा हो जाता है. एक साथ मिल कर बैठना और पुरानी यादों को ताज़ा करने का अपना ही आनन्द है. मदर टेरेसा की एक 'कोट' याद आ रही है.
" What can you do to promote world peace? Go home and love your family" Mother Teresa
बड़े बेटे ने इलैक्ट्रोनिक्स में इंजिनियरिंग की लेकिन छोटे का रुझान कला के क्षेत्र में था इसलिए उसने विज़ुयल ग्राफिक्स की डिग्री ली. किसी भी काम को अच्छी तरह से करने की दीवानगी ही सफलता की ओर ले जाती है फिर काम चाहे कैसा भी हो. अगर अपनी मनपसन्द का काम हो तो उसे करने का आनन्द दुगुना हो जाता है.
मुझे याद आता है ग्यारवीं में स्कूल की कैंटीन का मेन्यू बोर्ड को अपनी कलाकारी से निखार कर बिरयानी, समोसे और पैप्सी के रूप में पहली कमाई का ज़िक्र किया तो खुशी हुई थी. उन्हीं दिनों मॉल में 15 दिन के लिए जम्बो इलैक्ट्रोनिक्स में नौकरी की, जिससे माता-पिता और पैसे की कीमत का और ज़्यादा पता चला. अपनी कमाई से अकूस्टी ड्रम सेट खरीदा , उसे बेचकर कैमरा .... इस तरह पढ़ाई के दौरान कई बार बीच बीच में छोटे छोटे काम करके अपनी कमाई का मज़ा लेता बहुत कुछ सीखता चला गया.
आज अपनी ही मेहनत से अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहा है. नित नया सीखने की ललक देख कर खुशी होती है. कुछ बच्चों को पता होता है किस रास्ते पर चल कर वे अपने लक्ष्य को पा सकते हैं. विद्युत भी उनमें से है जिसे बचपन से ही पता था कि उसे क्या करना है.
कल और आज की कुछ तस्वीरें कहती हैं उसकी कहानी ....
![]() |
| नन्हा फोटोग्राफर |
![]() |
| बचपन की कलाकारी |
![]() |
| कला की दुनिया में अभी बहुत सीखना है |
बुधवार, 14 मई 2014
बेटे का मुबारक जन्मदिन
शुक्रवार, 4 जून 2010
मेरे घर के आँग़न में
एक जून , मंगलवार की रात शारजाह एयरपोर्ट उतरे.. ज़मीन पर पैर रखते ही जान में जान आई... जब भी हवाई दुर्घटना की खबर पढ़ते तो एक अजीब सी बेचैनी मन को घेर लेती... फिर धीरे धीरे मन को समझा कर सामान्य होने की कोशिश करते.... लेकिन रियाद से दुबई आने से पहले एक बुरा सपना देखा था जिसमें दो हवाई जहाज आसमान में आपस में टकरा कर गिर जाते हैं और हम कुछ नहीं कर पाते...जड़ से आकाश की ओर देखते रह जाते हैं...
पैसे की बचत की दुहाई देकर हमने पतिदेव से कहा कि बस से चलते हैं जो बहुत आरामदायक होती हैं...लेकिन 12 घंटे के सफ़र की बजाए डेढ़ घंटे का सफ़र ज़्यादा सही लगा उन्हें और अंत में हवाई यात्रा ही करनी पड़ी.... सालों से सफ़र करते हुए हमेशा ईश्वर पर विश्वास किया ..ऐसे कम मौके आए जब हमने विश्वास न किया हो और बाद में लज्जित होना पड़ता...सोचते सोचते दुखी हो जाते कि कितने एहसानफ़रामोश हैं जो उस पर शक करके भी सही सलामत ज़मीन पर उतर आते हैं...
मंगलवार की रात नीचे उतरे तब भी ऐसा ही महसूस हुआ... फिर से उस असीम शक्ति से माफ़ी माँगी और छोटे बेटे को गले लगा लिया जो लेने आया था.....एयरपोर्ट शारजाह में और घर दुबई में ...दूरी लगभग 35-40 किमी....पहली बार बेटा ड्राइविंग सीट पर था और पिता पिछली सीट पर मेरे साथ बैठे थे.....120-130 की स्पीड पर कार भाग रही थी लेकिन डर नहीं लगा शायद धरती का चुम्बकीय आकर्षण....ममता की देवी माँ की गोद में बच्चे को बिल्कुल डर नहीं लगता लेकिन पिता की गोद में बच्चा फिर भी डरता है... उसका अतिशय बलशाली होना भी शायद बच्चे को असहज कर देता है, शायद मुझे धरती माँ भोली भाली से लगती है और आसमान गंभीर पिता जैसे लगते....
11 बजे के करीब घर पहुँच गए....अपनी तरफ से दोनो बच्चों ने घर को साफ सुथरा रखा हुआ था... बड़े बेटे के हाथ की चाय पीकर सारी थकान ग़ायब हो गई....फिर सिलसिला शुरु हुआ छोटी छोटी बातों पर ध्यान देने का.... डिनर का कोई इंतज़ाम नहीं था... बड़े ने लेबनानी खाना और छोटे ने 'के.एफ.सी' पहले ही खा लिया था...छोटा बेटा हमें घर छोड़ कर किसी काम से बाहर निकल गया, यह कह कर कि वह जल्दी ही खाना लेकर लौटेगा लेकिन महाशय पहुँचे देर से....
जब भी आवाज़ ऊँची होने को होती है तो जाने कैसे दिल और दिमाग में चेतावनी की घंटी बजने लगती है और हम दोनो ही शांत हो जाते हैं.... बच्चे खुद ब खुद समझ कर माफ़ी माँगने लगते हैं....मुस्कुरा कर हमारी ही कही बातें हमें याद दिलाने लगते हैं कि इंसान तो कदम कदम पर कुछ न कुछ नया सीखता ही रहता है और माहौल हल्का फुल्का हो जाता .... मुक्त भाव से खिलखिलाते परिवार को देख कर मुक्त छन्द के शब्द भी भावों के साथ मिलजुल कर खिलखिला उठते......
मेरे घर के आँगन में...
छोटी छोटी बातों की नर्म मुलायम दूब सजी
कभी कभी दिख जाती बहसों की जंगली घास खड़ी
सब मिल बैठ सफ़ाई करते औ’ रंग जाते प्रेम के रंग....
मेरे घर के आँगन में......
नन्हीं मुन्नी खुशियों के फूल खिले हैं..
काँटों से दुख भी साथ लगे हैं...
खुशियाँ निखरें दुख के संग ...
मेरे घर के आँगन में .....
नहीं लगे हैं उपदेशों के वृक्ष बड़े..
छोटे सुवचनों के हरे भरे पौधे हैं....
खुशहाली आए सुवचनों के संग..
पता नहीं क्यों बड़ी बड़ी बातों के
खट्टे खट्टे नीम्बू नहीं लगते..
छोटी छोटी बातों की खुशबू तो है...
मेरे घर के आँगन में....
उड़ उड़ आती रेत जलन चुभन की
टीले बनने न देते घर भर में
बुहारते सरल सहज गुणों से
मेरे घर के आँग़न में
उग आते मस्ती के फूल स्वयं ही
उड़ उड़ आते आज़ादी के पंछी
आदर का दाना देते सबको
मेरे घर के आँग़न में
विश्वास का पौधा सींचा जाता
पत्तों को गिरने का डर नहीं होता
प्रेम से पलते बढ़ते जाते..
मेरे घर के आँगन में....
बहुत पुराना प्रेम वृक्ष है छायादार
सत्य का सूरज जगमग होता उस पर
देता वो हम को शीतलता का सम्बल हर पल
गुरुवार, 21 मई 2009
बच्चों का दुस्साहस या उत्सुकता
विद्युत के बचपन का दोस्त अदनान कनाडा से रियाद जाते वक्त दुबई दस दिन हमारे पास ठहरा... द्स दिन में दस कहानियाँ ....हर दिन की एक नई दास्तान...
दुबई शहर से दूर रेगिस्तान में बाबलशाम नाम का एक रिसोर्ट है जहाँ दोनो बच्चे अपने दोस्तों के साथ गए....कुछ देर बाद वहाँ से और आगे रेगिस्तान में ज़हरीले साँपों को देखने निकल गए...अंधेरी रात...लेकिन साँपों को देखने की चाहत ....... आधी रात तक रेतीले टीलो के आसपास घूमते रहे कि शायद एकाध साँप दिख जाए... आखिरकार बच्चों को सफलता मिली........
विद्युत के लैपटॉप में दो फिल्में देख ली...जो देखा उसे आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ......
बच्चे साँप को देख कर जितने खुश हुए...उतना ही उनकी आवाज़ में हैरानी , खुशी और डर भी महसूस किया...
(विद्युत ने फिल्म ली, आवाज़ अदनान की है... कार चलाने वाला दोस्त राहिल जो कार की हैडलाइट्स से रोशनी कर रहा था. )
शुक्रवार, 15 मई 2009
नीर क्रीड़ा
नीर क्रीड़ा कहें या नीर नृतक अभी पोस्ट का नाम सोच ही रहे थे कि वरुण की याद आई जो इसकी गहराई में जाकर सोचेगा कि सबसे पहले तो इंसान की लयाकत को सलाम करता , फिर इलैक्ट्रिक आर्ट का शीर्षक देने की बात करता क्यों कि बिजली और संगीत की धुन पर पानी की खूबसूरती को चार चाँद जो लग गए...
इंसान ने ही अरब सागर को दुबई के अन्दर खींचकर कैनाल को और सुन्दर रूप दे दिया .... फिर छोटी छोटी बातों पर किसका ध्यान जाता है....
आप विद्युत द्वारा बनाई गई इस नीर नृतक की फिल्म ज़रूर देखिए...
मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009
सफ़र के कुछ सफ़े - 1








