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शनिवार, 28 जून 2014

छोटे बेटे के जन्मदिन पर पूरा परिवार एक साथ !

आसमान की ऊँचाइयों को झूने की चाहत 

पिछले महीने बड़े बेटे वरुण का जन्मदिन था. आज छोटे बेटे विद्युत का जन्मदिन है. अपनी डिजिटल डायरी में विद्युत का ज़िक्र दिल और दिमाग में उठती प्यार की तरंगों को उसी के नाम जैसे ही बयान करने की कोशिश कर रही हूँ .....
कल दोपहर  विजय रियाद से पहुँचे , एक साथ पूरे परिवार का मिलना ही जश्न जैसा हो जाता है. एक साथ मिल कर बैठना और पुरानी यादों को ताज़ा करने का अपना ही आनन्द है. मदर टेरेसा की एक 'कोट' याद आ रही है.
" What can you do to promote world peace? Go home and love your family"  Mother Teresa 

बड़े बेटे ने इलैक्ट्रोनिक्स में इंजिनियरिंग की लेकिन छोटे का रुझान कला के क्षेत्र में था इसलिए उसने विज़ुयल ग्राफिक्स की डिग्री ली. किसी भी काम को अच्छी तरह से करने की दीवानगी ही सफलता की ओर ले जाती है फिर काम चाहे कैसा भी हो. अगर अपनी मनपसन्द का काम हो तो उसे करने का आनन्द दुगुना हो जाता है.
मुझे याद आता है ग्यारवीं में स्कूल की कैंटीन का मेन्यू  बोर्ड को अपनी कलाकारी से निखार कर बिरयानी, समोसे और पैप्सी के रूप में पहली कमाई का ज़िक्र किया तो खुशी हुई थी. उन्हीं दिनों मॉल में 15 दिन के लिए जम्बो इलैक्ट्रोनिक्स में नौकरी की, जिससे माता-पिता और पैसे की कीमत का और ज़्यादा पता चला. अपनी कमाई से अकूस्टी ड्रम सेट खरीदा , उसे बेचकर कैमरा .... इस तरह पढ़ाई के दौरान कई बार बीच बीच में छोटे छोटे काम करके अपनी कमाई का मज़ा लेता बहुत कुछ सीखता चला गया.

आज अपनी ही मेहनत से अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहा है. नित नया सीखने की ललक देख कर खुशी होती है. कुछ बच्चों को पता होता है किस रास्ते पर चल कर वे अपने लक्ष्य को पा सकते हैं. विद्युत भी उनमें से है जिसे बचपन से ही पता था कि उसे क्या करना है.

कल और आज की कुछ तस्वीरें कहती हैं उसकी कहानी ....


नन्हा फोटोग्राफर 



आज भी हाथ में कैमरा है 





बचपन की कलाकारी 

कला की दुनिया में अभी बहुत सीखना है

ढेर सारे प्यार और आशीर्वाद के साथ विद्युत की पसंद का एक गीत ......





बुधवार, 14 मई 2014

बेटे का मुबारक जन्मदिन

  

भूली बिसरी यादों की महक के साथ बेटे का जन्मदिन मनाना भी अपने आप में एक अलग ही अनुभव है...जैसे माँ पर लिखते वक्त कुछ नहीं सूझता वैसे ही बच्चों पर लिखना भी आसान नहीं... माँ और बच्चे का प्यार बस महसूस किया जा सकता है.

 जैसे अभी कल की ही बात हो , नन्हा सा गोद में था फिर उंगली पकड़ चलना सीखा, फिर दौड़ने लगा 


वक्त ने सख्त इम्तिहान लिया जिसमें अव्वल आया. जद्दोजहद स्कूल से शुरु हुई , दर्द ने जकड़ा तो बैसाखी का सहारा लिया जिसने स्कूल से लेकर कॉलेज तक साथ दिया.


2008 में डिग्री लेने के बाद एक नई ज़िन्दगी जीने की राह चुनी. 2009 में दर्द से निजात पाने के लिए अपने दोनों हिप जोएंटस एक साथ बदलवा दिए. सर्जरी के दो महीने बाद ही अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के लिए तैयार था. बस उसके बाद तो फिर रुकने का नाम नहीं. 
फिर तो टीन एज के सपने, जवानी की मस्ती, बेफिक्री का जीना सब कुछ करते हुए अब भी एक ही जुमला सुनने को मिलता है कि अभी तो मस्ती शुरु हुई है.


बेटे की आत्मशक्ति पर जितना यकीन है उतना ही यकीन दुआओं के जादुई असर पर है. रियाद, दुबई ईरान और अपने देश के परिवार , मित्रजन ..खासकर ब्लॉग जगत के कई मित्र जिन्हें भुलाना मुमकिन नहीं. उनकी दुआओं का असर है तभी आज बेटा ज़िन्दगी के अलग अलग पड़ावों का आनन्द लेता हुआ आगे बढ़ रहा है. 



शनिवार, 14 मई 2011

आज के दिन एक फूल खिला ...


हमारे घर के आँगन में खिले दो फूल 

आज बड़े बेटे वरुण का जन्मदिन है.....सुबह सुबह विजय सोए हुए वरुण के माथे पर हाथ फेर कर निकल गए ऑफिस के लिए......दरवाज़ा खुलते ही सूरज की तीखे तेवर को सहन न कर पाई और वहीं से विदा करके उन्हें अन्दर आ गई...सुबह के सवा छह बजे थे लेकिन सूरज को देख कर लग रहा था जैसे दोपहर हो गई हो....बेटे के कमरे में गई.....उसे निहारा...मन ही मन आशीर्वाद दिया......
रसोईघर में गई...पानी पीकर कुछ पल डाइनिंग टेबल पर बैठी रही.....बेटे को कहा भी था कि अगर छोटे  भाई के साथ अपना जन्मदिन मनाना हो तो चला जाए लेकिन जाने क्या सोच कर रुक गया......कभी कभी अपने ही बच्चों के मन की बात जान नहीं पाते हम...बेचैनी सी होने लगती है ....इसी सोच में डूबी अपने कमरे में आई...
लैपटॉप ऑन किया...जीमेल...फेसबुक....ब्लॉगज़.....खुले थे...
उन्हें मिनिमाइज़ करके स्क्रीन पर लगे दो गुलाबी फूलों को निहारने लगी...हमारे आँगन में खिले दो गुलाब के फूल.... उस घर में चारों तरफ फूल पौधे थे...खुला और बहुत बड़ा घर था... उस घर से मीठी यादें जुड़ी थीं तो कुछ बेहद कड़वी ....जिन्हें भूलना नामुमकिन है......कुछ पढ़ने लिखने का जी नहीं चाहा...उठी...रोज़ की दिनचर्या से फारिग हो कर योग करना शुरु किया... आज उसमें भी दिल नहीं लग रहा था...अपने मोबाइल पर भजन लगा कर आँखें बन्द कर लीं.....
दो भजन सुनकर फिर से स्क्रीन के सामने आ बैठी.....चमकती स्क्रीन के उस पार कितने ही लोग बैठे हैं लेकिन क्या कोई मेरे मन का हाल जान सकता है....मुँह चिढ़ाती स्क्रीन जैसे कह रही हो.... ‘मुझे क्या पता’
उठ कर फिर बेटे के कमरे में गई... प्यार से थपकाया... जन्मदिन की मुबारक देकर उसे उठने के लिए कह कर नाश्ता बनाने में किचन में आ गई.....चाय के साथ कड़क टोस्ट वरुण को अच्छा लगता है....हम दोनों ने किचन में ही लैपटॉप रख कर विद्युत से बातें करते हुए चाय  नाश्ता किया....मन कुछ हल्का हुआ....विद्युत की मस्ती कुछ अलग है....मम्मी पापा और चाचू के साथ बाहर खाना खाने जाना...जब यहाँ आओगे तो एक बार फिर  दोस्तों के साथ मस्ती करेंगे....
दोनों बेटों के साथ बातचीत करने से लगा जैसे कुछ ही दूरी पर सब एक साथ बैठे थे... अपने कमरे में आकर कुछ ब्लॉग़ पढ़े ..कुछ टिप्पणियाँ कीं.... फिर सोचा कि कुछ लिखा जाए....

वरुण ने मुझे देखा... कीबोर्ड पर उंगलियाँ रुक रुक चल रही हैं..मेरा दिल और दिमाग कहीं खोया है..... शायद अतीत की उन मीठी यादों में जहाँ से वापिस लौटने का जी न चाहे..... समझ गया वह.....पास आकर खड़ा हो गया.... हल्की मुस्कान चेहरे पर.... आँखें बोलती सी..........
मेरे बारे में क्या है लिखने को...... '25 साल का एक ........' मुझे देख कर आगे कुछ न कह पाया.... मैं वहीं जड़ हो गई....कहना चाहती थी....’क्या कहते हो.....क्यों कहते हो......’ कुछ कहने से पहले ही जैसे वह समझ गया..... “सच है मम्मी..... यही सच है ...... जानता हूँ समाज के अनुसार मुझे भी अपने पापा की तरह नौकरी करके परिवार बनाने की बात सोचनी चाहिए...एक पुराने ढर्रे सी ज़िन्दगी जीने की सीख को अपना लेना चाहिए.....पर मैंने अपने मन की खिड़्कियाँ बन्द कर ली हैं.....
बचपन था वो....जब 12 साल की उम्र में दर्द ने जकड़ा लिया था ...... स्कूल और कॉलेज उसी दौरान खत्म हुए....... मुझे कुछ याद नहीं..... शायद मैं याद रखना ही नहीं चाहता.... बस याद है दर्द से मुक्ति पाकर दो साल का मस्त जीवन ..... छोटे भाई के साथ आधी आधी रात तक की मस्ती....हर रोज़ की आवारागर्दी.... सबके साथ
कदम से कदम मिला कर चलने की खुशी... नए पंखों के साथ उड़ने का आनन्द सिर्फ मैं ही महसूस कर सकता हूँ .....हर रोज़ किसी नई राह पर जाने की ललक..... बस यही याद है मुझे......जैसे सारा जीवन जी लिया हो.....
सर्जरी के बाद से अब तक नहीं सोचा था..... सोचना ही नहीं चाहता था......लेकिन आज सोचता हूँ ..... खुशी के पल जितने मिले...उन्हें सहेज लिया....अब उनसे ताकत लेकर नए जीवन की शुरुआत करनी है....बस आपका आशीर्वाद चाहिए...
बेटा बोलता जा रहा था और मैं सुन रही थी....शायद हर इंसान की अपनी एक दुनिया होती है...जिसमें वह अपने तरीके से सोचता है,,,जीता है... दुखी होता है...खुश होता है....माँ हूँ फिर भी मानती हूँ कि शायद बेटे के मन का कोई कोना है जो मैं नहीं देख पाई...क्या पता....कई कोने हो अनदेखे....फिर भी दुआ है कि वह हर पल भरपूर जी ले....


गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

जन्मदिन मुबारक हो माँ ...!




दुलारी अपने माँ बाबूजी की आखिरी संतान और सातवीं बेटी थी ...सारे घर की लाडली....दुलारी के पैदा होने से पहले से ही दूर के एक रिश्तेदार आते..हर बार एक लड़की का नाम ले लेते कि इसे बहू बना कर ले जाऊँगा....दुलारी की माँ हँस पड़ती..अरे भई पहले बेटा तो पैदा करो फिर बहू की सोचना....पंडितजी तो धुन के पक्के थे ...उन्हे तो पक्का विश्वास था कि इसी घर की बेटी उनके घर की बहू बनेगी.....
एक दिन ईश्वर ने पंडितजी की सुन ही ली... लाखो मन्नतो के बाद बेटा पैदा हुआ... अपने नाम को सार्थक करेगा... अपने पिता का नाम रोशन करेगा...सोच कर नाम रखा गया ओम.... उधर ओम के पैदा होने के बाद तोषी और दो साल बाद दुलारी का जन्म हुआ...
पडितजी बहुत खुश थे.....अपने सात साल के बेटे ओम को लेकर फिर गए दुलारी की माँ से मिलने... दुलारी की माँ की मेहमाननवाज़ी पूरे खानदान मे मशहूर थी.... चाय नाश्ते का इंतज़ाम किया...फिर इधर उधर की बाते होने लगी.... नन्हा ओम गली के दूसरे बच्चों के साथ गुल्ली डंडा खेलने में मस्त हो गया.... लाख बुलाने पर भी खाने पीने की चीज़ों पर नज़र तक न डाली....
दुलारी अपनी दो साल बडी बहन तोषी के साथ लडको को खेलते देख रही थी...ओम के पिता ने जैसे ही दोनो
लडकियो को देखा ... लपके अपने बेटे ओम की तरफ.... ‘अच्छा बेटा ...बता तो सही तू किससे शादी करेगा.... ‘
दो बार बताने पर भी कुछ न बोला ओम....शायद उसे शादी का मतलब ही पता नहीं था.....पडितजी कहाँ कम थे...
झट से बोले...’अच्छा तो ऐसा कर...दोनो मे से जो तुझे अच्छी लगती हो उसके सिर  पर डंडा रख दे... ओम ने एक पल दोनो को देखा और दुलारी के सर पर डंडा रख छुआ कर भाग गया फिर से खेलने....
बस इस तरह हो गई बात पक्की....दुलारी और ओम की.....दुलारी ने अभी दसवीं पास ही की थी कि उधर से शादी की जल्दी होने लगी..पंडितजी को लगा कि वे ज़्यादा दिन ज़िन्दा नहीं रहेंगे...इसलिए दुनिया से छह महीने पहले कूच करने से पहले ही झट मंगनी पट शादी कर दी...
दोनो बँध गए जन्मजन्म के बँधन में.... तीन बच्चे हुए... दो लडकियाँ ...एक लडका...मिलजुल कर सुख दुख साथ साथ बाँट कर चलते रहे.... ज़िन्दगी के ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर दोनो एक साथ बढते रहे आगे.... बच्चों को उनकी मंज़िल तक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोडी..... सब अपने अपने घर परिवार में सुख शांति से खुश थे .... ओम और दुलारी जानते थे कि बच्चे हर मुश्किल का डट कर सामना करेंगे..... 
एक दिन ज़िन्दगी जीने की जंग मे ओम हार गए.... रह गई अकेली दुलारी .... जीने की चाहत न होने पर भी जीना....मुहाल था...लेकिन बस नहीं था.... मन को मुट्ठी मे कस कर बाँधे दुलारी जीने के हर पल की कोशिश में जुटी है....


गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

या तो दीवाना हँसे या अल्लाह जिसे तौफ़ीक दे


          पिछली पोस्ट को याद करते हुए सोचा कि अपना जन्मदिन प्यारे प्यारे मुस्कुराते बच्चों की तस्वीरों के साथ मनाया जाए......



किसी शायर ने सही कहा है ----

 “या तो दीवाना हँसे या अल्लाह जिसे तौफ़ीक दे
वरना इस दुनिया में आकर मुस्कुराता कौन है. 

 

 

यह है शरारती आर्यान, जानता है कि भारत के लोगों को नमस्ते करके आशीर्वाद लिया जाता है.



यकीन मानिए चपाती बनाने का हुनर काबिले तारीफ है... यह ईरानी नानुवा जो नान ए हिन्द बेहद पसन्द करता है.

 
छोटे भाई के बच्चे नन्ही नटखट ऑनेला के साथ सयाना समर्थ


छोटी बहन की बेटी आरुषी कहती है पोज़ बनाना कोई मुझसे सीखे


  छोटा बेटा विद्युत बचपन से ही अदाकार... 
                                                

अदाकारी भी और कलाकारी भी

 

 

 
बड़ा बेटा वरुण भागता तो कोई पकड़ न पाता  


कहता है अब मैं मस्ती करने के मूड में हूँ


गुरुवार, 14 मई 2009

काश ..... सरहदें न होतीं..... !

गर सरहदें न होती तो इस वक्त बेटा वरुण भी अपने पापा के साथ दमाम से दुबई आ रहा होता. पूरा परिवार लम्बे अर्से के बाद एक साथ होता....एक साथ मिलकर उसका जन्मदिन मनाते..... लेकिन ज़रूरी नहीं कि जो हम चाहें सब वैसा ही हो.....
अक्सर ऊँची शिक्षा के लिए बच्चे विदेशों में जाते ही हैं, अपने देश से , अपने माता-पिता, भाई-बहन से दूर चले जाते हैं...
लेकिन एक देश से दूसरे देश में दाखिल होने के लिए जद्दोजहद करनी पड़े , नौकरी लायक बेटे को विदेश में घर अपना होने पर भी वीज़ा आसानी से न मिले, इस छटपटाहट को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता....
यह दर्द सिर्फ एक का नहीं , कई लोगों का है.....
कई परिवारों के पुरुष विदेश में हैं तो स्त्री देश में घर परिवार की देखरेख करती है, कहीं पुरुष के सहारे पूरा परिवार को छोड़ कर औरत चली आती है विदेश में.... रोज़ी रोटी के कारण , परिवार के पालन पोषण के कारण कितने ही परिवार बिखर जाते हैं....
कुछ दिन पहले समुद्र के किनारे बैठी एक फीलिपीनो औरत को रोते देखा तो रहा न गया... पूछ ही लिया.....'मिस, आर यू ओके?' भीगी आँखों से उसने हमारी तरफ देखा तो उन आँखों मे बहते दर्द को देख न पाए... फौरन आँसू पोछ कर उसने कहा,
आइ एम सिताह....अपनत्व की मुस्कान देखते ही यादों का सैलाब उमड़ पड़ा...
ड्राइवर पति की कमाई से गुज़ारा नहीं हुआ तो पति के सहारे चार बच्चों को छोड़ कर फीलिपीन से दुबई आ गई.......
चलते वक्त पाँच साल के सबसे छोटे बेटे की आँखों को वह कभी नहीं भुला पाई... उन आँखों का दर्द उसके साथ उसकी कब्र तक जाएगा ... ऐसा कहते ही वह फिर रो उठी....
छोटी से एलबम मेरी तरफ बढ़ा दी.....बच्चों और पति की तस्वीर दिखाते हुए कहने लगी कि सबसे बड़ी बेटी अब कॉलेज में है, फीस न भेजने के कारण पढ़ाई अगले साल तक रोकनी पड़ी...
एक साथ दो दो जगह बेबी सिटिंग का काम करके भी गुज़ारा मुश्किल है.... काफी देर तक वह अपने परिवार के बारे बताती रही...
कुछ ही देर में घड़ी देखकर उठ गई कि उसे मैडम और बच्चों को पियानो क्लास खत्म होने पर पिक करना है...सिताह की व्यथा के आगे अपनी कथा तो धूमिल लगने लगी......
सोचने लगी हमारा परिवार तो सिर्फ 4-5 सालों से ही अलग हुआ है... फिर समय समय पर हम मिलते भी रहते हैं....
वरुण के पास साउदी वीज़ा था सो पापा के पास चला गया और हम रेज़िडेंस वीज़ा होने के कारण छोटे बेटे विद्युत के पास आ गए.. सिताह की याद आते ही अपनी परेशानियाँ तो उसके दुख के आगे बहुत कम लगने लगी..... फिर दोनो बेटे अपनी अपनी समझ के अनुसार हमारे मन के संताप को दूर करते हैं...
एक बेटा अगर माँ को चिंता मुक्त करता है तो दूसरा बेटा पिता को नए नए उपाय बताकर उनकी थकान हर लेता है.
दम्माम से 200 कि.मी. दूर अल हफूफ में नए प्रोजेक्ट पर जाने के लिए होटल रुकना और नए घर की तलाश शुरु कर देना...आसान नहीं था... जाना जाता है कि अल हफूफ नाम का शहर साउदी अरब का सबसे गर्म इलाका माना जाता है... फिर भी बला की गर्मी में घर ढूँढ लिया गया...पेपर बने..एडवांस का पैसा दे दिया गया...अब बस हमें पहुँच कर घर बदलना था .....
अचानक खबर आई कि हैड ऑफिस वापिस लौटा जाए , वहाँ ज़रूरत है... सब छोड़ छाड़ कर परिवार को लेकर रियाद जाना होगा.... सुनकर एक पल के लिए सकते में आ गए....... फिर खुशी हुई क्योंकि सालों से हम उसी शहर में रहे थे... 5 साल बाद फिर से उसी शहर में अपने परिचित मित्रों के पास लौटना खुशी की ही बात थी.... अब नए सिरे से फिर से रियाद जाकर एक घर की तलाश शुरु करनी होगी....
अब तो हम कहते हैं कि सारी दुनिया हमारा आशियाना है.... !!
आशियाने के एक कोने में बेटा वरुण है जिसे हम इस पार से प्यार और आशीर्वाद भेज रहे हैं.... अपने देश की पूर्वी दिशा से रचना मौसी ने प्यार और आशीर्वाद भेजा तो उनके साथ और भी कई प्यार करने वाले और शुभकामनाएँ भेजने वाले साथ हो लिए...... तो जंगल में मंगल हो गया.... सूखे रेगिस्तान में प्यार की वर्षा होने लगी.....!