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मंगलवार, 13 सितंबर 2011

परिवर्तन को सहज स्वीकार किया...

जीवन गतिशील है सोच लिया.... परिवर्तन को सहज स्वीकार किया ...
ब्लॉग को नया रूप  दिया....सफ़ेद दीवारों पर नीला  रंग किया ...
बदले रूप को देखा तो .......
आसमानी रंग का प्रतिबिम्ब सजा कर लहराता  सागर याद आया... 
सागर की चंचल लहरों को अपना सुनहरी रूप रंग देता  सूरज भाया ... 
निस्वार्थ भाव से जलता सूरज देखा जब गीत पुराना इक याद आया....
जलते सूरज का गीत सुना तो ...... 
सत्यवादी  हरिश्चन्द्र तारामति के संग-संग नन्हें बालक का जादू छाया ... 


गुरुवार, 21 मई 2009

बच्चों का दुस्साहस या उत्सुकता

हर उम्र में बच्चे कुछ न कुछ नया जानना चाहते हैं...ज्यों ज्यों बच्चे बड़े होते है...उनकी उत्सुकता भी बढ़ती जाती है...किशोरावस्था में तो दुस्साहसी हो जाते हैं.... डर तो जैसे जानते ही नही........ इस उम्र में जोश तो होता है लेकिन होश खो बैठते हैं।
विद्युत के बचपन का दोस्त अदनान कनाडा से रियाद जाते वक्त दुबई दस दिन हमारे पास ठहरा... द्स दिन में दस कहानियाँ ....हर दिन की एक नई दास्तान...

दुबई शहर से दूर रेगिस्तान में बाबलशाम नाम का एक रिसोर्ट है जहाँ दोनो बच्चे अपने दोस्तों के साथ गए....कुछ देर बाद वहाँ से और आगे रेगिस्तान में ज़हरीले साँपों को देखने निकल गए...अंधेरी रात...लेकिन साँपों को देखने की चाहत ....... आधी रात तक रेतीले टीलो के आसपास घूमते रहे कि शायद एकाध साँप दिख जाए... आखिरकार बच्चों को सफलता मिली........

विद्युत के लैपटॉप में दो फिल्में देख ली...जो देखा उसे आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ......
बच्चे साँप को देख कर जितने खुश हुए...उतना ही उनकी आवाज़ में हैरानी , खुशी और डर भी महसूस किया...





(विद्युत ने फिल्म ली, आवाज़ अदनान की है... कार चलाने वाला दोस्त राहिल जो कार की हैडलाइट्स से रोशनी कर रहा था. )

शुक्रवार, 15 मई 2009

नीर क्रीड़ा

छोड़ो कल की बातें , कल की बात पुरानी.... आज हम दुबई के सबसे बड़े दुबई मॉल में 'डांसनिंग फाउण्टैन' देख कर आए, दुबई की सबसे ऊँची ईमारत बुर्ज दुबई के सामने अलग अलग भाषाओ के गीतों पर झूमते हुए पानी को देख कर हम भी झूम उठे...
नीर क्रीड़ा कहें या नीर नृतक अभी पोस्ट का नाम सोच ही रहे थे कि वरुण की याद आई जो इसकी गहराई में जाकर सोचेगा कि सबसे पहले तो इंसान की लयाकत को सलाम करता , फिर इलैक्ट्रिक आर्ट का शीर्षक देने की बात करता क्यों कि बिजली और संगीत की धुन पर पानी की खूबसूरती को चार चाँद जो लग गए...
इंसान ने ही अरब सागर को दुबई के अन्दर खींचकर कैनाल को और सुन्दर रूप दे दिया .... फिर छोटी छोटी बातों पर किसका ध्यान जाता है....
आप विद्युत द्वारा बनाई गई इस नीर नृतक की फिल्म ज़रूर देखिए...

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

ईरान के नन्हे आर्यान का हिन्दी प्रेम



पिछले दिनों पहली बार दिल और दिमाग ब्लॉग जगत से पूरी तरह से आज़ाद था... एक नन्हें नटखट बच्चे में गज़ब का आकर्षण, जिसने अपनी मीठी प्यारी बातों से ऐसा मन मोह लिया कि बाकि सब भूल गया... हाथ जोड़कर नमस्ते करके सबका मन मोह लेता और अपनी सब बातें मनवा लेता...
हमसे वादा ले लिया कि अगली बार मिलने पर उसे राजकुमार आर्यान और
धर्मवीर जैसी ही पोशाक तोहफे में लाकर देनी है.
प्यार के रिश्तों में धर्म, देश , रहन-सहन, खान-पान और भाषा बाधा नहीं बनते... उत्तरी ईरान के अली और लिडा से दोस्ती ऐसी हुई कि अब परिवार का ही एक हिस्सा हैं.... पिछले दिनों लिडा अपने छोटे बेटे के साथ कुछ दिन रहने आई...... छोटा बेटा आर्यान तीन साल का है जो हिन्दी सीखने की खूब कोशिश करता है..... छोटा 'ए' बिग 'बी' का दीवाना है.... अमिताभ बच्चन की फिल्में तो दीवानगी से देखता ही है... कुछ हिन्दी सीरियल हैं जिनके टाइटल गीतों को भी गुनगुनाता है.... राजकुमार आर्यान, धर्मवीर और मै तेरी परछाईं जैसे सीरियल देखना नही भूलता .... देसी घी से चुपड़ी चपाती और दाल का दीवाना आर्यान मनपसन्द सीरियल शुरु होते टीवी के आगे खड़ा हो जाता है.....
हिन्दी का क, ख, ग ना जानते हुए भी आर्यान को सुर में गुनगुनाते हुए देखकर हम हैरान रह गए ...
कुछ छोटे छोटे वीडियो जोड़कर एक मूवी बनाई है...आप भी देखिए नन्हे राजकुमार आर्यान को और सुनिए उसका गुनगुनाना......




सोमवार, 21 जुलाई 2008

यादों का दर्द .... बैंग बैंग ... !

दो दिन पहले मम्मी का फोन आया तो अब तक उनकी सिसकियाँ भूलतीं नहीं..... जीवन साथी के बिना रहने का दर्द... तीनों बच्चों की ममता... छटपटाती माँ समझ नहीं पाती कैसे उड़ कर जब जी चाहे अपने साथी से मिले और कोसे कि क्यों अचानक छोड़ चला गया.... मरहम से बच्चे दूर दूर ...कैसे उन्हें एक साथ मिल पाए... एक बेटी दिल्ली में...एक बेटी दुबई में..एक बेटे सा दामाद साउदी अरब में.. . और खुद सात समुन्दर पार बेटे के साथ जिससे दूर होना भी आसान नहीं... चाह कर वहाँ से निकलना आसान नहीं... पोता दादी का दीवाना.... जितने दिन दादी दूर..उतने दिन पोता बीमार....
बड़ी बेटी ही नहीं मैं माँ की दोस्त भी हूँ.... .... कई बार पुरानी यादों का पिटारा खोल खोल कर दिखा चुकी मम्मी की एक याद आज फिर ताज़ा हो गई.... पिछले दिनों एक अंग्रेज़ी फिल्म 'किल बिल' देखी... जिसमें ज़रूरत से ज़्यादा मारकाट थी लेकिन फिर भी हमें उस मारकाट के नीचे दबा भावात्मक पक्ष भी देखने को मिला ... यहाँ फिल्म की समीक्षा करने की बजाय बात उस फिल्म के एक गीत की है जो हमें बेहद पसन्द है... और मम्मी की यादों से कहीं जुड़ा सा पाती हूँ......
बात उन दिनों की है जब मम्मी पाँच साल की थी तब छह सात के डैडी अपने पिताजी के साथ उनके घर गए थे मिलने.... दूर के रिश्तों का तो हमें पता नहीं लेकिन कुछ ऐसा ही था और अक्सर दोनो परिवार एक दूसरे से मिलते जुलते थे। उस दिन कुछ अनोखा हुआ था... कुछ बच्चे एक साथ मिल कर गुल्ली डंडा खेल रहे थे.... छह सात साल के एक लड़के से उसके पिता ने पूछा , "बेटा ,,, तुम्हें 'अ' या 'ब' में कौन ज़्यादा अच्छी लगती है ? " लड़के ने पहले पिता को फिर उन दोनों लड़कियों को देखा ... अचानक अपने हाथ का डंडा 'अ' के सिर पर रख दिया... बस बात पक्की हो गई... लड़के के पिता ने कहा ....आज से यह 'अ' बिटिया हमारी अमानत आपके पास.... जल्दी ही हम अपनी बहू बना कर ले जाएँगे......रानी बिटिया को राजा बेटा राज कराएगा.... 'अ' से अम्मी बन गई हमारी प्यारी सी...

'किल बिल' फिल्म का 'बैंग बैंग' गीत सुनकर पता नहीं क्यों डैडी की याद आ गई जो मम्मी को अचानक कुछ कहे बिना सदा के लिए छोड़ कर चले गए.... बचपन की यादों से लेकर आखिरी पल की यादें...पल-पल एक-एक याद गोली की तरह सीधा सीने को चीरती सी निकल जाती हैं.... और मैं चाह कर भी कुछ नहीं पाती....




I was five and he was six
We rode on horses made of sticks
He wore black and I wore white
He would always win the fight

Bang bang, he shot me down
Bang bang, I hit the ground
Bang bang, that awful sound
Bang bang, my baby shot me down.

Seasons came and changed the time
When I grew up, I called him mine
He would always laugh and say
"Remember when we used to play?"

Bang bang, I shot you down
Bang bang, you hit the ground
Bang bang, that awful sound
Bang bang, I used to shoot you down.

Music played, and people sang
Just for me, the church bells rang.

Now he's gone, I don't know why
And till this day, sometimes I cry
He didn't even say goodbye
He didn't take the time to lie.

Bang bang, he shot me down
Bang bang, I hit the ground
Bang bang, that awful sound
Bang bang, my baby shot me down...

बुधवार, 25 जून 2008

हमारे नन्हे मुन्ने दोस्त......

हम यहाँ दमाम में और हमारे नन्हे मुन्ने दोस्त दुबई में.. अर्बुदा का फोन आया कि बच्चे हर रोज़ स्कूल से आते जाते हमारे दरवाज़े की ओर नज़र भर देख कर सोचते हैं कि मीनू आंटी आज भी नही आयी . अपनी मम्मी से सवाल करते हैं तो एक ही जवाब मिलता है कि जल्दी आ जायेंगी..वरुण विद्युत अपने पापा से मिलने गए हैं... पापा से ...? विजय अंकल से ...? हाँ जी ...अर्बुदा के कहने पर थोडी देर हैरान परेशान से होते है .. फ़िर अचानक याद आती है...फ़िर दुबारा एक ही सवाल पूछने लगते हैं.... मीनू आंटी कब वापिस आएगी.... जल्दी आ जायेगी....कहते हुए अर्बुदा अपने घर की ओर बढ़ जाती है तो बच्चे भी पीछे चुपचाप चल पड़ते हैं..
दिन में एक दो बार उनके साथ खेल ना लो , अर्बुदा और हमें बात करने की इजाज़त नही मिलती... बच्चों को शायद प्यार लेना आता है...दिल और दिमाग के तार जल्दी ही प्यार करने वालों से मिल जाते हैं... इला खासकर कभी हमारी गोदी में तो कभी अर्बुदा की गोद में चढ़ जाती है... उसे देखते ही ईशान भी कहाँ पीछे रहता है... बातों का पिटारा उसके पास भी बहुत बड़ा है...(ऐसे ही कहा जाता है कि औरतें ज्यादा बोलती हैं... असल में पुरूष ही ज़्यादा बोलते हैं यह तो एक सर्वे में सिद्ध हो चुका है) ... खैर हम चाय लेकर बैठते हैं, अभी गपशप की सोचते हैं कि बच्चे हमारे पास और अर्बुदा दूर से मुस्कुरा कर बस देखती रह जाती है कि कब उसकी बारी आयेगी...हम दोनों बातचीत करने की कितनी ही बार कोशिश कर लें लेकिन जीत बच्चों की होती है...
खैर हम उनकी तस्वीरों से दिल बहलाते रहे और सोचते रहे काश देशो में कोई सीमा न होती और न कोई कागजी औपचारिकता ....नन्हे मुन्ने दोस्तों को कैसे समझायें कि अब हम बड़े हो गए हैं... बड़े होकर हम सब ऐसे ही बन जाते हैं...!!!!!!!

आप मिलेंगे हमारे दोस्तों से .......!! मिलेंगे तो फ़िर से बचपन में लौटने का मन करेगा .... !!!



रविवार, 2 दिसंबर 2007

पाँव बने ममता भरे हाथ !!

दोनों हाथ खोकर भी हिम्मत न हारने वाली लड़की ने विवाह ही नहीं किया बल्कि माँ बनकर यह भी दिखा दिया कि जहाँ चाह है , वहाँ राह भी निकल आती है. साफ सुथरे पैर जो हाथ बने हैं , उनका हुनर आप स्वयं देखिए...


गुरुवार, 29 नवंबर 2007

विछोह का दर्द और उसका उपाय

अभी अभी टी.वी. पर सदा के लिए बिछुड़े अपने बेटे के लिए शेखर सुमन जी की आँखें नम होते देखीं, इसी के साथ याद आया नीरज जी और 21 वर्षीय दीपक जो आशुतोष 'मासूम' के छोटे भाई हैं, उनका असमय इस दुनिया से विदा हो जाना.
जो इस दुनिया से चले जाते हैं उनके लिए शायद मृत्यु नव जीवन पाने का प्रकाशपुंज सा है लेकिन मृत्यु अंधकार से भरा कोई शून्य-लोक उनके लिए बन जाता है जो पीछे रह जाते हैं.
हम अपने प्रियजनों को सदा के लिए खोकर गहरी पीड़ा के अन्धकार में डूब जाते हैं. मुझे आज भी याद आता है पापा का हमें छोड़ कर चले जाना ऐसा दर्द दे गया था जो एक पल भी सहन नहीं होता था. अपने देश से दूर , अपनों से दूर उस दर्द को सहने का एकमात्र उपाय मिला अंतर्जाल पर एक लिंक जिसे पढकर या उसमें कुछ संगीतमय वीडियो देखकर मन शांत होता.
सोचा कि आपसे दिल मे उठे दर्द को दूर करने का उपाय बाँटा जाए.

http://www.selfhealingexpressions.com/goddess_meditation.html
( नारी किसी भी रूप में आने वाले कष्टों को दूर करने में सहायक होती है)

http://www.selfhealingexpressions.com/starshine.html
(विस्तृत आकाश में अनगिनत तारों को देखकर मन अजीब सी शांति पाता है)

http://www.selfhealingexpressions.com/earth_meditation.html
(प्रकृति के साथ जुड़ने पर भी शांति और शक्ति मिलती है )

सोमवार, 26 नवंबर 2007

नारी मन के कुछ कहे , कुछ अनकहे भाव !



मानव के दिल और दिमाग में हर पल हज़ारों विचार उमड़ते घुमड़ते रहते हैं. आज कुछ ऐसा ही मेरे साथ हो रहा है. पिछले कुछ दिनों से स्त्री-पुरुष से जुड़े विषयों को पढकर सोचने पर विवश हो गई कि कैसे भूल जाऊँ कि मेरी पहली किलकारी सुनकर मेरे बाबा की आँखों में एक चमक आ गई थी और प्यार से मुझे अपनी बाँहों में भर लिया था. माँ को प्यार से देख कर मन ही मन शुक्रिया कहा था. दादी के दुखी होने को नज़रअन्दाज़ किया था.
कुछ वर्षों बाद दो बहनों का एक नन्हा सा भाई भी आ गया. वंश चलाने वाला बेटा मानकर नहीं बल्कि स्त्री पुरुष मानव के दोनों रूप पाकर परिवार पूरा हो गया. वास्तव में पुरुष की सरंचना अलग ही नहीं होती, अनोखी भी होती है. इसका सबूत मुझसे 11 साल छोटा मेरा भाई था जो अपनी 20 साल की बहन के लिए सुरक्षा कवच बन कर खड़ा होता तो मुझे हँसी आ जाती. छोटा सा भाई जो बहन की गोद में बड़ा होता है, पुरुष-सुलभ (स्त्री सुलभ के विपरीत शब्द का प्रयोग ) गुणों के कारण अधिकार और कर्तव्य दोनों के वशीभूत रक्षा का बीड़ा उठा लेता है.
फिर जीवन का रुख एक अंजान नई दिशा की ओर मुड़ जाता है जहाँ नए रिश्तों के साथ जीवन का सफर शुरु होता है. पुरुष मित्र, सहकर्मी और कभी अनाम रिश्तों के साथ स्त्री के जीवन में आते हैं. दोनों में एक चुम्बकीय आकर्षण होता है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.
फिर एक अंजान पुरुष धर्म का पति बनकर जीवन में आता है. जीवन का सफर शुरु होता है दोनों के सहयोग से. दोनों करीब आते हैं, तन और मन एकाकार होते हैं तो अनुभव होता है कि दोनों ही सृष्टि की रचना में बराबर के भागीदार हैं. यहाँ कम ज़्यादा का प्रश्न ही नहीं उठता. दोनों अपने आप में पूर्ण हैं और एक दूसरे के पूरक हैं. एक के अधिकार और कर्तव्य दूसरे के अधिकार और कर्तव्य से अलग हैं , बस इतना ही.
अक्सर स्त्री-पुरुष के अधिकार और कर्तव्य आपस में टकराते हैं तब वहाँ शोर होने लगता है. इस शोर में समझ नहीं पाते कि हम चाहते क्या हैं? पुरुष समझ नहीं पाता कि समान अधिकार की बात स्त्री किस स्तर पर कर रही है और आहत स्त्री की चीख उसी के अन्दर दब कर रह जाती है. कभी कभी ऐसा तब भी होता है जब हम अहम भाव में लिप्त अपने आप को ही प्राथमिकता देने लगते हैं. पुरुष दम्भ में अपनी शारीरिक सरंचना का दुरुपयोग करने लगता है और स्त्री अहम के वशीभूत होकर अपने आपको किसी भी रूप में पुरुष के आगे कम नहीं समझती.
अहम को चोट लगी नहीं कि हम बिना सोचे-समझे एक-दूसरे को गहरी चोट देने निकल पड़ते हैं. हर दिन नए-नए उपाय सोचने लगते हैं कि किस प्रकार एक दूसरे को नीचा दिखाया जाए. यह तभी होता है जब हम किसी न किसी रूप में अपने चोट खाए अहम को संतुष्ट करना चाहते हैं. अन्यथा यह सोचा भी नहीं जा सकता क्यों कि स्त्री और पुरुष के अलग अलग रूप कहीं न कहीं किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े होते हैं.
शादी के दो दिन पहले माँ ने रसोईघर में बुलाया था. कहा कि हाथ में अंजुलि भर पानी लेकर आऊँ. खड़ी खड़ी देख रही थी कि माँ तो चुपचाप काम में लगी है और मैं खुले हाथ में पानी लेकर खड़ी हूँ. धीरज से चुपचाप खड़ी रही..कुछ देर बाद मेरी तरफ देखकर माँ ने कहा कि पानी को मुट्ठी में बन्द कर लूँ.
मैं माँ की ओर देखने लगी. एक बार फिर सोच रही थी कि चुपचाप कहा मान लूँ या सोच समझ कर कदम उठाऊँ. अब मैं छोटी बच्ची नहीं थी. दो दिन में शादी होने वाली है सो धीरज धर कर धीरे से बोल उठी, 'माँ, अगर मैंने मुट्ठी बन्द कर ली तो पानी तो हाथ से निकल जाएगा.'
माँ ने मेरी ओर देखा और मुस्कराकर बोली, "देखो बेबी , कब से तुम खुली हथेली में पानी लेकर खड़ी हो लेकिन गिरा नहीं, अगर मुट्ठी बन्द कर लेती तो ज़ाहिर है कि बह जाता. बस तो समझ लो कि दो दिन बाद तुम अंजान आदमी के साथ जीवन भर के लिए बन्धने वाली हो. इस रिश्ते को खुली हथेली में पानी की तरह रखना, छलकने न देना और न मुट्ठी में बन्द करना." खुली हवा में साँस लेने देना ...और खुद भी लेना.
अब परिवार में तीन पुरुष हैं और एक स्त्री जो पत्नी और माँ के रूप में उनके साथ रह रही है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं, न ही उसे समानता के अधिकार के लिए लड़ना पड़ता है. पुरुष समझते हैं कि जो काम स्त्री कर सकती है, उनके लिए कर पाना असम्भव है. दूसरी ओर स्त्री को अपने अधिकार क्षेत्र का भली-भांति ज्ञान है. परिवार के शासन तंत्र में सभी बराबर के भागीदार हैं.

http://es.youtube.com/watch?v=CRr9eubXo68&feature=related

http://es.youtube.com/watch?v=e5n78sw8t9Q&feature=related

(ईरानी फिल्म 'मिम मिसले मॉदर' के छोटे छोटे दो क्लिपस हैं जो मुझे बहुत अच्छे लगे. यहाँ भाषा नहीं लेकिन भाव आप ज़रूर अनुभव कर पाएँगें.)

बुधवार, 21 नवंबर 2007

मृत्यु का स्वागत करता 46 साल का प्रोफेसर(Dying Professor's Last Lecture)

मुत्यु को इतने प्यार से मुस्करा कर कोई गले लगा सकता है इसका जीता जागता उदाहरण अमेरिका के कॉलेज का कम्पयूटर साइंस का प्रोफेसर 46 वर्षीय रैण्डी पॉश. जिन्हें कैंसर है और कुछ ही महीनों के मेहमान हैं. दस किश्तों में उन्होंने जो लास्ट लैक्चर दिया है उनमें ज़िन्दगी को ज़िन्दादिली से जीने की मह्त्त्वपूर्ण बातें छिपी हैं.
प्रो. रैण्डी ने लैक्चर शुरु करने से पहले दण्ड बैठक लगा कर सबको यह कहना चाहा कि अगर कोई मेरी तरह दण्ड बैठक लगा सकता है तभी सहानुभूति दिखाने की कोशिश करे.
बड़ी सरलता से उन्होंने कहा कि यह आखिरी लैक्चर उनके बच्चों के लिए है जो अभी छोटे हैं लेकिन बड़े होकर अपने पिता को अच्छी तरह समझ सकेंगे.
अपनी पत्नी को जन्मदिन की बधाई देते हुए खुद मुस्कराते हुए सभी को रुला दिया. आँसू पोंछती हुई पत्नी एक मोम बत्ती को बुझा कर पति के गले लग कर रो पड़ी.
अपने बचपन को याद करके आज के माता-पिता को सन्देश देते हुए कहा कि बच्चों को कभी कभी उनकी इच्छानुसार कुछ काम करने की इजाज़त दे देनी चाहिए. उन्होंने अपने कमरे की दीवारों को दिखाया जहाँ उन्होंने गणित की कुटेशंज़ लिखी हुई थीं.
कम्पयूटर आर्टस और 'वर्चुयल रीयल्टी' को लेकर उन्होंने कॉलेज में काफी नाम कमाया.
सभी सहकर्मी जो भी मंच पर बोलने आ रहे थे , सबके गले रुँधे हुए लेकिन होंठो पर मुस्कान और आँखें नम थी. बीच बीच में आँखें नम होती रहीं लेकिन अपने आप को रोक न सकी और एक के बाद एक सभी किश्तों को एक बार में देख कर ही उठी.

आशा है आप भी देखना पसन्द करेंगे.

http://www.youtube.com/watch?v=_8kUTUIveyA

(यूट्यूब के पेज़ को खोलने पर दाईं तरफ दस किश्तें भी देखी जा सकती हैं)

http://www.cs.cmu.edu/~pausch/news/index.html

(इस पेज पर प्रो. रैण्डी पॉश के बारे में पढा भी जा सकता है.)

मंगलवार, 13 नवंबर 2007

टिप्पणियाँ - रंग बिरंगी खट्टी मीठी संतरे की गोलियाँ सी


अलग अलग टिप्पणियाँ जो रंग बिरंगी खट्टी मीठी संतरे की गोलियों की तरह लग रही हैं, बिल्कुल ऐसी ही रंग-बिरंगी गोलियाँ मेरे नानाजी की दुकान में अलग अलग शीशे की बोतलों मे रखीं होती थीं. देश के बटँवारे से पहले नानाजी एक होस्टल के वार्डन थे. भारत आने पर उन्हें गणित के अध्यापक का पद मिला.
नाना जी अध्यापक पद से सेवा मुक्त होने के बाद भी बच्चो की सेवा मे लगे रहे और कापी पेंसिल कलम दवात और खट्टी मीठी संतरे की फाड़ी जैसी गोलियों के साथ और भी बहुत कुछ दुकान मे रखते थे. याद आया...राम लड्डू , आम पापड़, उन्हीं के साथ तरह तरह के चूरन भी होते थे.
दोपहर और रात का खाना खाने जब भी नाना जी घर के पिछवाड़े जाते तो मुझे ही दुकान पर बैठना पड़ता. वह पल आनन्द की चरम सीमा को पार कर जाते. हर रोज़ एक दो संतरे की गोलियाँ या राम लड्डू चोरी चोरी खाने में बहुत मज़ा आता.
ओह बात हो रही थी खट्टी मीठी संतरे की गोलियों जैसी टिप्पणियों की. पर्यानाद जी को समझ नहीं आया. उस समय मुझे भी समझ नही आया था जब माँ ने कहा था "मू ते पैर मल". दरअसल समझना चाहिए था "मुँह और पैर मल" लेकिन समझा "मुँह के ऊपर पैर मल"
अनिल जी , पुरानी बातें सच में प्यारी होती हैं. आइए लौट चलें अपने बचपन में. कुछ देर के लिए मानस को भी संघर्षमयी जीवन से मुक्त कर दीजिए.
ज्ञान जी क्यों........ क्यों बचपन की सहजता विदा हो जाती है ???? यदि बचपन की यादें हिट पोस्ट बनती हैं तो जीवन भी हिट हो सकता है अगर हम अपने अन्दर के बालक को जिन्दा रखें. क्या ऐसा हो सकता है ?
राजीव जी , बीते हुए दिन हम खुद ही वापिस ला सकते हैं. जब बचपन को भूली दास्ताँ बना देते हैं तभी हम जीवन में दुखी हो जाते हैं. पुरानी यादों को नया रूप देते हुए कोई बचपना करके देखते हैं. बाल सुलभ हँसी तो फूटेगी ही, सेहत भी अच्छी रहेगी.
ममता जी, आप भी ....क्यों 'थे' का प्रयोग कर रही हैं. बचपन के दिनों की ममता आज भी हमारे आपके और सबके दिलों में है. क्यों न हम थोड़ा थोड़ा बचपन हर रोज़ जिएँ.
अनिल जी और हर्षवर्धन जी माता पिता को चाचा चाची कहना शायद आज भी सुना जा सकता है. मेरे अपने घर में मेरी मौसी को उनके बच्चे बहन जी बुलाते थे लेकिन शादियाँ होती गईं और नाम बदलते गए और इसी के साथ साथ भावनाओं के रूप भी बदलते गए. अब कहाँ सयुंक्त परिवार हैं . परिवार ईकाइयों में बँटते बँटते इतने छोटे हो गए हैं कि उनमें प्रेम, स्नेह , सहनशीलता, संयमशीलता , संवेदनशीलता और भावनाओं का स्थान भी संकुचित होता जा रहा है.
नीलिमा जी आपकी मन्द मुस्कान में अभी भी बच्चों की मासूमियत है. एक भेद की बात यह है कि मुस्कान सुन्दरता को कायम रखने की अचूक दवा है. यही नहीं कई बीमारियों को दूर करने में सहायक बनती है. मुस्कान सेहत के लिए बहुत लाभकारी है इस पर एक अलग पोस्ट लिखने की सोच रही हूँ.
अफलातून जी शैशव का प्रसंग शायद सबको प्रसन्न कर देता है और सभी अपने बचपन की यादों में खो जाते हैं लेकिन धीरे धीरे बच्चों जैसी मासूमियत कहीं खो जाती है.
बालकिशन जी समझदारी की धूल क्यों ? दिन में एक बार तो हम 'डस्टिंग' झाड़पोंछ करते ही हैं तो व्यस्त जीवन पर पड़ी समझदारी की धूल को भी झाड़ देते हैं.
नीरज जी की प्यारी 'मिष्टी' जैसे हम सब बन जाएँ तो सोचिए दुनिया का रूप कैसा हो जाएगा. घुघुती जी क्यों क्या ख्याल है आपका ? पुनीत जी, सच कहूँ तो पंजाबी भाषा का आकर्षण आज भी दिल और दिमाग पर छाया हुआ है. पंजाबी बोलती नहीं लेकिन सुनकर समझने की कोशिश आज तक जारी है.
संजीत जी अगर आपको तस्वीर इतनी अच्छी लगी है तो सोचिए अगर हम सब बच्चों जैसे मासूम हो जाएँगे तो कैसा अनुभव होगा !! पल में रूठ कर फिर हमजोली बन जाएँगे.
इसी बात का जिक्र करते करते 'दो कलियाँ' फिल्म का एक गीत याद आ गया जो मैने पाँचवीँ कक्षा में पहली बार स्कूल की प्रार्थना सभा में गाया था.
आइए सुनते हैं बाल कलाकार के रूप में नीतू सिंह पर फिल्माया यह गीत ...

बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आँखों के तारे .......... !

गीत सुनने के बाद कैसा लगा !! मुझे तो लगता है कि हम बचपन में लौट चलें !!!!!!!!!!

सोमवार, 5 नवंबर 2007

कैक्टस के स्वादिष्ट फल !


कौन कहता है कि कैक्टस में सिर्फ कांटे ही कांटे होते हैं , उसमें रंग-बिरंगे फूल भी होते हैं और फल तो और भी स्वादिष्ट होते हैं. रवि रतलामी जी की कैक्टस गार्डन पर सुन्दर एलबम देखकर उसके मीठे रसदार फल की याद ताज़ा हो गई और मुहँ में पानी आ गया. सोचा कि आप सबसे उस स्वाद को बाँटा जाए. कैक्टस के फलों का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है. कैक्टस के फल के चित्र और उसे काटने का तरीका बताने के लिए एक वीडियो लगाने का प्रयास किया है.