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रविवार, 11 अगस्त 2024

प्रेम ही सत्य है



 एक बार फिर उंगलियां हरकत में आईं और थिरकने लगीं ब्लॉग जगत की दुनिया में। अगस्त 2007 में ब्लॉग "प्रेम ही सत्य है" का जन्म हुआ था जो अब अपनी किशोर अवस्था में पहुंचा जो बहुत कुछ नया करने की चाहत रखता है तो आज अपने शब्दों को अपनी आवाज़ द्वारा आप से साझा कर रही हूं इस यकीन के साथ कि आपको पसंद आएगी ये नई कोशिश 




बुधवार, 7 अगस्त 2024

गहराई (Depth)


कुछ डगमग डगमग करते हुए विचार घेर लेते हैं तो उदास मन मंथन करते हुए बहुत कुछ सोचने लगता है । स्वयं को एक मुर्दा झील सी समझ कर ठहर जाता है । उस वक्त  किसी की भी कही गई बात ठहरे पानी में गिरते पत्थर सी लगती है और गोल गोल भंवर जैसे हलचल करने लगते हैं दिल और दिमाग में । ऐसे में किसी की बात की गहराई को समझने के लिए  मन को वश में करना जरूरी होता  है और तब मन शांत हो जाता है । 





 

Hummingbird

 प्रकृति से प्रेम करने वाला मानव ही मानव से प्यार कर सकता है, ऐसा मेरा विश्वास है इसलिए  मानव का प्रकृति से प्रेम होना बहुत जरूरी है।  घर के बगीचे या गमले में लगे फूल , उस पर बैठे  पक्षी, तितलियाँ, भंवरे और कभी कभी भूले भटकते hummingbirds को देख कर मन गदगद होकर कुछ इस तरह कह उठता - 












दूर हो पर दिल के करीब हो

 
कभी कभी जिस मित्र या सखी से हम बात करना चाहते हैं , वह हमसे दूर भागता है और हम दुखी होकर बैठ जाते हैं। किसी काम में दिल नहीं लगता और हम बेचैन हो जाते हैं लेकिन एक कड़वा सच ये भी है कि ज़िंदगी बहुत छोटी है जिसमें निराश हो कर ज़िंदगी से मुंह मोड़ लेना सही नहीं । जीवन चलने का नाम है या तो बिना कुछ मांगे प्यार करते रहो या आगे बढ़ कर नए रास्ते तलाश करो - 





ज़िंदगी समतल जमीन नहीं



 ज़िंदगी zigzag सी चलती है, शायद यही इसकी खूबसूरती  है । नकरात्मता होती है तो हम सकारात्मक होने के लिए तत्पर होते हैं इसलिए दोनों भाव साथ साथ चलते हुए हमारे व्यक्तित्व में निखार लाते हैं -



सिहर गई मैं (Sihar gayi main)





 बड़े बेटे वरुण की नई सोच से एक नई कोशिश की जिसमें अपने शब्दों को संगीत और चलचित्र के माध्यम से 

आप से साझा करने की चाहत हुई , यकीन है आपको ये नहीं कोशिश पसंद आएगी !! 


गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

मैं और मेरा बातूनी मन



कभी कभी चंचल मन खुद से बातें करता हुआ उकसाता है किसी मित्र , सखी या परिवार के किसी सदस्य से शिकायत करने के लिए लेकिन संयम में रहता मन इस बात को नकार कर नज़रन्दाज़ करने की सलाह देता है। प्रसन्नचित मन कहता है -  जितना मिले उतने में खुश रहने की आदत हो तो ज़िंदगी सदाबहार ! 


मंगलवार, 20 सितंबर 2011

तुम्हारा स्पर्श


पिछली पोस्ट पर अपनी एक दोस्त का परिचय दिया था...आठ साल बाद फिर से फेसबुक पर मिलना हुआ..यादों के पल मोती जैसे सहेजने के लिए ब्लॉग बनाने को कहा ..जब तक ब्लॉग़ बने सोचा क्यों न उसी की लिखी एक पुरानी कविता पढ़वा दूँ ..... मैं बोलती तो वह सपने लेती...वह लिखती तो मैं कल्पना करती नए नए अर्थों के साथ ..... 'तुम्हारा स्पर्श' कविता का आरंभ लगा किसी प्रेयसी के मन का हाल ..... तो अंत पढ़ते लगा जैसे क़लम और काग़ज़ मिल कर कविता को जन्म दे रहे हों.....उस कविता को खूबसूरत रूप देने के लिए लालायित हों....... आपको क्या लगता है... ? 


तुम ने जो सहलाया...मेरी घनी जुल्फों को 
अपने हाथों से 
मेरा झुमर खनक उठा
तुम ने जो छुआ .. ...मेरी पलकों को अधरों से 
होठो को होठो से 
मेरे कंगन खनक उठे 
तुम ने जो बेधा.....मुझे नैनो के तीरों से 
कानो के प्रेमाक्षरों से 
मेरे कर्ण फूल बज उठे 

मेरी साँसे जो तुम से टकरा रही थीं 
अधूरी दास्ताँ मेरे दिल की सुना रही थी 
मेरी करधनी,  मेरी पायल 
तुम्हारे एहसास के बिन सूनी पड़ी है 
जो गीत तुम्हारे ही गा रहे  है 
मेरे उन अलंकारों को रूप नया दे दो .. (अनिता ) 

सोमवार, 24 मार्च 2008

अपने ममता भरे हाथों से ....!



















(सन्ध्या के समय समुन्दर के किनारे बैठे बेटे विद्युत ने तस्वीर खींच ली,  
और हमने अपनी कल्पना में एक शब्द चित्र बना लिया. )







ममता भरे हाथों से सूरज को
वसुधा ने नभ के माथे पर सजा दिया

सजा कर चमचमाती सुनहरी किरणों को
साँवला सलोना रूप और भी निखार दिया

सागर-लहरें स्तब्ध सी रूप निहारने लगीं
यह देख दिशाएँ मन्द मन्द मुस्काने लगीं

गगन के गालों पर लज्जा की लाली सी छाई
सागर की आँखों में जब अपने रूप की छवि पाई

स्नेहिल-सन्ध्या दूर खड़ी सिमटी सी, सकुचाई सी
सूरज की बिन्दिया पाने को थी वह अकुलाई सी

रंग-बिरंगे फूलों का पलना प्यार से पवन झुलाए
हौले-हौले वसुधा डोले और सोच सोच मुस्काए

धीरे-धीरे नई नवेली निशा दुल्हन सी आएगी
अपने आँचल में चाँद सितारे भी भर लाएगी.

बुधवार, 5 सितंबर 2007

शिक्षक दिवस

आज शिक्षक दिवस पर सबको मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ । डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णनन् जैसे महान् शिक्षक का जन्मदिन शिक्षक-दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के ही दिन मुझे किसी एक विद्यार्थी को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए अपने शिक्षक पद से त्याग-पत्र देना पड़ा। मेरा विश्वास है कि एक बार शिक्षा और शिष्यों से नाता जुड़ जाए तो उसे तोड़ना आसान नहीं। मेरा प्यार और आशीर्वाद सदा मेरे शिष्यों के साथ रहेगा। आज एक कविता ने जन्म लिया जो मेरे शिष्यों के नाम -- 


 शिक्षक दिवस पर अध्यापन को त्यागा , 
उत्तरदायित्व नए निभाने को कदम बढ़ाया ।
 प्यारे बच्चे बेहद याद मुझे जब आते , 
दिन काँटे से चुभते काटे ना कटते । 
अंर्तमन को मैंने समझाया , 
अंर्तजाल में मन को लगाया। 
अनकहे को कहने का मन ललचाया,
 'माई पॉडकॉस्ट' में अपना स्वर लहराया। 
मन भरमाने का नया इक रस्ता पाया, 
मेरा मन तब अति हरषाया।।