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शुक्रवार, 14 सितंबर 2007

आवाज़

आवाज़ सृष्टि का अनमोल वरदान है
आवाज़ से ही सम्पूर्ण जगत में प्राण हैं
आवाज़ में तेरी आन और शान है
आवाज़ से ही तेरी  पहचान है !

धूप में लहराती गेहूँ की बालियों सी
सोने की चमक और पैनापन लिए सी
ज़मीन पर पड़ी गुड़ की डली ढली सी
मीठी बहुत कोमल मिठास लिए सी
आवाज़ से ही तेरी  पहचान है !

चूड़ी की नहीं खनक, है सोने के कंगन की धमक
बिछुओं की नहीं आवाज़,  है पायल की सुरीली छनक
डफली का नहीं राग,  है ढोलक की ढमक ढम-ढम
साँसों की तेरी सरगम पर वीणा के तार बजें पल पल
आवाज़ से ही तेरी  पहचान है !

भीनी-भीनी बसंती हवा से महकते सुर तेरे
शीत-ऋतु की पवन जैसे थरथराते सुर तेरे
ग्रीष्म-ऋतु से गर्मी पाकर तापित सुर तेरे
पतझर के सूखे पत्तों से झरते कभी सुर तेरे
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !

तेरी आवाज़ में सूरज की तपिश  है
चंदा की आब है और शीतलता भी है
तेरी आवाज़ में तारों की मद्धिम आभा है
ओस में भीगी हरी दूब की कोमलता भी है
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !

वर्षा की रिम-झिम बूंदों सा इक-इक अक्षर तेरा
पहाड़ी झरने सा झर-झर करता स्वर तेरा
चंचल नदी की नटखट धारा सा सुर तेरा
भेद भरे गहरे सागर का गांभीर्य लिए हर शब्द तेरा
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !

आवाज़ सृष्टि का अनमोल वरदान है
आवाज़ से ही सम्पूर्ण जगत में प्राण हैं
आवाज़ में तेरी आन और शान है
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !


रियाद में आयोजित मुशायरे में श्री बशीर बदर और श्री मंज़र भोपाली जी के साथ कविता-पाठ करने का सौभाग्य मिला तो 'आवाज़' कविता पढ़ी , उनके द्वारा सराहे जाने पर बाल-सुलभ खुशी से आज भी मन झूम उठता है।