महामारी के इस आलम में
मन पंछी सोचे अकुला के
छूटे रिश्तों की याद सजा के
ख़ुद ही झुलूँ ज़ोर लगा के
आए अकेले , कोई ना अपना
साथ निभाते भरम पाल के !
ख़ुद से रूठो ख़ुद को मना के
स्नेह का धागा ख़ुद को बाँध के
यादों का झोंका आकर कहता
मस्त रहो ख़ुद से बतिया के !!
मीनाक्षी धनवंतरि