
क्यों तटस्थ रहूँ मैं सदा मौन
अनुचित पर चिंतन करे कौन !
क्यों खामोश रहे मेरी सोच
क्यों ने मिले उसे कोई बोल !
अनुचित पर चिंतन करे कौन !
क्यों खामोश रहे मेरी सोच
क्यों ने मिले उसे कोई बोल !
क्यों उठे हूक जब होती चूक
क्यों चुभे शूल जब होती भूल !
क्यों हर वर्ग अलग हर पर्व मनाएँ
क्यों ने वर्ग सभी सब पर्व मनाएँ !
क्यों मेरी दीवाली, तेरी ईद, बड़ा-दिन उसका
क्यों न हो हर पर्व तुम्हारा , मेरा उसका !
सीधा नहीं सवाल , बड़ा ही जटिल प्रश्न है
मेरे सपनों का जश्न नहीं, यह और जश्न है !!