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रविवार, 28 अगस्त 2011

कुछ तकनीकी अज्ञान और कुछ मन की भटकन ....

कल की पोस्ट करते वक्त कुछ तकनीकी अज्ञान और कुछ मन की भटकन .... 
सब मिल कर गडमड हो गया.... 

अपने एक परिचित मित्र के मित्रों की दास्ताँ ने मन बेचैन कर दिया... 

लड़की 24-25 साल की है .....
28 साल के पति के साथ सालों की दोस्ती के बाद अभी छह महीने ही हुए थे शादी को...  
मस्ती करने गए थे समुन्दर में.... जो महँगी पड़ गई..... 
लड़की के पति बोट के किनारे पर बैठे अपना संतुलन खो बैठे और पीछे की तरफ़ गिर गए .... 
मित्रों ने फौरन निकाल लिया लेकिन रीढ़ की हड्डी को बहुत नुक्सान पहुँचा ......
अस्पताल में इलाज चलते पता चला कि वेजीटेबल स्टेट में हैं... 
लाइफ स्पोर्ट के यंत्र बस निकालने का फैंसला करना है......... 
लड़की अपने मन के भावों को संयत करती हुई बात करती है ... 
लेकिन जाने मन में कैसे कैसे झंझावात चल रहे होगे......!!!  

ऐसे हादसे अतीत की कड़वी यादों में ले जाते हैं..... 
मन अशांत हो जाता है....
मन अशांत हो तो जीवन ढोने जैसा लगता है....
समझो तो जीवन बुलबुले जैसा हल्का और क्षणभुंगुर भी लगता है ..... 

माँ से बात होती है तो मन बच्चे जैसा फिर से सँभलने लगता है .... 
बच्चा सा बन कर पल में रोते रोते फिर से हँसने लगता है.... 

अपनी ही लिखी हुई कुछ पंक्तियों बार बार याद आती हैं और  मन गुनगुनाने लगता है ...... 



"साँसों का पैमाना टूटेगा, 
पलभर में हाथों से छूटेगा
सोच अचानक दिल घबराया,
ख़्याल तभी इक मन में आया  
जाम कहीं यह छलक न जाए, 
छूटके हाथ से बिखर न जाए
क्यों न मैं हर लम्हा जी लूँ, 
जीवन का मधुरस मैं पी लूँ."