"प्रेम ही सत्य है"
"नारी-मन के प्रतिपल बदलते भाव जिसमें जीवन के सभी रस हैं। " मीनाक्षी
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वृन्दावन लाल वर्मा
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रविवार, 26 अगस्त 2007
नारी
नारी का गौरव, सौन्द्रर्य, महत्तव स्थिरता में है,
जैसे उस नदी का जो बरसात के मटमैले,
तेज़ प्रवाह के बाद शरद् ऋतु में
नीले जल वाली मंथर गतिमानिनी हो जाती है -
दूर से बिल्कुल स्थिर,
बहुत पास से प्रगतिशालिनी।
वृंदावनलाल वर्मा
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