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शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
शनिवार, 22 मार्च 2008
बरस बरस बाद आती है होली

(गूगल के सौजन्य से)
यहाँ बोर्ड की परीक्षा का रंग छाया हुआ है जिसमें संगीत का रंग घोल कर होली का आनन्द ले रहे हैं.
बरस बरस बाद , आती है होली ,
आज ना कड़वा बोलो
हमने मन के मैल को धोया
तुम भी क्रोध को धो लो !
मारो भर भर कर पिचकारी
होली का यही मतलब है
रंगे इक रंग दुनिया सारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
मारो भर भर कर पिचकारी
आज के दिन यूँ घुल मिल जाओ
बैर रहे न कोई
नया पुराना , अगला पिछला
बैर रहे न कोई
बढ़े प्यार की, बढ़े प्यार की साझे दारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
आँगन आँगन
आँगन आँगन धूम मचाती
आई है शुभ बेला
नस में, नस नस मे
नस नस में संगीत जगाए
यह रंगों का मेला
खिले जीवन की फुलवारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
जो भी हम से भूल हुई हो
आज उसे बिसरा दो
पश्चाताप सज़ा है खुद ही
और न कोई सज़ा दो
बने दुश्मन
बने दुश्मन भी आभारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
मारो भर भर कर पिचकारी
होली का यही मतलब है
रंगे इक रंग दुनिया सारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
मारो भर भर कर पिचकारी
आज के दिन यूँ घुल मिल जाओ
बैर रहे न कोई
नया पुराना , अगला पिछला
बैर रहे न कोई
बढ़े प्यार की, बढ़े प्यार की साझे दारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
आँगन आँगन
आँगन आँगन धूम मचाती
आई है शुभ बेला
नस में, नस नस मे
नस नस में संगीत जगाए
यह रंगों का मेला
खिले जीवन की फुलवारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
जो भी हम से भूल हुई हो
आज उसे बिसरा दो
पश्चाताप सज़ा है खुद ही
और न कोई सज़ा दो
बने दुश्मन
बने दुश्मन भी आभारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
गुरुवार, 3 जनवरी 2008
आप सबके बड़प्पन को प्रणाम !
फुर्सत के पल मिलते ही अभी मैंने अपना मेल एकाण्ट खोला तो चेहरा खुशी से खिल उठा . मेल खोलते जा रहे थे और पढ़ते जा रहे थे. लगा कि मेल भेजते वक्त सबके चेहरे पर मुस्कान ही होगी जैसे राह चलते किसी को गिरते देख कर हँसीं निकल जाती है. सच मानिए कभी कभी गलती करके माफी माँगने का अलग ही आनन्द है.
कल शाम एक जन्मदिन की पार्टी पर छोटे बेटे को लेकर अजमान जाना पड़ा, लौटते लौटते रात के दो बज गए.
आज सुबह बड़े बेटे को लेकर कॉलेज गई जहाँ मुझे ठहरना था क्योंकि अक्सर एग्ज़ाम के दिनों में बेटे पर दर्द कुछ ज़्यादा ही मेहरबान हो जाता है. दोपहर एक बजे घर आते ही दोपहर खाना बनाया , खाया और खिलाया. न चाह कर भी नींद को अपने करीब आने से रोक नहीं पाए. अच्छी तरह मालूम है कि भोजन करने के एकदम बाद सोना ज़हर का काम करता है, फिर भी सो गए थे. उठने के बाद हालत खराब होनी ही थी सो हो गई.
तब सोचा कि अर्बुदा के हाथ की चाय पी जाए और नन्हे-मुन्ने जुड़वाँ इला इशान से खेला जाए तो तन-मन दोनो प्रफुल्लित हो जाएँगें. मीनू आटीं मीनू आटीं कहते हुए दोनों की होड़ लग जाती है कि सबसे ज़्यादा कौन अपनी बातों से लुभाएगा. एक मज़ेदार खेल होता है वहाँ. दोनो बच्चे अपनी प्यारी प्यारी बातों से हम दोनों को बात करने का अवसर ही नहीं देते लेकिन हम भी मौका पाकर अपनी बात कर ही लेते हैं.
वहाँ भी पैगी डॉट कॉम पर चर्चा हुई. सोचा कि चाय पीने के बाद तो ज़रूर इस विषय पर लिखना ही है.
जब सेहतनामा के संजय जी का मेल आया कि एक डोमेन का आमंत्रण मिला है तो हमारा माथा ठनका क्योंकि उससे पहले उस डोमेन पर विकास जी से भी बात हुई तब तक हम कुछ समझ नहीं पाए थे कि वे हमारे ब्लॉग परिवार के सदस्य हैं या कोई और .. आशा जी से निमंत्रण मिला था जिसे हमने उनकी साइट समझी और पैगी की पगली पढ़ लिया.
नहीं अब इस विषय पर बात करने का जोश ठंडा सा पड़ता जाता है . अब सोचते हैं "बीती बात बिसार दे , आगे की सुध ले" सो कल की बातें भुलाकर आज इस समय हमारे साथ कुछ गीतों का आनन्द लीजिए जो अभी मैं सुन रही हूँ --
दीवाना मस्ताना हुआ दिल........
जाता कहाँ है दीवाने ......
हूँ अभी मैं जवाँ ए दिल ......
जानूँ जानूँ रे ......
कल शाम एक जन्मदिन की पार्टी पर छोटे बेटे को लेकर अजमान जाना पड़ा, लौटते लौटते रात के दो बज गए.
आज सुबह बड़े बेटे को लेकर कॉलेज गई जहाँ मुझे ठहरना था क्योंकि अक्सर एग्ज़ाम के दिनों में बेटे पर दर्द कुछ ज़्यादा ही मेहरबान हो जाता है. दोपहर एक बजे घर आते ही दोपहर खाना बनाया , खाया और खिलाया. न चाह कर भी नींद को अपने करीब आने से रोक नहीं पाए. अच्छी तरह मालूम है कि भोजन करने के एकदम बाद सोना ज़हर का काम करता है, फिर भी सो गए थे. उठने के बाद हालत खराब होनी ही थी सो हो गई.
तब सोचा कि अर्बुदा के हाथ की चाय पी जाए और नन्हे-मुन्ने जुड़वाँ इला इशान से खेला जाए तो तन-मन दोनो प्रफुल्लित हो जाएँगें. मीनू आटीं मीनू आटीं कहते हुए दोनों की होड़ लग जाती है कि सबसे ज़्यादा कौन अपनी बातों से लुभाएगा. एक मज़ेदार खेल होता है वहाँ. दोनो बच्चे अपनी प्यारी प्यारी बातों से हम दोनों को बात करने का अवसर ही नहीं देते लेकिन हम भी मौका पाकर अपनी बात कर ही लेते हैं.
वहाँ भी पैगी डॉट कॉम पर चर्चा हुई. सोचा कि चाय पीने के बाद तो ज़रूर इस विषय पर लिखना ही है.
जब सेहतनामा के संजय जी का मेल आया कि एक डोमेन का आमंत्रण मिला है तो हमारा माथा ठनका क्योंकि उससे पहले उस डोमेन पर विकास जी से भी बात हुई तब तक हम कुछ समझ नहीं पाए थे कि वे हमारे ब्लॉग परिवार के सदस्य हैं या कोई और .. आशा जी से निमंत्रण मिला था जिसे हमने उनकी साइट समझी और पैगी की पगली पढ़ लिया.
नहीं अब इस विषय पर बात करने का जोश ठंडा सा पड़ता जाता है . अब सोचते हैं "बीती बात बिसार दे , आगे की सुध ले" सो कल की बातें भुलाकर आज इस समय हमारे साथ कुछ गीतों का आनन्द लीजिए जो अभी मैं सुन रही हूँ --
दीवाना मस्ताना हुआ दिल........
जाता कहाँ है दीवाने ......
हूँ अभी मैं जवाँ ए दिल ......
जानूँ जानूँ रे ......
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007
मीरा राधा की राह पे चलना
पवन पिया को छू कर आई
पहचानी सी महक वो लाई.
गहरी साँसें भरती जाऊँ
नस-नस में नशा सा पाऊँ.
पिया प्रेम का नशा अनोखा
पी हरसूँ यह कैसा धोखा.
पिया पिया का प्रेम सुधा रस
मीत-मिलन की जागी क्षुधा अब.
सजना को देखूँ सूरज में
वो छलिया बैठा पूरब में.
चंदा में मेरा चाँद बसा है
घर उसका तारों से सजा है.
मेघों में मूरत देखूँ मितवा की
घनघोर घटा सी उनमें घुल जाऊँ.
पिया मिलन की प्यास जगी है
दर्शन पाने की आस लगी है.
मीरा राधा की राह पे चलना
जन्म-जन्म अभी और भटकना !!
ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ
पहचानी सी महक वो लाई.
गहरी साँसें भरती जाऊँ
नस-नस में नशा सा पाऊँ.
पिया प्रेम का नशा अनोखा
पी हरसूँ यह कैसा धोखा.
पिया पिया का प्रेम सुधा रस
मीत-मिलन की जागी क्षुधा अब.
सजना को देखूँ सूरज में
वो छलिया बैठा पूरब में.
चंदा में मेरा चाँद बसा है
घर उसका तारों से सजा है.
मेघों में मूरत देखूँ मितवा की
घनघोर घटा सी उनमें घुल जाऊँ.
पिया मिलन की प्यास जगी है
दर्शन पाने की आस लगी है.
मीरा राधा की राह पे चलना
जन्म-जन्म अभी और भटकना !!
ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ
विषैला शिशु-मानव
प्रकृति का ह्रदय चीत्कार कर रहा विकास के हर पल में !
विषैला शिशु-मानव हर पल पनप रहा उसके गर्भ में !
नस-नस में दूषित रक्त दौड़ रहा
रोम-रोम तीव्र पीड़ा से तड़प रहा !
पल-पल प्रदूषण भी फैल रहा
शुद्ध पर्यावरण दम तोड़ रहा !
मानव-मन में एक दूसरे के लिए घृणा का धुँआ भर रहा !
रक्त नहीं बचा अब, सिर्फ पानी ही उसके तन में बह रहा !
मानव-मन संवेदनशीलता खोज रहा
कैसे पा जाए यही बस सोच रहा !
आशा है मानवता की आँखों में
आश्रय पाती मानव की बाँहों में !!
नास्तिक फिल्म मे कवि प्रदीप द्वारा गाया गया गीत 'कितना बदल गया इंसान' सुनकर जहाँ दिल डूबने लगता है वहीं दूसरी ओर हेमंत और लता द्वारा गाया इसी फिल्म का दूसरा गीत मन को हौंसला देता है.
कितना बदल गया इंसान
गगन झनझना रहा
विषैला शिशु-मानव हर पल पनप रहा उसके गर्भ में !
नस-नस में दूषित रक्त दौड़ रहा
रोम-रोम तीव्र पीड़ा से तड़प रहा !
पल-पल प्रदूषण भी फैल रहा
शुद्ध पर्यावरण दम तोड़ रहा !
मानव-मन में एक दूसरे के लिए घृणा का धुँआ भर रहा !
रक्त नहीं बचा अब, सिर्फ पानी ही उसके तन में बह रहा !
मानव-मन संवेदनशीलता खोज रहा
कैसे पा जाए यही बस सोच रहा !
आशा है मानवता की आँखों में
आश्रय पाती मानव की बाँहों में !!
नास्तिक फिल्म मे कवि प्रदीप द्वारा गाया गया गीत 'कितना बदल गया इंसान' सुनकर जहाँ दिल डूबने लगता है वहीं दूसरी ओर हेमंत और लता द्वारा गाया इसी फिल्म का दूसरा गीत मन को हौंसला देता है.
कितना बदल गया इंसान
गगन झनझना रहा
बुधवार, 26 दिसंबर 2007
सुनहरा अतीत गीतों में गुनगुनाता हुआ .....
आज पहली पोस्ट जो खुली रेडियोनामा की "फ़िज़ाओं में खोते कुछ गीत" जिसे पढ़कर लगा कि जहाँ चाह हो, वहाँ राह निकल आती है...
संयोंग की बात कि हमारे सिस्ट्म में कुछ पुराने गीतों का फोल्डर है जिसमें उषा जी का गाया हुआ 'भाभी आई' गीत है. सुर नूर लखनवी के हैं और संगीत दिया है सी रामचन्द्रन ने.
हालाँकि अन्नपूर्णा जी सुधा मल्होत्रा का गाया गीत सुनना चाहती हैं , इस बात की कोई जानकारे नहीं है हमें. फिलहाल इस गीत को सुनिए ..आशा करती हूँ कि आपको पसन्द आएगा.
संयोंग की बात कि हमारे सिस्ट्म में कुछ पुराने गीतों का फोल्डर है जिसमें उषा जी का गाया हुआ 'भाभी आई' गीत है. सुर नूर लखनवी के हैं और संगीत दिया है सी रामचन्द्रन ने.
हालाँकि अन्नपूर्णा जी सुधा मल्होत्रा का गाया गीत सुनना चाहती हैं , इस बात की कोई जानकारे नहीं है हमें. फिलहाल इस गीत को सुनिए ..आशा करती हूँ कि आपको पसन्द आएगा.
मंगलवार, 25 दिसंबर 2007
हाईबर्नेशन की अवस्था में ही सभी पर्वों पर शुभकामनाएँ !
when christmas comes to town
एक बार हाइब्रेशन की अवस्था में जाने पर शीत ऋतु में बाहर आने में एक सिहरन सी होती है. एक हफ्ता क्या बीता जैसे हम ब्लॉगजगत की गलियाँ ही भूल गए. बदहवास से इधर उधर देख पढ़ रहे हैं. "एक शाम ...ब्लागिंग का साइड इफेक्ट....नये रिश्तों की बुनियाद बन चुकी थी।" शत प्रतिशत सच है.
सोचा नहीं था कि हमारी मुलाकात को बेजी इतने सुन्दर रूप में यादगार पोस्ट बना देगीं.पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आया ही...टिप्पणियाँ पढ़कर आनन्द चार गुना और बढ़ गया. सोचने लगे कि हम इसी ब्लॉग परिवार का हिस्सा हैं और यह सोचकर अच्छा लगने लगा.
उस शाम के बाद हम पतिदेव विजय और उनके छोटे भाई की मेहमाननवाज़ी में जुट गए जो साउदी से ईद की छुट्टियाँ मनाने आए थे. इस बार ईद पर छोटे भाई साहब के कारण शाकाहारी व्यंजन परोसे गए नहीं तो कबाब और बिरयानी के बगैर ईद मनाने का मज़ा कहाँ !
ईद के बाद ईरानी परिवार के साथ ऑनलाइन चैट करके शब ए याल्दा मनाई गई. इस रात को सबसे लम्बी रात माना जाता है. इस रात दिवान ए हाफिज़ पर चर्चा होती है और उसी किताब से ही अपना फाल निकाला जाता है बस इतना ही मालूम है. एक शब ए याल्दा हम ईरान में बिता चुके हैं जिसकी मधुर यादें आज भी मस्ती में डुबो देती हैं. हमारे मित्र अली के बिज़नेस पार्टनर मुहन्दिस ज़ियाबारी हाफिज़ पर बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन फारसी में. अली और उनकी पत्नी लिडा बारी बारी से अंग्रेज़ी में बताते हैं. धीरे धीरे सुनने पर फारसी भी कुछ कुछ समझ आ ही जाती थी.
खुशियाँ लेकर क्रिसमस आया. मित्रों को बधाई देते हुए विजय अपने भाई को एक हफ्ते में दुबई की सैर भी करवाना चाहते थे सो हम भी उनका साथ देते हुए घूमते रहे पर दिमाग में ब्लॉग घूम रहे थे जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा था.
अब जाकर कुछ समय निकाल पाए हैं कि वापिस आभासी दुनिया में लौटा जाए.
नए साल में जाने से पहले पिछले साल को अलविदा करते हुए उसे कुछ देने की चाह....
विदाई का तोहफा !
क्या तोहफा दिया जाए हम इस सोच में डूबे हैं.
आप क्या कहते हैं !!!!
लब पे आती है दुआ ... !
एक बार हाइब्रेशन की अवस्था में जाने पर शीत ऋतु में बाहर आने में एक सिहरन सी होती है. एक हफ्ता क्या बीता जैसे हम ब्लॉगजगत की गलियाँ ही भूल गए. बदहवास से इधर उधर देख पढ़ रहे हैं. "एक शाम ...ब्लागिंग का साइड इफेक्ट....नये रिश्तों की बुनियाद बन चुकी थी।" शत प्रतिशत सच है.
सोचा नहीं था कि हमारी मुलाकात को बेजी इतने सुन्दर रूप में यादगार पोस्ट बना देगीं.पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आया ही...टिप्पणियाँ पढ़कर आनन्द चार गुना और बढ़ गया. सोचने लगे कि हम इसी ब्लॉग परिवार का हिस्सा हैं और यह सोचकर अच्छा लगने लगा.
उस शाम के बाद हम पतिदेव विजय और उनके छोटे भाई की मेहमाननवाज़ी में जुट गए जो साउदी से ईद की छुट्टियाँ मनाने आए थे. इस बार ईद पर छोटे भाई साहब के कारण शाकाहारी व्यंजन परोसे गए नहीं तो कबाब और बिरयानी के बगैर ईद मनाने का मज़ा कहाँ !
ईद के बाद ईरानी परिवार के साथ ऑनलाइन चैट करके शब ए याल्दा मनाई गई. इस रात को सबसे लम्बी रात माना जाता है. इस रात दिवान ए हाफिज़ पर चर्चा होती है और उसी किताब से ही अपना फाल निकाला जाता है बस इतना ही मालूम है. एक शब ए याल्दा हम ईरान में बिता चुके हैं जिसकी मधुर यादें आज भी मस्ती में डुबो देती हैं. हमारे मित्र अली के बिज़नेस पार्टनर मुहन्दिस ज़ियाबारी हाफिज़ पर बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन फारसी में. अली और उनकी पत्नी लिडा बारी बारी से अंग्रेज़ी में बताते हैं. धीरे धीरे सुनने पर फारसी भी कुछ कुछ समझ आ ही जाती थी.
खुशियाँ लेकर क्रिसमस आया. मित्रों को बधाई देते हुए विजय अपने भाई को एक हफ्ते में दुबई की सैर भी करवाना चाहते थे सो हम भी उनका साथ देते हुए घूमते रहे पर दिमाग में ब्लॉग घूम रहे थे जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा था.
अब जाकर कुछ समय निकाल पाए हैं कि वापिस आभासी दुनिया में लौटा जाए.
नए साल में जाने से पहले पिछले साल को अलविदा करते हुए उसे कुछ देने की चाह....
विदाई का तोहफा !
क्या तोहफा दिया जाए हम इस सोच में डूबे हैं.
आप क्या कहते हैं !!!!
लब पे आती है दुआ ... !
रविवार, 9 दिसंबर 2007
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह ! !
सुबह सुबह हाथ में आज का अखबार....उत्तर बगदाद में 180किमी दूर एक शहर के रिहाइशी इलाके में एक सुसाइड कार बम से कई मरे और कई घायल हुए.....नज़र पड़ी ज़ख्मी रोती हुई बच्ची के चित्र पर .. दिल और दिमाग सुन्न.... क्यों दर्द सहन नहीं होता... क्यों इतना दर्द होता है...
(बेटे ने रोती हुई बच्ची की तस्वीर न लगाने का अनुरोध किया है)
मैं तर्क दे रही थी कि तस्वीर लगाने का एक ही मकसद होता है कि शायद उस मासूम बच्ची के आँसू देखकर इंसान के अंतर्मन में हलचल हो लेकिन बेटे का अलग तर्क है उसका कहना है बच्ची जो दर्द महसूस कर रही है,
वैसा दर्द और कोई महसूस नहीं कर सकता.... मेरे चेहरे की उदासी और आँखों में उभरते सवाल को पढ़कर फौरन बोल उठा ,,,माँ की बात अलग होती है.... कहता हुआ धीरे धीरे अपने कमरे की ओर चल दिया.
इस गीत को सुनिए जो मेरे दिल के बहुत करीब है ....
अल्लाह...... अल्लाह ......
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
मैंने तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
मैंने तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
रोशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सचमुच अब कोई सहर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रख दे
या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रख दे
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
(बेटे ने रोती हुई बच्ची की तस्वीर न लगाने का अनुरोध किया है)
मैं तर्क दे रही थी कि तस्वीर लगाने का एक ही मकसद होता है कि शायद उस मासूम बच्ची के आँसू देखकर इंसान के अंतर्मन में हलचल हो लेकिन बेटे का अलग तर्क है उसका कहना है बच्ची जो दर्द महसूस कर रही है,
वैसा दर्द और कोई महसूस नहीं कर सकता.... मेरे चेहरे की उदासी और आँखों में उभरते सवाल को पढ़कर फौरन बोल उठा ,,,माँ की बात अलग होती है.... कहता हुआ धीरे धीरे अपने कमरे की ओर चल दिया.
इस गीत को सुनिए जो मेरे दिल के बहुत करीब है ....
अल्लाह...... अल्लाह ......
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
मैंने तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
मैंने तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
रोशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सचमुच अब कोई सहर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रख दे
या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रख दे
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
बुधवार, 24 अक्टूबर 2007
ज़िन्दगी इत्तेफाक है !
घर पहुँच कर राहत की साँस ली कि आज फिर हम बच गए. हर रोज़ बेटे को कॉलेज छोड़ने और वापिस आने में 80 किमी के सफर में कोई न कोई सड़क दुर्घटना का शिकार दिख ही जाता है. कभी कभी 160 किमी भी हो जाता है गर कोई टैक्सी या प्राइवेट ड्राइवर ने मिले. मेरे रास्ते में हर रोज़ की दुर्घटनाओं में से चुने कुछ चित्र हैं -

रास्ते में दुबई के हिन्दी रेडियो सुनना संजीवनी बूटी सा काम करता है. अचानक बीच में ही रेडियो प्रसारण में फोन वार्ता में एक महिला की दर्द भरी आवाज़ मे मदद के लिए गुहार थी . एक सड़क दुर्घटना में उसके 22 साल के बेटे को एक टाँग से हाथ धोना पड़ा, महीना भर कोमा रहा जिसकी तीमारदारी में 25 साल के बड़े बेटे को नौकरी से निकाल दिया गया. सुनकर दिल बैठ गया... मृत्यु चुपचाप आकर ले जाए तो कोई दुख नहीं क्योंकि एक दिन जाना ही है लेकिन इस तरह अंग-भंग होना या अकाल मृत्यु का पाना पूरे वजूद मे एक सिहरन पैदा कर देता है.
फौरन हमने दूसरा हिन्दी स्टेशन ढूँढा जहाँ जो गीत बजा बस उसके सुनते ही सारा डर हवा हो गया.
आप भी सुनिए और सोचिए कि सुर और लय का हमारे ऊपर क्या असर होता है.
ज़िंदगी इत्तेफाक़ है

रास्ते में दुबई के हिन्दी रेडियो सुनना संजीवनी बूटी सा काम करता है. अचानक बीच में ही रेडियो प्रसारण में फोन वार्ता में एक महिला की दर्द भरी आवाज़ मे मदद के लिए गुहार थी . एक सड़क दुर्घटना में उसके 22 साल के बेटे को एक टाँग से हाथ धोना पड़ा, महीना भर कोमा रहा जिसकी तीमारदारी में 25 साल के बड़े बेटे को नौकरी से निकाल दिया गया. सुनकर दिल बैठ गया... मृत्यु चुपचाप आकर ले जाए तो कोई दुख नहीं क्योंकि एक दिन जाना ही है लेकिन इस तरह अंग-भंग होना या अकाल मृत्यु का पाना पूरे वजूद मे एक सिहरन पैदा कर देता है.फौरन हमने दूसरा हिन्दी स्टेशन ढूँढा जहाँ जो गीत बजा बस उसके सुनते ही सारा डर हवा हो गया.
आप भी सुनिए और सोचिए कि सुर और लय का हमारे ऊपर क्या असर होता है.
ज़िंदगी इत्तेफाक़ है
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