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गुरुवार, 21 मई 2009

किसके दिल में है क्या किसे पता

उड़न तश्तरी की आज की पोस्ट ने इस गीत की याद दिला दी .....यह गीत सुन रहे है जो समीरजी की आज की पोस्ट पर सही लगा.....आप भी सुनिए लेकिन वहाँ से लौटते हुए ..... अबूझमाड़! --- मात्र यह टिप्पणी किस ब्लॉगर का हो सकती है....यह भी बताइए.....




देखो जो गौर से

चेहरे के पीछे भी – 2 चेहरा है
सोचो जो गौर से
पर्दे के पीछे भी – 2 पर्दा है
गहरा गहरा राज़ गहरा बड़ा
किसके दिल में है क्या किसे पता – 2
0000000......


देखो जो गौर से
चेहरे के पीछे भी – 2 चेहरा है
सोचो जो गौर से
पर्दे के पीछे भी – 2 पर्दा है
गहरा गहरा राज़ गहरा बड़ा
किसके दिल में है क्या किसे पता – 2
000000.......


डूबा कोई सोच में, कोई धन दौलत से यहाँ मगरूर है
कोई फसाँ चाल में, कोई तो शोहरत से यहाँ मश्हूर है
जुदा सबकी मज़िले, जुदा सबकी राहें
जुदा सबकी चाहतें जुदा
गहरा गहरा राज़ गहरा बड़ा
किसके दिल में है क्या किसे पता – 2
0000000.....


टूटा नशा प्यार का, झिलमिल शमाँ जो जल रही बेनूर है
झूठा यकीन यार का, लोगों ज़माने का यही दस्तूर है
ज़रा सी है बेअसर दिलों की आहें, वफा में भी तो है ज़फा
गहरा गहरा राज़ गहरा बड़ा
किसके दिल में है क्या किसे पता – 2

रविवार, 17 अगस्त 2008

मेरे भैया ....मेरे चन्दा.... !

रक्षाबन्धन के दिन सुबह से ही 'मेरे भैया , मेरे चन्दा' गीत गुनगुनाते हुए आधी रात हो गई....... 11 साल की थी मैं जब नन्हा सा भाई आया हमारे जीवन में .......अनमोल रतन को पाकर जैसे दुनिया भर की खुशियाँ मिल गई हों....

मेरे भैया , मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन
तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ

तेरी साँसों की कसम खाके हवा चलती है
तेरे चेहरे की झलक पाके बहार आती है
इक पल भी मेरी नज़रों से तू जो ओझल हो

हर तरफ मेरी नज़र तुझको पुकार आती है
मेरे भैया , मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन
तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ

मेरे भैया , मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन
तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ


तेरे चेहरे की महकती हुई लड़ियो के लिए
अनगिनत फूल उम्मीदों के चुने है मैने
वो भी दिन आए कि उन ख्वाबो की ताबीर मिले
तेरे खातिर जो हसीं ख्वाब बुने है मैने...

मेरे भैया , मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन
तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ

शनिवार, 21 जून 2008

चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा

घर की सफाई और सफर की तैयारी में लगे हैं..  
अपनी पेकिंग करते करते अज़ीज़ नाजा की एक कव्वाली सुन रहें हैं...
जो हमें बहुत अच्छी लगती है ....
दरअसल इसके बोल तो बहुत पहले ही लिख कर रखे थे...
लेकिन कभी मौका ही नही मिला कि पोस्ट बनाई जाए...
आज काम के बाद के आराम के पलों में वक्त हाथ में आया तो पोस्ट पब्लिश कर दी....
सोचा हम ही क्यों आप भी लुत्फ़ लें....





हुए नामवर बेनिशान कैसे कैसे
ज़मीन खा गई नौजवान कैसे कैसे

आज जवानी पर इतराने वाले कल पछताएगा
3
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा, ढल जाएगा - 2 
 
तू यहाँ मुसाफ़िर है , यह सराय फानी है
चार रोज़ की मेहमाँ तेरी ज़िन्दगानी है 
जन-ज़मीन ज़र ज़ेवर कुछ ना साथ जाएगा
खाली हाथ आए है खाली हाथ जाएगा
जान कर भी अंजान बन रहा है दीवाने
अपनी उम्रेफ़ानी पर तन रहा है दीवाने
इस कदर तू खोया है इस जहाँ के मेले
तू खुदा को भूला है फँस के इस झमेले में
आज तक यह देखा है पाने वाला खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है
मिटने वाली दुनिया का एतबार करता है
क्या समझ के तू आखिर इससे प्यार करता है
अपनी अपनी फिक्रों में जो भी है वो उलझा है
जो भी है वो उलझा है
ज़िन्दगी हक़ीकत में क्या है कौन समझा है
क्या है कौन समझा है
आज समझ ले 
आज समझ ले कल यह मौका हाथ ना तेरे आएगा
ओ गफलत की नींद में सोने वाले धोखा खाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा  2 
 
मौत ने ज़माने को यह समाँ दिखा डाला
कैसे कैसे उस ग़म को ख़ाक़ में मिला डाला 
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं 
जंग ओ जू वो पोरस है और ना उसके हाथी हैं 
कल जो तनके चलते थे अपनी शान ओ शौकत पर 
शमा तक नहीं जलती आज उनकी क़ुरबत पर 
अदना हो या आला हो सबको लौट जाना है 
सबको लौट जाना है  2
 
मुफलिसोंतवन्दर का कब्र ही ठिकाना है 
कब्र ही ठिकाना है  2
जैसी करनी 
जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पाएगा
सिर को उठाकर चलने वाले एक दिन ठोकर खाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  3
ढल जाएगा, ढल जाएगा - 2 
 
मौत सबको आनी है कौन इससे छूटा है
तू फ़ना नही होगा यह ख्याल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जाएँगे
बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जाएँगे
तेरे जितने है भाई वक्त का चलन देंगे
छीन कर तेरी दौलत दो ही गज़ कफ़न देगे
जिनको अपना कहता है कब ये तेरे साथी है 
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बाराती है
लाके कब्र में तुझको उल्टा पाके डालेंगे
अपने हाथों से तेरे मुहँ पे खाक़ डालेंगे
तेरी सारी उल्फत को खाक में मिला देगे
तेरे चाहने वाले कल तुझे भुला देंगे
इसलिए यह कहता हूँ खूब सोच ले दिल में
क्यों फँसाए बैठा है जान अपनी मुश्किल में
कर गुनाहो से तौबा आगे बस सँभल जाए
आगे बस सँभल जाए  2
दम का क्या भरोसा है जान कब निकल जाए 
जान कब निकल जाए 
मुट्ठी बाँध के आनेवाले 
मुट्ठी बाँध के आनेवाले हाथ पसारे जाएगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा, ढल जाएगा  8

रविवार, 8 जून 2008

आभासी दुनिया में नाई की दुकान खुली है ....

हम जहाँ हैं वहाँ शौहर या शौफर ही बाहर ले जा सकते है.... दोनो बेटों को बारबर शॉप ले जाने की बात हुई तो विद्युत ने हमें लैप टॉप के सामने बिठा दिया और आँखें बंद करने को कहा.... कानों में हेड फोन लगा कर आँखें बंद करने को कहा ...... बस हम पहुँच गए बारबर शॉप ....आप भी घर बैठे बैठे ही नाई की दुकान जा सकते हैं......


अरे रुकिए.... क्लिक न करिये.. ..

नाई की दुकान में अन्दर जाने से पहले आपके कानों में हेड फोन होने चाहिए...

पहले हेड फोन लगाईये ..... आवाज़ को सेट कीजिये.. कर लिया ??

आँखें बंद कीजिये.... अब लुत्फ़ लीजिये.....





रविवार के दिन घर बैठे-बैठे मुफ्त में ही ......

कैसा लगा !!!!!! ज़रूर बताइए !!!!