सृष्टि को रूप नया दे दो !
कब तक निश्चल पड़े पड़े
देखोगे कब तक खड़े खड़े !
हे प्राण .....................
उठो उठो हे सोए प्राण
आँखें मूँदे रहो न प्राण !
हे प्राण .................
मानवता का संहार है होता
वसुधा मन पीड़ा से रोता !
हे प्राण ....................
कृतिकार के मन का रुदन सुनो
विश्व की करुण पुकार सुनो !
हे प्राण .....................
हे प्राण मेरे, आँखें खोलो
सृष्टि को रूप नया दे दो !!
7 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना
बहुत खूब मीनाक्षी जी। स्वंय की चेतना को झंझोडने के लिये अच्छी कविता।
- अस्तित्व , आबू दाबी, यू ए ई
सॄष्टि को नव रूप देने की चाह ही जीवन्तता है। इस चाह को सदैव जोश दिलाते रहना चाहिये।
जिस प्राण को संबोधित है वह कृतिकार नही है ? ??
www.aarambha.blogspot.com
अद्भुत कविता है आपकी. आशा और उम्मीद की यही रोशनी हमारे जीवन का सहारा है. नूतन का स्वागत करने के लिए हमे हमेशा तैयार रहना होगा.
सुंदर कविता!!
वाह !! अद्भुत रचना ..मन भाव -विहाब्ल हो गया ...बधाई
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