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शनिवार, 24 नवंबर 2007

हे प्राण मेरे, आँखें खोलो !

हे प्राण मेरे, आँखें खोलो 
सृष्टि को रूप नया दे दो ! 
कब तक निश्चल पड़े पड़े 
देखोगे कब तक खड़े खड़े ! 
हे प्राण ..................... 
उठो उठो हे सोए प्राण 
आँखें मूँदे रहो न प्राण ! 
हे प्राण ................. 
मानवता का संहार है होता 
वसुधा मन पीड़ा से रोता ! 
हे प्राण .................... 
कृतिकार के मन का रुदन सुनो
विश्व की करुण पुकार सुनो ! 
हे प्राण ..................... 
हे प्राण मेरे, आँखें खोलो
सृष्टि को रूप नया दे दो !!