प्राणों का दीप जलने दो
जीवन को गति मिलने दो !
विश्व तरु दल को न सूखने दो
वसुधा को प्रेमजल सींचने दो !
विषमता का शूल न चुभने दो
जीवन-पथ को निष्कंटक करने दो !
अनिल से अनल को मिलने दो
प्रचंड रूप धारण करने दो !
सिन्धु-सरिता की सुषमा बढ़ने दो
धरा-अंबर की शोभा निखरने दो !
घन-चंचला कुसुम खिलने दो
विश्व उद्यान माधर्य बढ़ने दो !
प्राणों का दीप जलने दो
जीवन को गति मिलने दो !!
14 टिप्पणियां:
प्राणों का दीप जलने दो
जीवन को गति मिलने दो !!
--सुन्दर.
दीपों के पर्व की शुभकामनायें.
सुंदर रचना
जीवन को गति मिलने दो !
प्रेरित करते शब्द
बिल्कुल, वह सब हो। चाहे वह महासरस्वती के शांत शृजन सा धीमा पर व्यवस्थित हो या महाकाली के पदाघात सा प्रचण्ड और क्षिप्र!
सुन्दर.
खूबसूरत. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
सुंदर रचना!!
दीपपर्व की बधाई व शुभकामनाएं!!
very well writin, emotional and beautiful.
very beautiful, full of emotions!
bela.
आपके पिटारे में
चित्र और भाव
शब्द और आग
निराले हैं
पाठक हुए
मतवाले हैं
सुंदर रचना!!
तम से मुक्ति का पर्व दीपावली आपके पारिवारिक जीवन में शांति , सुख , समृद्धि का सृजन करे ,दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ !
घन-चंचला कुसुम खिलने दो
विश्व उद्यान माधर्य बढ़ने दो !
बहुत बढिया। आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए।
एक बात और। आप पोस्ट पर दीये का चित्र लगा दे। मोमबत्ती कुछ खल रही है। ठीक से नही जल रही है।
"प्राणों का दीप जलने दो
जीवन को गति मिलने दो !!"
काव्य की एक विशेषता है कि एक ही वाक्य के कई अर्थ हो सकते हैं, या एक ही वाक्य कई लोगों से कई बातें कह सकता है.
मुझे इन पंक्तियों ने बहुत स्पर्श किया एवं जीवन के कई महत्वपूर्ण पाठ एक बार और याद दिला दिया -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?
आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद ! अविनाश जी को चित्र निराला लगा तो पंकज जी को ठंडी मोमबत्ती खल रही है, वे सुनहरी लौ का दिया उस चित्र की जगह चाहते हैं... जब शास्त्री जी की टिप्पणी पढी तो स्पष्ट हो गया कि एक ही वाक्य या चित्र को देख कर अलग अलग लोगों मे अलग अलग विचार और भाव जन्म लेते हैं... उन भावों को महसूस किया तो पाया कि मानव प्रकृति निराली है... तहे दिल से आप सबकी शुक्रगुज़ार हूँ कि आप अपना समय देते हैं और मै आपकी प्रतिक्रियाओं से लाभ उठा पाती हूँ ..
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