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बुधवार, 21 नवंबर 2007

मृत्यु का स्वागत करता 46 साल का प्रोफेसर(Dying Professor's Last Lecture)

मुत्यु को इतने प्यार से मुस्करा कर कोई गले लगा सकता है इसका जीता जागता उदाहरण अमेरिका के कॉलेज का कम्पयूटर साइंस का प्रोफेसर 46 वर्षीय रैण्डी पॉश. जिन्हें कैंसर है और कुछ ही महीनों के मेहमान हैं. दस किश्तों में उन्होंने जो लास्ट लैक्चर दिया है उनमें ज़िन्दगी को ज़िन्दादिली से जीने की मह्त्त्वपूर्ण बातें छिपी हैं.
प्रो. रैण्डी ने लैक्चर शुरु करने से पहले दण्ड बैठक लगा कर सबको यह कहना चाहा कि अगर कोई मेरी तरह दण्ड बैठक लगा सकता है तभी सहानुभूति दिखाने की कोशिश करे.
बड़ी सरलता से उन्होंने कहा कि यह आखिरी लैक्चर उनके बच्चों के लिए है जो अभी छोटे हैं लेकिन बड़े होकर अपने पिता को अच्छी तरह समझ सकेंगे.
अपनी पत्नी को जन्मदिन की बधाई देते हुए खुद मुस्कराते हुए सभी को रुला दिया. आँसू पोंछती हुई पत्नी एक मोम बत्ती को बुझा कर पति के गले लग कर रो पड़ी.
अपने बचपन को याद करके आज के माता-पिता को सन्देश देते हुए कहा कि बच्चों को कभी कभी उनकी इच्छानुसार कुछ काम करने की इजाज़त दे देनी चाहिए. उन्होंने अपने कमरे की दीवारों को दिखाया जहाँ उन्होंने गणित की कुटेशंज़ लिखी हुई थीं.
कम्पयूटर आर्टस और 'वर्चुयल रीयल्टी' को लेकर उन्होंने कॉलेज में काफी नाम कमाया.
सभी सहकर्मी जो भी मंच पर बोलने आ रहे थे , सबके गले रुँधे हुए लेकिन होंठो पर मुस्कान और आँखें नम थी. बीच बीच में आँखें नम होती रहीं लेकिन अपने आप को रोक न सकी और एक के बाद एक सभी किश्तों को एक बार में देख कर ही उठी.

आशा है आप भी देखना पसन्द करेंगे.

http://www.youtube.com/watch?v=_8kUTUIveyA

(यूट्यूब के पेज़ को खोलने पर दाईं तरफ दस किश्तें भी देखी जा सकती हैं)

http://www.cs.cmu.edu/~pausch/news/index.html

(इस पेज पर प्रो. रैण्डी पॉश के बारे में पढा भी जा सकता है.)

5 टिप्‍पणियां:

काकेश ने कहा…

धन्यवाद इसे बताने के लिये. बहुत मॉटिवेटिंग है.

बालकिशन ने कहा…

आँखे नम हो गई. और क्या कहू.

कुमार मुकुल ने कहा…

आपका ब्‍लाग सहज लगा, जीवन सी सहजता। आपने बच्‍चे की बीमारी की बाबत लिखा था। जैसा आप बता रही हैं अंग बदलने की जरूरत पड रही है तो रोग जीर्ण कोटि में पहुंच गया है और ऐसे में बदल देना ठीक होगा। वैसे बच्‍चे को कष्‍ट किस तरह का हो रहा है लक्षण आदि होने पर राहत के लिए मैं अपनी सीमित जानकारी बांट सकता हूं। कैंसर से जूझ रहे प्राध्‍यापक की जिजिवीषा पर आपने अच्‍छा लिखा है। मेरा बेटा भी ब्‍लड कैंसर से जूझ कर अब ठीक है।

पुनीत ओमर ने कहा…

कुछ लोग देह की परिभाषा से आगे निकल जाते हैं. सच ही कहा है ऋषिकेश दा ने एक बार कि

"आनंद मरा नहीं, आनद मरते नही."

शाकिर खान ने कहा…

आपका ब्लॉग अच्छा लगा । यूँ ही लिखते रहिये । धन्यवाद !