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मंगलवार, 6 नवंबर 2007

मेरे पास सिर्फ एक लम्हा है !


मृत्यु अंधकारमय कोई शून्य लोक है

या

नवजीवन का उज्ज्वल प्रकाशपुंज है

या

मृत्यु-दंश है विषमय पीड़ादायक

या

अमृत-रस का पात्र है सुखदायक


तन-मन थक गए जब यह सोच सोच
तब मन-मस्तिष्क मे नया भाव जागा ------


मेरे पास सिर्फ एक लम्हा है
जो प्यार से लबालब भरा है !!

इस लम्हे को बूँद बूँद पीने दो
इस लम्हे को पल-पल जीने दो !

उसे बचपन सा मासूम ही रहने दो
मस्त हवा का झोंका बन बहने दो !

यौवन रस उसमें भर जाने दो
झर-झर झरने सा बह जाने दो !

इस लम्हे को ओस सा चमकने दो
इस लम्हे को मोम सा पिघलने दो !

पतझर के पत्तों सा झर जाने दो
झरझर कर पीले पत्तों सा गिर जाने दो !

लम्हा बना है अनगिनत पलों से कह लेने दो
लम्हा अजर-अमर है, इस मृग-तृष्णा में जीने दो !!

13 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

बहुत बड़ी बात कही आपने. सही है. एक लम्हा ही तो जीवन है. पढ़ कर आनंद आया.

Kavi Kulwant ने कहा…

आप बहुत अच्चा लिखतई है..
कभई मुंबई आना हो तो अवश्य मिलिए..

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

आप ही क्या
सब ही के पास
एक लम्हा ही है ?

आप पहचान गई हैं
हम अपरिचित से
लगते हैं
पर हमारे सभी
सपने लम्हे में ही
रहते बसते हैं।

पारुल "पुखराज" ने कहा…

इस लम्हे को ओस सा चमकने दो
इस लम्हे को मोम सा पिघलने दो !


badii khuubsurat sii baat kahi hai aapney DII,os ki thandak aur mome kii garmahat,ye combination jeevan poorn karta hai

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर!!

यही लम्हात तो ज़िंदगी बनाते हैं!!

अमिताभ मीत ने कहा…

मेरे पास सिर्फ एक लम्हा है
जो प्यार से लबालब भरा है !!

बहुत अच्छा है. बहुत ही प्यारी अनुभूति और अभिव्यक्ति. मुझे ज़्यादा वक्त नहीं मिल पाता लेकिन आज चिट्ठाजगत पे आया तो आप की रचना पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. इस एहसास के लिए शुक्रिया.

aarsee ने कहा…

मृत्यु अंधकारमय कोई शून्य लोक है
(संभवत: मृत्यु के समय जब हमारी इन्द्रियाँ शिथिल होने लगती हैं तब हम कुछ सुन नहीं पाते,कुछ देख नहीं पाते।हाँ कुछ क्षणों में हमारी आंतरिक संवेदना भी नष्ट हो जाती है)
या

नवजीवन का उज्ज्वल प्रकाशपुंज है
(बाद में क्या हो ये तो कोई देखकर नहीं आया पर अगर ईश्वर है तो उसने हमें अकेला नहीं छोड़ा,और सारे वेद पुराण सृष्टि की हर छोटी बड़ी बात को कहते हैं कि यह ऐसा है और वह ऐसा है,इसी में एक तथ्य पुनर्जन्म का है।जिसे ना कोई धार्मिक नकारता है ना ही चोटी के वैग्यानिक,परन्तु हम अपने आत्माभिमान में इसपर बिना चिंतन किये ही इसे नकारते हैं।अगर आइन्स्टीन ने कहा कि समय सापेक्षिक है तो इसके बावजूद कि हमे यह बिल्कुल अलग बात लगती है,हम इसे मान लेते हैं(इसके साथ की कफी ऊँची बात है।पर,हमारे पहले आये चिंतन को सीधे नकारते हैं।)

या

मृत्यु-दंश है विषमय पीड़ादायक
(कहा गया है कि मृत्यु के समय सब छोड़ने का मानसिक दुख इतना गहरा होता है कि वह ४०००० बिच्छू डंक के समान होता है।और दुनिया में बस ४ ही कष्ट है- जन्म.मृत्यु.जरा.व्याधि)
या

अमृत-रस का पात्र है सुखदायक
(इस दुनिया को दुखालय कहा गया है,यहा~ कि सारी खुशी मृगतृष्णा है,वह अमृतरस कैसे हो सकता है?)

तन-मन थक गए जब यह सोच सोच
तब मन-मस्तिष्क मे नया भाव जागा ------


मेरे पास सिर्फ एक लम्हा है
जो प्यार से लबालब भरा है !!

इस लम्हे को बूँद बूँद पीने दो
इस लम्हे को पल-पल जीने दो !

उसे बचपन सा मासूम ही रहने दो
मस्त हवा का झोंका बन बहने दो !

यौवन रस उसमें भर जाने दो
झर-झर झरने सा बह जाने दो !

इस लम्हे को ओस सा चमकने दो
इस लम्हे को मोम सा पिघलने दो !

पतझर के पत्तों सा झर जाने दो
झरझर कर पीले पत्तों सा गिर जाने दो !

लम्हा बना है अनगिनत पलों से कह लेने दो
लम्हा अजर-अमर है, इस मृग-तृष्णा में जीने दो !! (ना जाने हमारी कितनी जिंदगियाँ इसी तरह के सुखभोग-चाहे वह ५ इन्द्रियों का सुख हो अथवा,मन,अहम का.....

Udan Tashtari ने कहा…

अद्भुत रचना. बहुत कोमलता से उतर गई जेहन में और बस गई. ज्ञात नहीं तो अमृत-रस का पात्र है सुखदायक मान कर हर लम्हा खुशी से गुजारा जाये.

आपकी कविता ने मन मोह लिया. बहुत बधाई स्विकारें.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बरबाद करने को पूरी जिन्दगी भी कम है। जियें तो एक क्षण भी काफी है।

मीनाक्षी ने कहा…

अच्छा लगता है जब हम अपने भाव बाँटते है और एक दूसरे को आनन्द देते है.कुछ निराशा के पल बाँट कर दुखी भी करते हैं उसके लिए क्षमा..
आप सबका धन्यवाद.....
मुझे सबकी टिप्पणियों पर एक रचना लिखनी है अब...

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया रचना है।बधाई।


लम्हा बना है अनगिनत पलों से कह लेने दो
लम्हा अजर-अमर है, इस मृग-तृष्णा में जीने दो !!

Asha Joglekar ने कहा…

इतना गहन विषय और इतनी सुंदर रचना । आप मेरी बधाई स्वीकार करें । मृत्यु क्या है इसका कुतुहल तो हम सभी को है पर आपने उसे शब्दों में ढाल दिया । विश्वास रखें नव जीवन का उज्वल प्रकाश पुंज ही है यह । पर इस नव जीवन से पहले थोडे अंधकार से तो गुजरना होगा ।

डॉ० अनिल चड्डा ने कहा…

प्रोत्साहन के लिये आभारी हूँ । आशा भविष्य में भी ऐसे ही प्रोत्साहन मिलता रहेगा ।

आपकी रचना भी अत्यंत मार्मिक है ।

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।