हर्षवर्धन जी का लेख ज्यादा पढ़े-लिखे भारत को लड़कियां कम पसंद हैं पढ़कर मन बेचैन हो गया और बस सिसकते से भावों ने कविता का रूप ले लिया.
भाव मेरे वाणी बन अधरों पर आना चाहें
अंजानी शक्ति वाणी के प्राण हर लेना चाहे !
बात रुक गई, साँस घुट गई
आँखों में वीरानी छा गई !!
सिसकते भाव कुछ कहना चाहें
दुनिया कुछ न सुनना चाहे !!
भाव मेरे वाणी बन अधरों पर आना चाहें
अंजानी शक्ति वाणी के प्राण हर लेना चाहे !
सिसक कर जीते जाएँ भाव मेरे
तड़प कर मरते जाएँ भाव मेरे
सर पटक रोते जाएँ भाव मेरे
जीवन पाना चाहें भाव मेरे !!
भाव मेरे वाणी बन अधरों पर आना चाहें
अंजानी शक्ति वाणी के प्राण हर लेना चाहे !
13 टिप्पणियां:
मैं समझ सकता हूं भाव। पर समय बदल रहा है। भविष्य पर आस लगाई जा सकती है।
आपके भाव सही हैं, पर इन बातों को दिल पे न लें ।
'पता नहीं कब हम भारतीय ये समझ पाएंगे कि दस लड़के पैदा करने से अच्छा है कि एक-दो लड़कियों को ही इतनी अच्छी परवरिश दे दी जाए कि लड़के भी उनकी किस्मत से रश्क करें। उम्मीद करता हूं कि कम से कम हमारी पीढ़ी अगली पीढ़ी के लिए ऐसी सामाजिक विसंगति तैयार करके नहीं देगी।'
सहमत हूँ आपसे.सुन्दर भाव.
आपकी पिछ्ली पोस्ट्स भी पढ़ी थीं. पर टिप्पणी ना दे पाया.
जो अनजानी शक्ति बनी है बाधा उससे लेकर संबल
हो जीवंत लड़ें हम मिलकर उमड़ रहे झंझावाआतों से
म्ज़्न में हो विश्वास तिमिर की सत्ता टिकती नहीं देर तक
सूरज मुस्काता आता है निकल अंधेरी ही रातों से
सुंदर भाव हैं ..पर यह फर्क कैसे मिटेगा यह बात समझानी बहुत मुश्किल है अभी भी
मैं भी सहमत हूँ आपसे. और कविता मे अच्छे से व्यक्त किया आपने.
मूक!!
जी मीनाक्षीजी दिल पे ना लें। मामला कुछ दूसरा भी है, पूरे देश को चलाने वाले मनमोहन सिह को कौन चला रहा है।
देश के महत्वपूर्ण प्रदेश को कौन चला रहा है।
जी मेरी क्लास में टाप प टाप पोजीशन सिर्फ बालिकाएं लाती हैं।
मल्टीटास्किंग की अभ्यस्त बालिकाओं को अब इंपलायर भी पूछ रहे हैं।
मतलब सीन अच्छा भी है। हालात बदल से रहे हैं, पूरे नहीं भी सही।
कविता के भाव गहरे और मार्मिक हैं।
मार्मिक कविता है. अर्थ समझने के लिये पृष्ठ्भूमि समझना जरूरी है, अत: कविता के आरंभ में चार पंक्तियां उस कार्य के लिये जोड दिया जाये तो कविता और भी अधिक प्रभाव डालेगी -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
आप सबको मेरा धन्यवाद ! शास्त्री जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ .वास्तव में मुझे और अधिक स्पष्ट करना चाहिए था कि हर्षवर्धन जी की पोस्ट पढ़कर मन अशांत हो गया तो अपने देश की ही नहीं पूरे विश्व की मासूम लड़कियाँ याद आ गई जो सिसकती हुई दूसरो के जीवन मे मुस्कान बिखेर रही हैं.
सुंदर भाव हैं
अम आलोक जी से सहमत हैं
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