क्यों तटस्थ रहूँ मैं सदा मौन
अनुचित पर चिंतन करे कौन !
क्यों खामोश रहे मेरी सोच
क्यों ने मिले उसे कोई बोल !
अनुचित पर चिंतन करे कौन !
क्यों खामोश रहे मेरी सोच
क्यों ने मिले उसे कोई बोल !
क्यों उठे हूक जब होती चूक
क्यों चुभे शूल जब होती भूल !
क्यों हर वर्ग अलग हर पर्व मनाएँ
क्यों ने वर्ग सभी सब पर्व मनाएँ !
क्यों मेरी दीवाली, तेरी ईद, बड़ा-दिन उसका
क्यों न हो हर पर्व तुम्हारा , मेरा उसका !
सीधा नहीं सवाल , बड़ा ही जटिल प्रश्न है
मेरे सपनों का जश्न नहीं, यह और जश्न है !!
15 टिप्पणियां:
सीधा नहीं सवाल लेकिन, चलो एक जबाब ढूंढे.
मिलकर पर्व मनायें सब जन,खुशियाँ के खिताब लूटें.
भावनाओं के दीये में जब जलेगी 'स्नेह' से बाती
तभी पहुँचेगी हर घर में निश्छल प्रेम की पाती
(यहाँ स्नेह से मेरा आशय तेल से है)
प्रश्न वाकी बड़ा जटिल है!!
बढ़िया लिखा है आपने!!
सपना नहीं, सच इसे बनना होगा
स्वप्न-जंजाल से इसे बचना होगा
जश्न तभी हरेक पर्व यूं बन पाएगा
दिलों तक सब जब संदेश जाएगा
क्यों हर वर्ग अलग हर पर्व मनाएँ
क्यों ने वर्ग सभी सब पर्व मनाएँ !
ये पंक्तियाँ बडी अच्छी लगी। वैसे ये अलग-अलग वर्ग न रहे, सब आपस मे मिल जाये तो और अच्छा हो जायेगा।
वर्ग सभी हर पर्व मनायेंगे । अगर हम भी बडा दिन मनायेंगे । ईद की सेवियाँ खायेंगे । गुरुपर्व पर
गुरुद्वारे जायेंगे । पहल करनी होगी ।
मानव में इनेट विविधता है - अत अपने घर के एस्थेटिक्स, खान-पान, पर्व अलग-अलग हैं। सभ्यताओं का वैविध्य है। पर जो हो सकता है; वह है परस्पर आदर और सम्मान। वह बढ़ना चाहिये।
jitane alag alag yaar dost ho, unke tyahaar par apane aap ko self-invite karke unke ghar pahunch jaaye. Sab kuch man bhii jayegaa aur aapkii dinner banaane kii chutti. mei aaj Nepalii samaj ka Dashain (dasehra) mana kar aayii hoon.
कुछ कविताएँ पुराने दिनो की यादो के साथ जुड़ी हैं. कुछ पुराने दोस्त याद आ जाते हैं तो ऐसी कविताओं का जन्म हो जाता है. इस बार तो दीवाली हम अंर्तजाल की आभासी दुनिया मे ही मनाएँगे.
सीधा नहीं सवाल , बड़ा ही जटिल प्रश्न है
मेरे सपनों का जश्न नहीं, यह और जश्न है !!
ये पंक्तियाँ बडी अच्छी लगी।वैसे चाहे जो भी पर्व हम मनाये पूरी भावनाओं के साथ मनाएँ तभी त्योहारों की सार्थकता सिद्ध होगी , बहुत सुंदर और सारगर्भित है आपकी अभिव्यक्ति !
मन को छू लेने वाली बात कही आपने. सच है अगर ऐसा हो जाए तो दुनिया रहने के लिए और भी बेहतर हो जायेगी. किस तरह प्रयास करना है मैं तैयार हूँ.
नहीं बाटते अब दर्द शब्द , शब्दो का
शब्द सहलाते थे शब्दो को
शब्द दुलारते शब्दो को
शब्द निहारते थे शब्दो को
समय वो और था जब
शब्द पुकारते थे शब्दो को
और शब्द सुनते थे शब्दो को
अब तो धमाके होते है
जो कान बहरे करते है
शब्दो को निशब्द करते है
अब सनाटा है
सूना है आंगन शब्दो को
बंद होगये है सब वह दरवाजे
जहाँ से आना जाना था
" आयत " ,और "सबद" ,
" श्लोक " , और"टेसटामेन्ट" का
अब शब्द देते है व्यथा शब्दो को
नहीं बाटते अब दर्द शब्द , शब्दो का
वाह विश्व मैत्री का यह संदेश बाकई बहुत ही आवश्यक है… उत्थान अगर हो ऐसा तो निर्माण शिखर का ही होगा… जहाँ तुषार पिघलता नहीं हो कुंदन बनकर चमकता होगा॥
रचना बहुत पसंद आई.
दो तीन दिनों से भारत यात्रा की तैयारी करने में लगा हूँ, विलम्ब के लिये क्षमा. अब आगे तो कुछ दिन तक सेटेल होने में लगेगा भारत पहुँच कर. मगर प्रयास करके पढ़ता रहूँगा. अच्छा लगा पढ़कर. दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनायें.
मन को छू लेने वाली बात कही आपने.
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