| हमारे घर के आँगन में खिले दो फूल |
आज बड़े बेटे वरुण का जन्मदिन है.....सुबह सुबह विजय सोए हुए वरुण के माथे पर हाथ फेर कर निकल गए ऑफिस के लिए......दरवाज़ा खुलते ही सूरज की तीखे तेवर को सहन न कर पाई और वहीं से विदा करके उन्हें अन्दर आ गई...सुबह के सवा छह बजे थे लेकिन सूरज को देख कर लग रहा था जैसे दोपहर हो गई हो....बेटे के कमरे में गई.....उसे निहारा...मन ही मन आशीर्वाद दिया......
रसोईघर में गई...पानी पीकर कुछ पल डाइनिंग टेबल पर बैठी रही.....बेटे को कहा भी था कि अगर छोटे भाई के साथ अपना जन्मदिन मनाना हो तो चला जाए लेकिन जाने क्या सोच कर रुक गया......कभी कभी अपने ही बच्चों के मन की बात जान नहीं पाते हम...बेचैनी सी होने लगती है ....इसी सोच में डूबी अपने कमरे में आई...
लैपटॉप ऑन किया...जीमेल...फेसबुक....ब्लॉगज़.....खुले थे...
उन्हें मिनिमाइज़ करके स्क्रीन पर लगे दो गुलाबी फूलों को निहारने लगी...हमारे आँगन में खिले दो गुलाब के फूल.... उस घर में चारों तरफ फूल पौधे थे...खुला और बहुत बड़ा घर था... उस घर से मीठी यादें जुड़ी थीं तो कुछ बेहद कड़वी ....जिन्हें भूलना नामुमकिन है......कुछ पढ़ने लिखने का जी नहीं चाहा...उठी...रोज़ की दिनचर्या से फारिग हो कर योग करना शुरु किया... आज उसमें भी दिल नहीं लग रहा था...अपने मोबाइल पर भजन लगा कर आँखें बन्द कर लीं.....
दो भजन सुनकर फिर से स्क्रीन के सामने आ बैठी.....चमकती स्क्रीन के उस पार कितने ही लोग बैठे हैं लेकिन क्या कोई मेरे मन का हाल जान सकता है....मुँह चिढ़ाती स्क्रीन जैसे कह रही हो.... ‘मुझे क्या पता’
उठ कर फिर बेटे के कमरे में गई... प्यार से थपकाया... जन्मदिन की मुबारक देकर उसे उठने के लिए कह कर नाश्ता बनाने में किचन में आ गई.....चाय के साथ कड़क टोस्ट वरुण को अच्छा लगता है....हम दोनों ने किचन में ही लैपटॉप रख कर विद्युत से बातें करते हुए चाय नाश्ता किया....मन कुछ हल्का हुआ....विद्युत की मस्ती कुछ अलग है....मम्मी पापा और चाचू के साथ बाहर खाना खाने जाना...जब यहाँ आओगे तो एक बार फिर दोस्तों के साथ मस्ती करेंगे....
दोनों बेटों के साथ बातचीत करने से लगा जैसे कुछ ही दूरी पर सब एक साथ बैठे थे... अपने कमरे में आकर कुछ ब्लॉग़ पढ़े ..कुछ टिप्पणियाँ कीं.... फिर सोचा कि कुछ लिखा जाए....
वरुण ने मुझे देखा... कीबोर्ड पर उंगलियाँ रुक रुक चल रही हैं..मेरा दिल और दिमाग कहीं खोया है..... शायद अतीत की उन मीठी यादों में जहाँ से वापिस लौटने का जी न चाहे..... समझ गया वह.....पास आकर खड़ा हो गया.... हल्की मुस्कान चेहरे पर.... आँखें बोलती सी..........
मेरे बारे में क्या है लिखने को...... '25 साल का एक ........' मुझे देख कर आगे कुछ न कह पाया.... मैं वहीं जड़ हो गई....कहना चाहती थी....’क्या कहते हो.....क्यों कहते हो......’ कुछ कहने से पहले ही जैसे वह समझ गया..... “सच है मम्मी..... यही सच है ...... जानता हूँ समाज के अनुसार मुझे भी अपने पापा की तरह नौकरी करके परिवार बनाने की बात सोचनी चाहिए...एक पुराने ढर्रे सी ज़िन्दगी जीने की सीख को अपना लेना चाहिए.....पर मैंने अपने मन की खिड़्कियाँ बन्द कर ली हैं.....
बचपन था वो....जब 12 साल की उम्र में दर्द ने जकड़ा लिया था ...... स्कूल और कॉलेज उसी दौरान खत्म हुए....... मुझे कुछ याद नहीं..... शायद मैं याद रखना ही नहीं चाहता.... बस याद है दर्द से मुक्ति पाकर दो साल का मस्त जीवन ..... छोटे भाई के साथ आधी आधी रात तक की मस्ती....हर रोज़ की आवारागर्दी.... सबके साथ
कदम से कदम मिला कर चलने की खुशी... नए पंखों के साथ उड़ने का आनन्द सिर्फ मैं ही महसूस कर सकता हूँ .....हर रोज़ किसी नई राह पर जाने की ललक..... बस यही याद है मुझे......जैसे सारा जीवन जी लिया हो.....
सर्जरी के बाद से अब तक नहीं सोचा था..... सोचना ही नहीं चाहता था......लेकिन आज सोचता हूँ ..... खुशी के पल जितने मिले...उन्हें सहेज लिया....अब उनसे ताकत लेकर नए जीवन की शुरुआत करनी है....बस आपका आशीर्वाद चाहिए...
बेटा बोलता जा रहा था और मैं सुन रही थी....शायद हर इंसान की अपनी एक दुनिया होती है...जिसमें वह अपने तरीके से सोचता है,,,जीता है... दुखी होता है...खुश होता है....माँ हूँ फिर भी मानती हूँ कि शायद बेटे के मन का कोई कोना है जो मैं नहीं देख पाई...क्या पता....कई कोने हो अनदेखे....फिर भी दुआ है कि वह हर पल भरपूर जी ले....












