| रेगिस्तान का सूर्यास्त |
चंचल मन की चाह अधिक है
कोमल पंख उड़ान कठिन है
सीमा छूनी है दूर गगन की
उड़ती जाऊँ मदमस्त पवन सी
साँसों की डोरी से पंख कटे
पीड़ा से मेरा ह्रदय फटे
दूर गगन का क्षितिज न पाऊँ
आशा का कोई द्वार ना पाऊँ !
(मन के भाव नारी कविता ब्लॉग़ पर जन्म ले चुके थे,,,आज उन्हें अपने ब्लॉग़ पर उतार दिए...)