(सन 2002 में पहली बार जब मैं अपने परिवार के साथ ईरान गई तो बस वहीं बस जाने को जी चाहने लगा. एक महीने बाद लौटते समय मन पीछे ही रह गया. कवियों और लेखकों ने जैसे कश्मीर को स्वर्ग कहा है वैसे ही ईरान का कोना कोना अपनी सुन्दरता के लिए जन्नत कहा जाता है. अपने दर्द को पीकर जीना यहाँ के लोगों को आता है इसलिए भी जन्नत है..
सफ़र की पिछली किश्तों में ( ईरान का सफ़र, ईरान का सफ़र 2 , ईरान का सफ़र 3 ) अपने दिल के कई भावों को दिखाने की कोशिश की है...)
गूगल द्वारा |
तेहरान से निकले तो लगा था कि अभी 300किमी का लम्बा सफ़र कार से तय करना है... मैं और विद्युत तो
ठीक थे... वरुण को देखा कि शायद उसे थकावट होगी लेकिन वह भी खुश ही दिखाई दिया...अली अंकल के साथ कार में आगे बैठने में उसे और भी मज़ा आ गया... रास्ते में एक बार भी रुकने के लिए नहीं कहा....गाज़विन रुकने के बाद फिर चाय के लिए शाम को ही रुके...
चाय और बिस्कुट की छोटी सी दुकान... बड़ी सी केतरी (केतली) स्टोव पर उसके ऊपर काली चाय की कूरी (छोटी केतली) ...शीशे के छोटे छोटे गिलासों में फीकी काली चाय और साथ में दो तीन टुकड़े गेन्द के... गेन्द चीनी या शक्कर ही है जो बेतरतीब से टुकड़ों में थी...मुँह में रखी और घूँट लिया ईरानी चाय का....पहला घूँट लेते ही ताज़गी महसूस हुई..... अपने यहाँ की दूध की चाय से बहुत हल्की...
डूबते सूरज की लाल स्याही ने जैसे आसमान को रंग दिया हो |
चाय खत्म करते उससे पहले ही दिन खत्म हो गया.... सलोनी साँझ ने चारों ओर के नज़ारे को और भी खूबसूरत बना दिया था...हल्की हल्की ठंड़ी हवा गालों को थपथपा रही थी... एक ठंडी झुरझुरी सी हुई... फौरन कार में जा बैठे....
चलते चलते अब सिर्फ पहाड़ियों के काले साए दिखाई दे रहे थे.... उन पर कहीं कम तो कहीं ज़्यादा घरों में जलती रोशनी के कारण वे सभी तारों से टिमटिमाते दिखाई दे रहे थे...
रश्त से 30 किमी पहले इमामज़ादा हाशिम की मस्जिद आती है.... जिसके बाहर दान बक्सा लैटर बॉक्स की तरह का दिखाई दे रहा था...अली ने रुक कर जेब से रियाल निकाले और हम सब को छूते हुए दानबक्से में डाल दिए... इस रास्ते से आते जाते अली कुछ पैसा दान के बक्से में डालने के लिए ज़रूर रुकते हैं....धार्मिक सोच नहीं बस दान करना है इस मकसद से.....बातों बातों में पता चला कि अपने जन्मस्थान करमशाह के यतीमख़ाने में किसी एक बच्चे के लिए हर महीने की मदद निश्चित की हुई है....
रश्त से 30किमी पहले इमामज़ादा हाशिम |
साढ़े सात हम रश्त में दाख़िल हुए....उत्तरी ईरान के गिलान प्रांत का रश्त शहर समुन्दर से सात मीटर नीचे है और सबसे ज्यादा नमी वाला इलाका माना जाता है...रश्त शहर सबको आकर्षित करता है...ईरान के सभी राज्यों के लोग यहाँ छुट्टियाँ मनाने आते हैं...यहाँ की सिल्क फैक्टरी, धान के खेत...चाय की बागवानी... देखने लायक है... यहाँ के घर ईरान के बाकि राज्यों से अलग दिखते हैं...लाल स्लेटों की छतें और चौड़े बरामदे हर घर में दिखते हैं ..चाहे विला हो या फ्लैटस.....
लगभग सभी घरों की छतें लाल स्लेटों से बनी होती हैं |
यहाँ भी ट्रेफिक का वही हमारे देश जैसा हाल दिखा...लेकिन यहाँ भी कारें और उनके ड्राइवर एक दूसरे की भाषा समझते हैं...एकदम पास से निकल जाते हैं या निकलने देते हैं...औरतें भी उसी तरीके से ड्राइवरिंग करते हुए दिखीं.....सड़कों पर सबसे ज़्यादा पेजो कार दिखीं...हर मोटर साइकिल पर आगे बड़ा सा शीशा देख कर अजीब सा लगा....
नए पुराने बाज़ारों को पार करते हुए आगे बढ़ रहे थे... सड़के के किनारे फुटपाथ पर लोगों की भीड़ पैदल ही चलती दिखाई दी...सभी औरतों ने ओवरकोट और स्कार्फ़ पहना था....ओवरकोट काले और नीले रंग के ही थे..कहीं कोई चटकीला रंग नहीं दिखा.... ओवरकोट जिसे यहाँ मोंटू कहा जाता है....कुछ का घुटनो तक और कुछ का घुटनों से नीचे था...काली पैंट या जींस के साथ..... बालों का डिज़ाइन दिखाने के लिए लड़कियों ने स्कार्फ़ से आधा सिर ही ढक रखा था....चौंकाने वाली बात यह थी कि लगभग दस में से आठ जवान लड़के लड़कियों के नाक पर बैंडेज थी... पूछने पर पता चला कि कुछ बच्चे नाक की सर्जरी करा कर दिखाने चाहते हैं कि वे दकियानूसी नहीं बल्कि नए ज़माने की सोच रखते हैं.....औरतें भी इस सोच को दिखाने के लिए आगे रहती हैं...आइब्रोज़ , लिप लाइनर और आई लाइनर की खूबसूरती के लिए टैटूज़ बनवाए जाते हैं....कुल मिलाकर कॉस्मैटिक सर्जरी यहाँ दीवनगी की हद तक का शौक है....
पार्किंग की कमी और चुस्त रहने के लिए लोग पैदल चलना ज्यादा पसन्द करते हैं...यूँ ही नज़र चली गई और देखा कि सबके जूते आरामदायक हैं जिसके कारण चलने में कोई मुश्किल नहीं होती होगी...रियाद में तो बिल्कुल फैशन नहीं पैदल चलने का, बशर्ते कि डॉक्टर चलने की हिदायत दे तभी लोग सैर करते दिखाई देते हैं वह भी वहीं जहाँ सैर के लिए रास्ते बनाए हों... दुबई में खूब लम्बी सैर हो जाती है चाहे मॉल हो या खुले बाज़ार हों...और अपने देश का तो कहना ही क्या....
कार बाज़ार से होती हई एक गली में मुड़ी और रुक गई... समझ गए कि घर आ गया है...घर पहली मंज़िल पर था...पहली मंज़िल की एक खिड़की खुली और लिडा ने नीचे झाँका.....लिडा और बेटा अर्दलान दोनों नीचे आ गए...
सभी एक दूसरे से गले मिले..... सामान लेकर ऊपर पहुँचे... घर के अन्दर घुसने से पहले जूते बाहर उतारे...
बेटे अर्दलान ने दरवाज़े पर रुकने के लिए कहा और एक फोटो खींच ली, उसके बाद से सोने तक उसने कई तस्वीरें खींची....
ताज़ा चाय और वहाँ की खास मिठाइयों के साथ स्वागत हुआ.....डिनर में वहाँ के पकवानों के साथ साथ अपने देश की काली उड़द की दाल भी बनी थी, उसे बनाने का तरीका वह इंडिया से सीख कर आई थी...एम.डी.एच का करी मसाले का इस्तेमाल किया गया था...हमारी तरह दाल सब्ज़ी को तड़का नहीं लगाया जाता...उबलती हुई दाल सब्ज़ियों और माँसाहारी भोजन में मसाले और टमेटो प्यूरी डाल दी जाती हैं...
लगा ही नहीं कि किसी अजनबी देश में हैं या अजनबी लोगों से मिलना हो रहा है... हालाँकि अर्दलान कुछ झिझक रहा था, उसे अंग्रेज़ी बिल्कुल नहीं आती थी लेकिन फिर भी उसे अपने पर यकीन था कि जल्दी ही वरुण विद्युत के साथ बात करते हुए सीख लेगा....
डिनर के बाद ताज़े फल और एक बार फिर चाय का दौर चला... संगीत को लगातार बज ही रहा था लेकिन रोचक बात यह थी कि हिन्दी गीत बज रहे थे..... उस वक्त तय किया गया कि अगले ही दिन रामसार चलेंगे...खासकर वरुण के लिए... गर्म पानी के चश्मे में नहाना सेहत के लिए तो अच्छा है ही , वहाँ की खूबसूरती भी देखने लायक है.....
अगले दिन निकले रामसार की ओर....अली लिडा के दोस्त मारी और उसके पति बच्चों सहित एक खास जगह पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे.... अपनी अपनी कार में दोनों परिवार निकल पड़े रामसार की ओर.... आसपास की खूबसूरती देख कर हम दंग रह गए....कुदरत की इस खूबसूरती से दुनिया बेखबर है.....हरे भरे पहाड़...पाम, ओक और नारंगी के पेड़ों से लदे पहाड़....दूर दूर तक फैले रंगबिरंगे फूलों का बिछौना.....न कंकरीट का जंगल...न इंसानों की भीड़...खामोश खूबसूरत कुदरत को जैसे यहाँ सुकून मिल रहा हो....
रश्त से निकलते |
रामसार मज़न्दरान जिले का बहुत ही खूबसूरत शहर है...यह शहर अलबोर्ज पहाड़ियों, गर्म पानी के चश्मे, और आखिरी शाह के म्यूज़ियम(मूज़ेह ख़ाक ए शाह) के कारण मशहूर है....
अलबोर्ज पर्वत श्रृंखला अज़रबाइजान और अर्मेनिया से होती हुए पूर्व की ओर तुर्कमेनिस्तान और अफगानिस्तान तक चली जाती है....तेहरान से निकलते हुए जब गाजविन पहुँचते हैं तो अचानक ही कुदरत अपना रूप बदल लेती है.... अलबोर्ज
पहाड़ियों की खूबसूरती देखते ही बनती है...
अलबोर्ज की पहाड़ियाँ |
यहाँ के गर्म पानी के चश्मे सेहत के लिए अच्छे माने जाते हैं.... अली ने औरतों और अपने लिए अलग अलग हमाम बुक करवा लिए..औरतें एक तरफ चली गईं और आदमी बच्चों के साथ दूसरी तरफ चले गए... बहुत गर्म पानी था... लेकिन कुछ ही पलों में सारी थकान एक दम दूर और गज़ब की उर्जा शक्ति की महसूस हुई.....
कहा जाता है कि पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा प्राकृतिक रेडियोधर्मिता (natural radioactivity) रामसार में पाई जाती है.... सेहत पर बुरा असर होते नहीं देखा गया है बल्कि यहाँ के लोगों की सेहत और अच्छी पाई गई..इसलिए यहाँ गर्म पानी के चश्मे स्पा के रूप में लोग अपने और पर्यटकों के लिए प्रयोग करते हैं.
रामसार में गर्म पानी का चश्मा (स्पा) |
नहाने के बाद दोपहर के खाने के लिए वहाँ से बाहर निकले....कुछ देर में एक रेस्तराँ में पहुँचे जहाँ बिना देर किए ही टेबल पर खाना लग गया...खाने से पहले अखरोट, चीज़, हरे पत्ते , अखरोट और अनारजूस के पेस्ट में जैतून और वहाँ की रोटी संगक रखी जाती है, रोटी में चीज़, अखरोट का टुकड़ा और हरा पत्ता रख कर उसे लपेट कर खाया जाता है.... कभी जैतून डाल कर खाया जाता.... दोनों ही तरीकों से खाना एक नया अनुभव तो था ही... स्वाद भी बढिया लगा....उसके बाद मेन कोर्स का खाना आता है....अब यहाँ मेनकोर्स में क्या खाया...शाकाहारियों का ध्यान रखते हुए इस पर चर्चा नहीं करते....
उसके बाद म्यूज़िम देखने का प्रोग्राम बना..हालाँकि वरुण थक चुका था फिर भी चुप रहा... म्यूज़ियम पहुँच कर थोड़ा घूम फिर कर वहीं के रेस्तराँ में बैठ गया.....हम सब भी जल्दी ही वापिस लौट आए... अखरोट और दालचीनी से भरे बिस्कुटों के साथ चाय पी और घर की ओर लौटे.....
आख़िरी शाह के म्यूज़ियम के बाहर |
छोटे बेटे विद्युत के साथ लिडा की दोस्त मारी |
अभी रास्ते में ही थे कि लिडा की मम्मी का फोन आ गया कि कल हम सब उनके यहाँ पहुँचे डिनर के लिए....उन्हें ना करने का तो कोई सवाल ही नहीं था...मारी और फरज़ाद भी अपने घर आने की दावत दे चुके थे....लिडा की एक और दोस्त कियाना का भी फोन आ चुका था.....बड़े बुर्ज़ुगों का प्यार और आशीर्वाद तो स्वाभाविक होता है लेकिन दोस्तों के दोस्तों का प्यार और सत्कार पाकर हम मंत्रमुग्ध हो गए...अगले दिन लिडा के मॉमान बाबा को आने का वादा करके घर पहुँचे..घर पहुँच कर ताज़ी चाय और फलों के साथ साथ लिडा की पसन्द के हिन्दी गीत सुने........
अगली बार सफर की कुछ और यादों के साथ मिलते हैं फिलहाल अभी इतना ही...ख़ानाबदोश ज़िन्दगी है..पुरानी तस्वीरें मिलना मुश्किल लगा फिर भी कुछ तस्वीरें जुटाने में कामयाब हो गए...
कैसा लगा यहाँ तक का सफ़र ज़रूर बताइएगा.....
18 टिप्पणियां:
woww......आज मन तृप्त हुआ... ईरान के बारे में बहुत सारी बातें पता चलीं....मन मिल जाएँ फिर तो देश-धर्म कोई मायने नहीं रखते....आपके आलेख से आपकी दोस्ती की मीठी खुशबू आ रही है.
तस्वीरें तो बहुत ख़ूबसूरत हैं.
एक मेरी सहेली की बहन भी दो साल के लिए ईरान में थी...वो भी नाक पर पट्टी का जिक्र करती हैं कि वहाँ के लोगो को अपनी लम्बी नाक पसंद नहीं...सब सर्जरी करवा लेते हैं :)
I have never been to this beautiful place . Thanks for this travelogue.
बेहतरीन यात्रा विवरण ... पढके आनंद आ गया ... घर बैठे यात्रा का मज़ा ले लिए ... और क्या चाहिए ... इस सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई !
ऐसी जगह जहाँ के बारे में लगभग शून्य जानकारी है. बहुत अच्छा लगा विस्तार से जानकार. सर्जरी वाली बात थोड़ी अजीब सी पर रोचक लगी.
मज़ेदार है!
......बेहतरीन यात्रा विवरण
@रश्मि..विद्युत के साथ जो दोस्त बैठी हैं..उन्होने भी नाक की सर्जरी करवाई है.. अभी तो हम बच गए..इस फरवरी जब गए थे तो मेरी आइब्रोज़ करवाने की जिद की थी..
@ज़ील..सच में बहुत खूबसूरत देश है उतने ही प्यारे वहाँ के लोग है..
@सैलजी.. शुक्रिया..
@अभिषेक..नाक की सबसे ज्यादा सर्जरी ईरान मे ही होती है ..
@अभयजी...शुक्रिया
@शुक्रिया संजय..
मिनाक्षी जी, माफ कीजियेगा। मेरे विचार से,
यह चिट्ठी कुछ बड़ी हो गयी। इसे तीन या चार चिट्ठियों में कहतीं, तो अच्छा होता। एक अच्छी चिट्ठी में, २०० से २५० शब्द होने चाहिये, जब तक कि कोई खास कारण न हो।
चिट्ठी का शीर्षक 'ईरान का सफ़र 4'भी नीरस लगता है। कुछ रुचिकर होता तो बेहतर होता।
मीनाक्षी जी यात्रा संस्मरण वो भी इतना दिल से लिखा हुआ ...
तसवीरें भी बहुत खूबसूरत हैं ....
बहुत सी जानकारी मिली इरान के बारें ....
aabhaar ....
@उन्मुक्तजी..यकीन मानिए मुझे बहुत अच्छा लगा इस तरह आपका कहना...आइन्दा ध्यान रखूँगी और शीर्षक के बारे में मैं खुद भी सोच रही थी...
@उन्मुक्तजी..यकीन मानिए मुझे बहुत अच्छा लगा इस तरह आपका कहना...आइन्दा ध्यान रखूँगी और शीर्षक के बारे में मैं खुद भी सोच रही थी...
मजा आ रहा है इरान घूमने में....तस्वीरें भी बेहतरीन हैं वर्णन की तरह ही....
सुँदर और सजीव यात्रा विवरण . जिवंत तस्वीरें . अगर हो सके तो इरान के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे पर कुछ प्रकाश डालें. आभार .
इरान की सुंदरता के बारे में तो आपने लिखा ही है, लेकिन यह तो हम जानते हैं कि शायद दुनिया में ईरानी ही सबसे ज्यादा खूबसूरत होते हैं। आपकी आँखों से ईरान को समझना अच्छा लग रहा है।
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर भ्रमण कर पाया हूँ इस दौरान आपके यात्रा वृतांत, सस्मरण ( देल्ली से दुबई , इरान का सफ़र १,२,३ और ४ एक एक कर पढ़ डाले रुचिकर लगते गए और मैं पढता चला गया ऐसा प्रतीत हुआ कि इन स्थानों का जीवंत दृश्य आँखों पर तैर रहा है. यथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा सदा बनी रहे !
एक सांस्कृतिक यात्रा संस्मरण -कहते हैं कैस्पियन सागर के कश्यप ऋषि थे-
यह एक अद्भुत जेनेटिक फायिन्डिंग है कि इरान के और काफी भारतीय लोगों के वाई क्रोमोजोम
पर जींस की समानता उन्हें एक मूल का प्रमाणित करती हैं -जैसे मेरा ही मामला है -
यहाँ देखिये न ...(आप मेरे पूर्वजों के देश में गयीं :) ) -
http://indianscifiarvind.blogspot.com/2008/06/blog-post_25.हटमल
अगर आप लागिन कर आगे बढना चाहती हैं तो मेरे कोड से आगे बढ़ सकती हैं जो इस पोस्ट में दिया गया है !
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