Translate

सोमवार, 31 दिसंबर 2007

मैं स्वार्थी हूँ

नए साल में छुटकारा कैसे पाऊँ उससे ? लिखने का एक मुख्य कारण मेरा स्वार्थ है. मीर साहब और शेख साहब कहा करते थे कि दुयाओं में गज़ब का असर होता है. मीर साहब रियाद स्कूल में उर्दू के उस्ताद थे और शेख साहब हिन्दीविभाग के अध्यक्ष हुआ करते थे. आजकल दोनो रिटायर हैं और कभी कभी दूसरे मित्रों से उनके बारे में हालचाल मालूम कर लेते हैं. रियाद में रहते हुए एक बात पर अटल विश्वास हो गया था कि परिचित अपरिचित सभी जब एक दूसरे के लिए दुआ माँगते हैं तो उसका गहरा असर होता है. इन दुआओं का असर होते मैंने खुद देखा था अपने पर, अपने बेटे पर और उन दुआओं का असर आज भी दिखाई देता है.
होता यह है कि जब हम दूसरों के लिए बिना स्वार्थ दुआ माँगते हैं तो एक पल के लिए अपने स्वार्थों को भूल कर दूसरे के हित के लिए, उसके कल्याण की कामना करते हैं. उस पल में किसी दूसरे के लिए की गई प्रार्थना असर कर जाती है. भाव-तरंगें शक्ति-पुंज बन कर सकारात्मक रूप में उस तक पहुँचने लगती हैं जिसके लिए प्रार्थना की गई है.
बस इसी विश्वास ने मुझे स्वार्थी बना दिया. नए वर्ष में ब्लॉगर परिवार से भी शुभकामनाएँ और दुआएँ पाने का लालच रोक न पाई.
वरुण की प्रेयसी पीड़ा के विषय पर फिर कभी चर्चा करेंगे अभी तो आप अपने परिवार के साथ 2007 के बचे कुछ घण्टों को नए वर्ष के आने तक खुशी खुशी मनाइए.
हम यहाँ दोनो बेटो के साथ और विजय दमाम से अंर्तजाल पर आभासी दुनिया में मधुर संगीत का आनन्द लेते हुए पुराने साल को अलविदा करते नए वर्ष का स्वागत करेंगे.
एक बार फिर सबको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

रविवार, 30 दिसंबर 2007

कैसे रोकूँ, कैसे बाँधू जाते समय को












कैसे रोकूँ, कैसे बाँधू जाते समय को
जो मेरे हाथों से निकलता जाता है.

कैसे सँभालूँ, कैसे सँजोऊँ बीती बातों को
भरा प्याला यादों का छलकता जाता है.

विदा करती हूँ पुराने साल को भारी मन से
नए वर्ष का स्वागत करूँ मैं खुले दिल से !!


क्षण-भँगुर जीवन है यह
हँसते हुए गुज़ारना !

रोना किसे कहते हैं यह
इस बात को बिसारना !

काम, क्रोध, मद, लोभ को
मन से है बस निकालना !

झूठ को निकृष्ट मानूँ
सच को सच्चे मन स्वीकारूँ !

जैसे लोहा लोहे को काटे
छल-कपट को छल से मारूँ !

त्याग, सेवा भाव दे कर
असीम सुख-शांति मैं पाऊँ !

कोई माने या न माने
प्रेम को ही सत्य मानूँ !


मानव-स्वभाव स्वयं को ही नहीं मायाकार को भी चमत्कृत कर देता है. आने वाले नव वर्ष में जीवन धारा किस रूप में आगे बढ़ेगी कोई नहीं जानता.
सबके लिए शुभ मंगलमय वर्ष की कामना करते हैं.

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

मीरा राधा की राह पे चलना

पवन पिया को छू कर आई
पहचानी सी महक वो लाई.

गहरी साँसें भरती जाऊँ
नस-नस में नशा सा पाऊँ.

पिया प्रेम का नशा अनोखा
पी हरसूँ यह कैसा धोखा.

पिया पिया का प्रेम सुधा रस
मीत-मिलन की जागी क्षुधा अब.

सजना को देखूँ सूरज में
वो छलिया बैठा पूरब में.

चंदा में मेरा चाँद बसा है
घर उसका तारों से सजा है.

मेघों में मूरत देखूँ मितवा की
घनघोर घटा सी उनमें घुल जाऊँ.

पिया मिलन की प्यास जगी है
दर्शन पाने की आस लगी है.

मीरा राधा की राह पे चलना
जन्म-जन्म अभी और भटकना !!

ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ

विषैला शिशु-मानव

प्रकृति का ह्रदय चीत्कार कर रहा विकास के हर पल में !
विषैला शिशु-मानव हर पल पनप रहा उसके गर्भ में !

नस-नस में दूषित रक्त दौड़ रहा
रोम-रोम तीव्र पीड़ा से तड़प रहा !

पल-पल प्रदूषण भी फैल रहा
शुद्ध पर्यावरण दम तोड़ रहा !

मानव-मन में एक दूसरे के लिए घृणा का धुँआ भर रहा !
रक्त नहीं बचा अब, सिर्फ पानी ही उसके तन में बह रहा !

मानव-मन संवेदनशीलता खोज रहा
कैसे पा जाए यही बस सोच रहा !

आशा है मानवता की आँखों में
आश्रय पाती मानव की बाँहों में !!


नास्तिक फिल्म मे कवि प्रदीप द्वारा गाया गया गीत 'कितना बदल गया इंसान' सुनकर जहाँ दिल डूबने लगता है वहीं दूसरी ओर हेमंत और लता द्वारा गाया इसी फिल्म का दूसरा गीत मन को हौंसला देता है.

कितना बदल गया इंसान



गगन झनझना रहा

बुधवार, 26 दिसंबर 2007

सुनहरा अतीत गीतों में गुनगुनाता हुआ .....

आज पहली पोस्ट जो खुली रेडियोनामा की "फ़िज़ाओं में खोते कुछ गीत" जिसे पढ़कर लगा कि जहाँ चाह हो, वहाँ राह निकल आती है...
संयोंग की बात कि हमारे सिस्ट्म में कुछ पुराने गीतों का फोल्डर है जिसमें उषा जी का गाया हुआ 'भाभी आई' गीत है. सुर नूर लखनवी के हैं और संगीत दिया है सी रामचन्द्रन ने.
हालाँकि अन्नपूर्णा जी सुधा मल्होत्रा का गाया गीत सुनना चाहती हैं , इस बात की कोई जानकारे नहीं है हमें. फिलहाल इस गीत को सुनिए ..आशा करती हूँ कि आपको पसन्द आएगा.

कपट न हो बस मै तो जानूँ !

तुम छल क्यों करते मैं न जानूँ
क्यों मन रोए मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !

निस्वार्थ भाव स्वीकार करें तुम्हे
तुष्ट न क्यों तुम मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !

नैनों में है नहीं हास मुक्त
वीरान हैं क्यों मन मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

भाव ह्रदय के हैं अति शुष्क
पाषाण बने क्यों मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

मुक्त हास से स्नेह भाव से
मुख दीप्तीमान हो इतना जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

मंगलवार, 25 दिसंबर 2007

हाईबर्नेशन की अवस्था में ही सभी पर्वों पर शुभकामनाएँ !

when christmas comes to town




एक बार हाइब्रेशन की अवस्था में जाने पर शीत ऋतु में बाहर आने में एक सिहरन सी होती है. एक हफ्ता क्या बीता जैसे हम ब्लॉगजगत की गलियाँ ही भूल गए. बदहवास से इधर उधर देख पढ़ रहे हैं. "एक शाम ...ब्लागिंग का साइड इफेक्ट....नये रिश्तों की बुनियाद बन चुकी थी।" शत प्रतिशत सच है.
सोचा नहीं था कि हमारी मुलाकात को बेजी इतने सुन्दर रूप में यादगार पोस्ट बना देगीं.पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आया ही...टिप्पणियाँ पढ़कर आनन्द चार गुना और बढ़ गया. सोचने लगे कि हम इसी ब्लॉग परिवार का हिस्सा हैं और यह सोचकर अच्छा लगने लगा.
उस शाम के बाद हम पतिदेव विजय और उनके छोटे भाई की मेहमाननवाज़ी में जुट गए जो साउदी से ईद की छुट्टियाँ मनाने आए थे. इस बार ईद पर छोटे भाई साहब के कारण शाकाहारी व्यंजन परोसे गए नहीं तो कबाब और बिरयानी के बगैर ईद मनाने का मज़ा कहाँ !
ईद के बाद ईरानी परिवार के साथ ऑनलाइन चैट करके शब ए याल्दा मनाई गई. इस रात को सबसे लम्बी रात माना जाता है. इस रात दिवान ए हाफिज़ पर चर्चा होती है और उसी किताब से ही अपना फाल निकाला जाता है बस इतना ही मालूम है. एक शब ए याल्दा हम ईरान में बिता चुके हैं जिसकी मधुर यादें आज भी मस्ती में डुबो देती हैं. हमारे मित्र अली के बिज़नेस पार्टनर मुहन्दिस ज़ियाबारी हाफिज़ पर बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन फारसी में. अली और उनकी पत्नी लिडा बारी बारी से अंग्रेज़ी में बताते हैं. धीरे धीरे सुनने पर फारसी भी कुछ कुछ समझ आ ही जाती थी.
खुशियाँ लेकर क्रिसमस आया. मित्रों को बधाई देते हुए विजय अपने भाई को एक हफ्ते में दुबई की सैर भी करवाना चाहते थे सो हम भी उनका साथ देते हुए घूमते रहे पर दिमाग में ब्लॉग घूम रहे थे जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा था.
अब जाकर कुछ समय निकाल पाए हैं कि वापिस आभासी दुनिया में लौटा जाए.
नए साल में जाने से पहले पिछले साल को अलविदा करते हुए उसे कुछ देने की चाह....
विदाई का तोहफा !
क्या तोहफा दिया जाए हम इस सोच में डूबे हैं.
आप क्या कहते हैं !!!!

लब पे आती है दुआ ... !

रविवार, 16 दिसंबर 2007

काश गन से गिटार बनाई जाए !


पिछली दिनों अपने देश में दिल दहला देने वाली घटना पढ़कर मन व्याकुल और विचलित हो गया. उस पर फुरसतिया जी का लेख पढ़कर चंचल मन सोचने लगा कि काश गन फैक्टरियाँ गन को अगर गिटार में बदलना शुरु कर दें तो कितना अच्छा हो... गिटार बनेगा तो संगीत का जन्म होगा, संगीत की साधना से संघर्ष का नाश होगा ..... संगीत के साधक शांति दूत बनकर खड़े हो जाएँगे और चारों ओर चैन और अमन फैल जाएगा. सपने देखने से कौन रोक सकता है..अच्छे सपने सच भी हो जाते हैं..... कहते हैं सपने देखो तो उन्हें सच करने की लालसा भी जागती है.
गन से गिटार बनाने की बात दिमाग में आते ही सोचा कि मेरे जैसे कोई और ज़रूर होगा जो ऐसा सपना देख रहा होगा या देख चुका होगा और उसे सच करने की कोशिश में लगा होगा. ऐसा सपना Cesar Lopez ने देखा और उसे सच करने को चल रहा था शांति की राह पर हथियार को संगीत का साधन बना कर. खोजने पर एक और नाम मिला पीटर तोष उसके पास भी M16 गन से बनी गिटार है.




(Escopetarra on display at the United Nations Headquarters.)
















सीज़र लोपैज़ कम्बोडियन संगीतकार हैं जो शांति कार्यकर्ता हैं. देश में होने वाली हिंसा को रोकने की कोशिश में लगा रहता हैं. विशेष रूप में कम्बोडिया की राजधानी बोगोटा में जब भी हिंसा होती वहाँ की गलियों में जा जाकर हिंसा के शिकार लोगों के लिए मधुर हल्का संगीत बजाने लगता.
एक बार बोगोटा के किसी क्लब पर हुए हमले के दौरान उसने देखा कि एक सिपाही राइफल को गिटार की तरह लेकर खड़ा है. बस उसे देखते ही उसे सूझा कि क्यों इन सभी बन्दूकों को गिटार में बदल दिया जाए. शांति लाने का इससे अच्छा उपाय क्या हो सकता था. फिर क्या था सीज़र अपनी सोच को मूर्त रूप देने में लग गया और बना डाली एक गिटार जो शांति चिन्ह के रूप में जानी जाती है.

(An escopetarra is a guitar made from a modified rifle, used as a peace symbol. The name is a portmanteau of the Spanish words escopeta (shotgun/rifle) and guitarra (guitar).

सन 2003 में पहली इलैक्ट्रिक गिटार विनचैस्टर राइफल से बनाई. उसके बाद पाँच एसकोपैट्रास बनाईं गईं जिसमें से एक कम्बोडियन संगीतकार जुऐन को, एक अर्जेंटीन संगीतकार फिटो पैज़ और एक संयुक्त राष्ट्र संघ में रखी गई.बोगोटा की सरकार को भी एक गिटार सौंपी गई. एक अपने लिए रखी जिसे बाद में ब्रेवरी हिल्स के फण्ड रेज़र्स को 17,000 डालर में बेच दी. संयुक्त राष्ट्र संघ को दी गई गिटार को 2006 की डिसआर्मामेण्ट की कोंफ्रेस की प्रदर्शनी में रखा गया.
लुइस एल्बैट्रो परडेस के सहयोग से विनचैस्टर राइफल से गिटार बनाने के बाद अब 2006 तक लोपैज़ ने AK-47 की बारह मशीन गन कम्बोडिया के पीस कमीशनर के ऑफिस से लेकर गिटार में बदल दीं हैं. शकीरा, कार्लोस संटाना और पॉल मैक्कार्टनी जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों को शांति-चिन्ह के रूप में दिए जाने का विचार है. दलाई लामा ने हथियार से बनाई हुई गिटार को लेने से मना कर दिया. लोपैज़ सोच रहा हैं कि स्वयं जाकर इस विषय पर बात करेगा. वह गन से गिटार को शांति चिन्ह में बदलने के उद्देश्य को विस्तार से बताना चाहता हैं.
यूट्यूब की वीडियो की भाषा समझ आए या न आए...लेकिन हम यह तो अनुभव कर ही सकते हैं कि दुनिया में कोई भी राइफल या पिस्तौल से जुड़ी हिंसा को पसन्द नहीं करता बल्कि अपने अपने तरीके से उसे रोकने का प्रयास करता है.

शनिवार, 15 दिसंबर 2007

प्रफुल्लित हुआ मन मेरा प्रशंसा आपकी पाकर !













त्रिपदम (हाइकु) नामकरण मन भाया सबके ,
यह पढ़कर मन मेरा अति हर्षाया

सकूरा जैसी मन-भावन सुन्दरता लेके,
जन्म लें त्रिपदम हर दिन मन में आया!

प्रफुल्लित हुआ मन मेरा प्रशंसा आपकी पाकर
त्रिपदम मेरे पढ़ने होंगे गहराई में जाकर !

भोर सुहानी
प्रकृति की नायिका
रवि मुस्काया
* * *
कुछ कहतीं
लहरें पुकारती
रहस्यमयी
* * *
जलधि जल
पानी का कटोरा सा
छलका जाए

गुरुवार, 13 दिसंबर 2007

मेरे त्रिपदम (हाइकु)



मेरे पहले हाइकु का जन्म 26 अक्टूबर 2007 को हुआ जिसे एक तस्वीर के साथ अपने चिट्ठे पर लगाया. आपकी सराहना ने मेरे उत्साह को बढ़ावा दिया और हर दिन एक नए हाइकु का जन्म होने लगा. जापान के हाइकु कवि हाइकु लिखते समय 'सेजिकी' नाम का शब्दकोश पढ़ते हैं जिसमे उन्हें विभिन्न ऋतुओं अर्थात 'किगु' के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है.
चेरी ब्लॉसम ट्री जिसे जापानी भाषा में 'सकूरा' कहा जाता है, वह स्प्रिंग किगू कहलाता है. हाइकु के संग्रह को नाम देते समय जब जापान के हाइकु इतिहास का अध्ययन किया तो पाया कि प्रकृति से प्रेरित होकर हाइकू लिखे जाते हैं और उनमें चेरी के पेड़ की सुन्दरता तो सबके मन को मोह जाती है. हिन्दी मे चेरी ट्री को पदम(एक प्रकार का पेड़) भी कहा जाता है.
हाइकु तीन छोटी-छोटी पंक्तियों की पूर्ण कविता है इसलिए जो नाम मन मे उपजा, वह था त्रिपदम. त्रिपदम नाम देने के पीछे एक भावानात्मक कारण जुड़ा है. अब मैं अपने सभी हाइकु त्रिपदम के नाम से लिखूँगीं.

(The Japanese flowering cherry tree known as "Sakura" is one of the most loved trees in the world. Did you know over eight thousand Japanese cherry trees grace Washington D.C.? The trees were received in as gifts of goodwill and friendship from the people of Japan. Two American First Ladies were specifically honored by the gifts: First Lady Taft received 3020 trees in 1912, and First Lady "Lady Bird" Johnson received an additional 3800 trees in 1965. When the cherry trees are blooming, Washington is especially breathtakingly beautiful.)
स्वर्णमयी सी
धरा के हस्त धरा
कनक धन
* * * *
प्रकृति संग
चिंतन में डूबता
अकेला मन
* * * *
क्षितिज दूर
गगन धरा जुड़ें
दिवा स्वप्न है
* * * *
झीना आँचल
धूल धूसरित सा
धुँधला रूप
* * * *
फटा दामन
सूरज निकलता
हाथों से छूटा

बुधवार, 12 दिसंबर 2007

आदमीनामा

(कुछ शब्दों के अर्थों को लिखने के लिए एडिट किया था सो पोस्ट ड्राफ्ट में चली गई थी, दुबारा पोस्ट कर रही हूँ.)
कई दिनों की उलझन जिसे संजीत जी की कविता 'ढूँढता हूँ मैं' ने हवा लगाकर और उलझा दिया तो सोचा कि कुछ समय के लिए जीव-जंतुओं की तरह शीतस्वापन (hibernation) की अवस्था में चले जाना चाहिए लेकिन ऐसा संभव हो नहीं पाया. कुछ मित्र हैं जो आभासी दुनिया में वापिस ले आते हैं उनमें प्रत्यक्ष रूप में अर्बुदा है जिसके साथ हर रोज़ बैठकर हिन्दी साहित्य पर ही नहीं जीवन-चक्र पर भी चर्चा होती रहती है. अप्रत्यक्ष रूप में चिट्ठाजगत के सभी चिट्ठाकार जिन्हें पढ़कर गिरते-गिरते संभलने का अवसर मिल जाता है. पारुल जी की पोस्ट देखकर बहुत अच्छा लगा सोचा क्यों न हम भी अपनी बन्द पड़ी किताबों के पन्नों के पंख खोल दें.
आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक का उपलब्ध साहित्य अपने ब्लॉग पर दर्ज करने की सोच को आज मूर्त रूप दे ही दिया. बहुत दिनों से एक कार्य-तालिका बना कर रखी थी. उसके अनुसार सामग्री भी लिखित रूप में तैयार है. शीघ्र ही उसे एक एक करके पोस्ट करने का निश्चय किया है.

नज़ीर अकबराबादी

जन्म आगरा शहर में हुआ. अरबी-फ़ारसी के मशहूर अदीबों से तालीम हासिल की. प्रस्तुत नज़्म 'आदमीनामा' में नज़ीर ने कुदरत के सबसे नायाब बिरादर, आदमी को आईना दिखाते हुए उसकी अच्छाइयों, सीमाओं और संभावनाओं से परिचित कराया है. इस संसार को और भी सुन्दर बनाने के संकेत भी दिए हैं.

आदमीनामा

दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा1 है सो है वो भी आदमी
ज़रदार2 बेनवा3 है सो है वो भी आदमी
निअमत4 जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी

मसज़िद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ5
पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी

यां आदमी पै जान को वारे हैं आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी

अशराफ़6 और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे7 दिलपज़ीर8
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए 'नज़ीर'
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी.

1.गरीब भिखारी 2.मालदार, 3.कमज़ोर, 4.स्वादिष्ट भोजन
5.कुरान का अर्थ बताने वाला, 6.शरीफ शब्द का बहुवचन
7. काम, 8.दिल को लुभाने वाला

सोमवार, 10 दिसंबर 2007

भगवान से चैट

श्री विद्याभूषण धर से मेरी पहली मुलाकात रियाद के अवध-मंच पर हुई थी. उसके बाद से हम रियाद ही नहीं दुबई भी साथ रहे. आजकल कनाडा जाने की तैयारी में हैं. मुझे स्नेह और आदर से दीदी बुलाते हैं, जब भी मिलो कुछ न कुछ नया सुनाने को बेताब हो जाते हैं और उतनी चाहत से मैं सुनकर आनन्द पाती हूँ. भगवान से की गई चैट 'वार्तालाप' ने मुझे हमेशा प्रभावित किया. भगवान के रूप में संवाद भी अगर मानव के हैं तो विश्वास से कहा जा सकता है कि इंसान के अन्दर ही उसका वास है. काश कि हम उसे अपने अन्दर ही पा सकें !

भगवान: वत्स! तुमने मुझे बुलाया?
मैं: बुलाया? तुम्हें? कौन हो तुम?
भगवान: मैं भगवान हूँ. मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली, इसलिए मैंने सोचा तुमसे चैट कर लूँ.
मैं: हाँ मैं नित्य प्रार्थना करता हूँ. मुझे अच्छा लगता है. बचपन में माँ के साथ मिलकर हम सब नित्य प्रार्थना करते थे. बचपने की आदत व्यस्क होने तक साथ रही. साथ में माँ और बहनों के साथ बिताए बचपन के दिनों की याद
ताज़ा हो जाती है. वैसे इस समय मैं बहुत व्यस्त हूँ, कुछ काम कर रहा हूँ जो बहुत ही पेचीदा है.
भगवान: तुम किस कार्य में व्यस्त हो? नन्हीं चींटियाँ भी हरदम व्यस्त रहती हैं.
मैं: समझ में नहीं आता पर कभी भी खाली समय नहीं मिलता. जीवन बहुत दुश्कर व भाग-दौड़ वाला हो गया है. हर समय जल्दी मची रहती है.
भगवान: सक्रियता तुम्हें व्यस्त रखती है पर उत्पादकता से परिणाम मिलता है. सक्रियता समय लेती है पर उत्पादकता इसी समय को स्वतंत्र करती है.
मैं: मैं समझ रहा हूँ प्रभु, पर मैं अभी भी भ्रमित हूँ. वैसे मैं आपको चैट पर देखकर विस्मित हूँ और मुझसे सम्बोधित है.
भगवान: वत्स, मैं तुम्हारा समय के साथ का संताप मिटाना चाहता था, तुम्हें सही मार्ग-दर्शन देकर इस अंर्तजाल के युग में , मैं तुम तक तुम्हारे प्रिय माध्यम से पहुँचा हूँ.
मैं: प्रभु, कृपया बताएँ, जीवन इतना विकट, इतना जटिल क्यों हो गया है?
भगवान: जीवन का विश्लेषण बन्द करो; बस जीवन जियो! जीवन का विश्लेषण ही इसे जटिल बना देता है.
मैं: क्यों हम हर पल चिंता में डूबे रहते हैं?
भगवान: तुम्हारा आज वह कल है जिसकी चिंता तुमने परसों की थीं.
तुम इसलिए चिंतित हो क्योंकि तुम विश्लेषण में लगे हो. चिंता करना तुम्हारी आदत हो गई है, इसलिए तुम्हें कभी सच्चे आनन्द की अनुभूति नहीं होती.
मैं: पर हम चिंता करना कैसे छोड़े जब सब तरफ इतनी अनिश्चितता
फैली हुई है.
भगवान: अनिश्चितता तो अटल है, अवश्यम्भावी है पर चिंता करना
ऐच्छिक , वैकल्पिक है.
मैं: किंतु इसी अनिश्चितता के कारण कितना दुख है, कितनी वेदना है.
भगवान: वेदना और दुख तो अटल है परंतु पीड़ित होना वैकल्पिक है.
मैं: अगर पीड़ित होना वैकल्पिक है फिर भी लोग क्यों पीड़ित हैं. हमेशा हर कहीं सिर्फ पीड़ा ही दिखती है. सुख तो जैसे इस संसार से उठ गया है.
भगवान: हीरा बिना तराशे कभी अपनी आभा नहीं बिखेर सकता. सोना आग में जलकर ही कुन्दन हो जाता है. अच्छे लोग परीक्षा देते हैं पर पीड़ित नहीं होते. परीक्षाओं से गुज़र कर उनका जीवन अधिक अच्छा होता है न कि कटु होता है.
मैं: आप यह कहना चाहते हैं कि ऐसा अनुभव उत्तम है?
भगवान: हर तरह से , अनुभव एक कठोर गुरु के जैसा होता है. हर अनुभव पहले परीक्षा लेता है फिर सीख देता है.
मैं: फिर भी प्रभु, क्या यह अनिवार्य है कि हमें ऐसी परीक्षाएँ देनी ही पड़े?
हम चिंतामुक्त नहीं रह सकते क्या?
भगवान: जीवन की कठिनाइयाँ उद्देश्यपूर्ण होती हैं. हर विकटता हमें नया पाठ पढ़ाकर हमारी मानसिक शक्ति को और सुदृढ़ बनाती है. इच्छा शक्ति बाधाओं और
सहनशीलता से और अधिक विकसित होती हैं न कि जब जीवन में कोई व्याधि या कठिनाई न हो.
मैं: स्पष्ट रूप से कहूँ कि इतनी सारी विपदाओं के बीच समझ नहीं आता
हम किस ओर जा रहे हैं.
भगवान: अगर तुम सिर्फ बाहरी तौर पर देखोगे तो तुम्हें यह कभी भी ज्ञान न होगा कि तुम किस और अग्रसर हो? अपने अन्दर झाँक कर देखो, फिर बाहर से अपनी इच्छाओं को फिर तुम्हें ज्ञात होगा ,तुम जाग जाओगे. चक्षु सिर्फ देखते हैं. हृदय अंतर्दृष्टि और परिज्ञान दिखाता है.
मैं: कभी कभी तीव्रगति से सफल न होना दुखदायी लगता है. सही दिशा में न जाने से भी अधिक ! प्रभु बताएँ क्या करूँ?
भगवान: सफलता का मापदंड दूसरे लोग निश्चित करते हैं और इसके अलावा सफलता की परिभाषा हर व्यक्ति के लिए भिन्न होती है परंतु संतोष का
मापदंड खुद तुम्हें तय करना है, इसकी परिभाषा भी तुम्हीं ने करनी है. सुमार्ग आगे है यह जानना ज़्यादा संतोषजनक है या बिना जाने आगे बढ़ना , यह तुम्हें तय करना है.
मैं: भगवन, कठिन समय में, व्याकुलताओं में, कैसे अपने को प्रेरित रखें?
भगवान: हमेशा इस बात पर दृष्टि रखो कि तुम जीवन मार्ग पर कितनी
दूर तक आए हो न कि अभी कितनी दूर अभी और जाना है. हर पल इसी
में संतोष करो जो तुम्हारे पास है न कि इस बात का संताप करो कि क्या नहीं है.
मैं: प्रभु आपको मनुष्य की कौन सी बात विस्मित करती है?
भगवान: जब मनुष्य पीड़ा में होता है, वह हमेशा आक्रोश से भरा रहता है और पूछता है, "मैं ही क्यों?" परंतु जब यही मनुष्य सम्पन्न होता है, सांसारिक सुख की भरमार होती है, सफलता उसके चरण चूमती है वह कभी यह नहीं कहता, "मैं ही क्यों?" हर मनुष्य यह चाहता है कि सत्य उसके साथ हो पर कितने लोग ऐसे हैं जो सत्य के साथ हैं!
मैं: कई बार मैं अपने आप से यह प्रश्न करता हूँ, "मैं कौन हूँ? मैं यहाँ क्यों हूँ?" मेरे प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं मिलता.
भगवान: यह मत देखो कि तुम कौन हो, पर इस बात का चिंतन करो कि
तुम क्या बनना चाहते हो. यह जानना त्याग दो कि तुम्हारा यहाँ होने का उद्देश्य क्या है; उस उद्देश्य को जन्म दो. जीवन किसी अविष्कार का क्रम नहीं, परंतु एक रचना क्रम है.
मैं: प्रभु बताएँ जीवन से मुझे सही अर्थ कैसे मिल सकता है?
भगवान: अपने भूत को बिना किसी संताप के याद रखो और वर्तमान को दृड़ निश्चयी हो कर सम्भालो और भविष्य का बिना किसी भय से स्वागत करो.
मैं: प्रभु एक अंतिम प्रश्न , कभी ऐसा लगता है कि मेरी प्रार्थनाएँ मिथ्या हो जाती हैं, जिनका कोई उत्तर नहीं मिलता.
भगवान: कोई भी प्रार्थना उत्तरहीन नहीं होती पर हाँ कई बार उत्तर ही
'नहीं" होता है.
मैं: प्रभु आपका कोटि कोटि धन्यवाद, इस वार्ता के लिए. मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि नव वर्ष के आगमन पर मैं अपने आप में एक नई प्रेरणा का संचार अनुभव कर रहा हूँ.
भगवान: भय त्याग कर निष्ठा का समावेष करो. अपने संदेहों पर अविश्वास करो और अपने विश्वास पर संदेह करो. जीवन एक पहेली के हल करने जैसा है न कि समस्या का समाधान करने जैसा. मुझ पर विश्वास करो. जीवन एक मुस्कान है जो मुस्कुरा कर ही जी सकते हैं.
"विद्याभूषण धर"

रविवार, 9 दिसंबर 2007

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह ! !

सुबह सुबह हाथ में आज का अखबार....उत्तर बगदाद में 180किमी दूर एक शहर के रिहाइशी इलाके में एक सुसाइड कार बम से कई मरे और कई घायल हुए.....नज़र पड़ी ज़ख्मी रोती हुई बच्ची के चित्र पर .. दिल और दिमाग सुन्न.... क्यों दर्द सहन नहीं होता... क्यों इतना दर्द होता है...

(बेटे ने रोती हुई बच्ची की तस्वीर न लगाने का अनुरोध किया है)

मैं तर्क दे रही थी कि तस्वीर लगाने का एक ही मकसद होता है कि शायद उस मासूम बच्ची के आँसू देखकर इंसान के अंतर्मन में हलचल हो लेकिन बेटे का अलग तर्क है उसका कहना है बच्ची जो दर्द महसूस कर रही है,
वैसा दर्द और कोई महसूस नहीं कर सकता.... मेरे चेहरे की उदासी और आँखों में उभरते सवाल को पढ़कर फौरन बोल उठा ,,,माँ की बात अलग होती है.... कहता हुआ धीरे धीरे अपने कमरे की ओर चल दिया.

इस गीत को सुनिए जो मेरे दिल के बहुत करीब है ....




अल्लाह...... अल्लाह ......
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
ओ.... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह

मैंने तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
मैंने तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
रोशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह

सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सचमुच अब कोई सहर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह

या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रख दे
या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रख दे
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह

शनिवार, 8 दिसंबर 2007

सवाल

"प्रश्न-चिन्ह" कविता जो हिन्दी भाषा में सँवरी तो "सवाल" को उर्दू ने निखारने की कोशिश की... सोचा था अवध मंच पर सवाल पढ़ने का मौका मिलेगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया... आज यही "सवाल" आप सबके नाम ---


सवाल
धूप जैसे सर्द होती , इंसानियत भी सर्द होती जा रही
इंसान से इंसान की खौफज़दगी बढ़ती जा रही !

कब हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ?
सवाल है उलझा हुआ !!

इंसान में हैवान कब आ बैठ गया
रूह पर कब्ज़ा वो कर कब ऐंठ गया
इंसानियत को वह निगलता ही गया

कब हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ?
सवाल है उलझा हुआ !!

इंसान की लयाकत क्या कयामत लाई
इंसानियत पर कहर की बदली है छाई
अब तो कहरे-जंग की बदली बरसने आई

कब हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ?
सवाल है उलझा हुआ !!

दिल ए इंसान से हैवान कब डरेगा ?
इंसानियत से उसका कब्ज़ा कब हटेगा ?
दुनिया पे छाया कहर का कुहरा कब छटेगा ?

इंसाँ से इंसाँ का खौफ कब मिटेगा ?
इंसानियत का फूल यह कब खिलेगा ?
जवाब इस सवाल का कभी तो मिलेगा !!

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2007

यह प्रश्न चिन्ह है लगा हुआ !!

"सैकड़ो निर्दोष लोगों का खून बहाया गया मुझे उस से दर्द होता है. " अभय जी की इस पंक्ति ने अतीत में पहुँचा दिया. जब दस साल का बेटा वरुण साउदी टी.वी. में हर तरफ फैले युद्ध की खबरें देख कर बेचैन हो जाया करता. दुनिया का नक्शा लेकर मेरे पास आकर हर रोज़ पूछता कि कौन सा देश है जहाँ सब लोग प्यार से रहते हैं...लड़ाई झगड़ा नहीं करते .हम वहीं जाकर रहेंगे...अपने आप को उत्तर देने में असमर्थ पाती थी. ..तब मेरी पहली कविता का जन्म हुआ था उससे पहले गद्य की विधा में ही लिखा करती थी.
रियाद में हुए मुशायरे शाम ए अवध में पढ़ी गई यही पहली हिन्दी कविता थी.

प्रश्न चिन्ह

थकी थकी ठंडी होती धूप सी
मानवता शिथिल होती जा रही

मानव-मानव में दूरी बढ़ती जा रही
क्यों हुआ ; कब हुआ; कैसे हुआ ;

यह प्रश्न चिन्ह है लगा हुआ !!!!

क्या मानव का बढ़ता ज्ञान
क्या कदम बढ़ाता विज्ञान !

क्या बढ़ता ज्ञान और विज्ञान
मन से मन को दूर कर रहा !

यह प्रश्न चिन्ह है लगा हुआ !!!!

मानव में दानव कब आ बैठ गया
अनायास ही घर करता चला गया !

मानव के विवेक को निगलता गया
कब से दानव का साम्राज्य बढ़ता गया !

यह प्रश्न चिन्ह है लगा हुआ !!!!

कब मानव में प्रेम-पुष्प खिलेगा ?
कब दानव मानव-मन से डरेगा ?

कब ज्ञान विज्ञान हित हेतु मिलेगा ?
क्या उत्तर इस प्रश्न का मिलेगा ?

यह प्रश्न चिन्ह है लगा हुआ !!!!

क्रमश:

बुधवार, 5 दिसंबर 2007

अमृत की ऐसी रसधार बहे !

तपती धरती , जलता अम्बर
शीतलता का टूटा सम्बल
आकुल है वसुधा का चन्दन
रोती अवनि अन्दर अन्दर !

धरती प्यासी , अम्बर है प्यासा
कण-कण है अमृत का प्यासा !!

ओस के कण हैं बने अश्रु-कण
सूख रहे हैं वे क्षण-क्षण
पिघल रहे हिमखण्ड प्रतिक्षण
फिर भी तृष्णा बढ़ती प्रतिकण !

धरती प्यासी , अम्बर है प्यासा
कण-कण है अमृत का प्यासा !!

तपती धरती का ताप हरे
जलते अम्बर में शीत भरे
मानवता की फिर प्यास बुझे
अमृत की ऐसी रसधार बहे !

धरती प्यासी , अम्बर है प्यासा
कण-कण है अमृत का प्यासा !!

रविवार, 2 दिसंबर 2007

पाँव बने ममता भरे हाथ !!

दोनों हाथ खोकर भी हिम्मत न हारने वाली लड़की ने विवाह ही नहीं किया बल्कि माँ बनकर यह भी दिखा दिया कि जहाँ चाह है , वहाँ राह भी निकल आती है. साफ सुथरे पैर जो हाथ बने हैं , उनका हुनर आप स्वयं देखिए...


कल और आज



कल
माँ की सुन पुकार मैं उठ जाती
चूल्हा सुलगाती भात बनाती
ताप से मुख पर रक्तिम आभा छाती
मुस्कान से सबका मन मैं लुभाती !


माँ की मीठी टेर सुनाई देती
झट से गोद में वह भर लेती
जैसे चिड़िया अंडों को सेती !
लोरी से आँखों में निन्दिया भर देती !


नन्हे भाई का रुदन मुझे तड़पाता
मन मेरा ममता से भर जाता
नन्हीं गोद मेरी में भाई छिप जाता
स्नेह भरे आँचल में आश्रय वह पाता !


सोच सोच के नन्हीं बुद्धि थक जाती
क्यों पिता के मुख पर आक्रोश की लाली आती
क्रोध भरे नेत्रों में जब स्नेह नहीं मैं पाती
मेरे मन की पीड़ा गहरी होती जाती !


आज

मेरी सुन पुकार वह चिढ़ जाती
क्रोध से पैर पटकती आती
मेरी पीड़ा को वह समझ न पाती
माँ बेटी का नाता मधुर न पाती !


स्वप्न लोक की है वह राजकुमारी
नन्हीं कह मैं गोद में भरना चाहती
मेरा आँचल स्नेह से रीता रहता
उसका मन किसी ओर दिशा को जाता !


भाई की सुन पुकार वह झुँझलाती
तीखी कर्कश वाणी में चिल्लाती
पश्चिमी गीत की लय पर तन थिरकाती
करुण रुदन नन्हें का लेकिन सुन न पाती !


पढ़ना छोड़ पिता के पीछे जाती
प्रेम-भरी आँखों में अपनापन पाती
पिता की वह प्रिय बेटी है
कंधा है , वह मनोबल है !


माँ की सुन पुकार मैं उठ जाती थी
मेरी सुन पुकार वह चिढ़ जाती है
कल की यादें थोड़ी खट्टी मीठी थी
आज की बातें थोड़ी मीटी कड़वी हैं !