प्रकृति का ह्रदय चीत्कार कर रहा विकास के हर पल में !
विषैला शिशु-मानव हर पल पनप रहा उसके गर्भ में !
नस-नस में दूषित रक्त दौड़ रहा
रोम-रोम तीव्र पीड़ा से तड़प रहा !
पल-पल प्रदूषण भी फैल रहा
शुद्ध पर्यावरण दम तोड़ रहा !
मानव-मन में एक दूसरे के लिए घृणा का धुँआ भर रहा !
रक्त नहीं बचा अब, सिर्फ पानी ही उसके तन में बह रहा !
मानव-मन संवेदनशीलता खोज रहा
कैसे पा जाए यही बस सोच रहा !
आशा है मानवता की आँखों में
आश्रय पाती मानव की बाँहों में !!
नास्तिक फिल्म मे कवि प्रदीप द्वारा गाया गया गीत 'कितना बदल गया इंसान' सुनकर जहाँ दिल डूबने लगता है वहीं दूसरी ओर हेमंत और लता द्वारा गाया इसी फिल्म का दूसरा गीत मन को हौंसला देता है.
कितना बदल गया इंसान
गगन झनझना रहा