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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

विषैला शिशु-मानव

प्रकृति का ह्रदय चीत्कार कर रहा विकास के हर पल में !
विषैला शिशु-मानव हर पल पनप रहा उसके गर्भ में !

नस-नस में दूषित रक्त दौड़ रहा
रोम-रोम तीव्र पीड़ा से तड़प रहा !

पल-पल प्रदूषण भी फैल रहा
शुद्ध पर्यावरण दम तोड़ रहा !

मानव-मन में एक दूसरे के लिए घृणा का धुँआ भर रहा !
रक्त नहीं बचा अब, सिर्फ पानी ही उसके तन में बह रहा !

मानव-मन संवेदनशीलता खोज रहा
कैसे पा जाए यही बस सोच रहा !

आशा है मानवता की आँखों में
आश्रय पाती मानव की बाँहों में !!


नास्तिक फिल्म मे कवि प्रदीप द्वारा गाया गया गीत 'कितना बदल गया इंसान' सुनकर जहाँ दिल डूबने लगता है वहीं दूसरी ओर हेमंत और लता द्वारा गाया इसी फिल्म का दूसरा गीत मन को हौंसला देता है.

कितना बदल गया इंसान



गगन झनझना रहा

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

your effort is very nice and kitna badal gaya insaan , how poets like pradeep could visualize things that would happen in future . its an land mark song

बेनामी ने कहा…

विषैला शिशु-मानव आज की दुनिया का सच्……… काश ये झूठ होता।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

मगन मन महमहा रहा
सत्य सत्य है बता रहा

Sanjay Karere ने कहा…

आपके शब्‍दों ने दिल को छू लिया. इस विषय पर लिखने के लिए धन्‍यवाद. ऐसी और रचनाएं पढ़ना चाहूंगा.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

आपकी कविता और ये गीत - बहुत सिनर्जिक युग्म है।

Divine India ने कहा…

चाहे हम खुद को कोसें या कुछ भी कहें सच तो यही है कि यह विकास अपने की लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ रहा है जिस दिन भी यह पूरा हो जाएगा वही विनाश होकर नया सर्ग बनाएगा…।
वैसे कविता लाज़वाब है…।

Pankaj Oudhia ने कहा…

कालजयी रचना है। जैसे-जैसे मानव प्रगति करेगा आपकी कविता और सार्थक लगने लगेगी।