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बुधवार, 26 दिसंबर 2007

कपट न हो बस मै तो जानूँ !

तुम छल क्यों करते मैं न जानूँ
क्यों मन रोए मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !

निस्वार्थ भाव स्वीकार करें तुम्हे
तुष्ट न क्यों तुम मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !

नैनों में है नहीं हास मुक्त
वीरान हैं क्यों मन मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

भाव ह्रदय के हैं अति शुष्क
पाषाण बने क्यों मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

मुक्त हास से स्नेह भाव से
मुख दीप्तीमान हो इतना जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

12 टिप्‍पणियां:

जेपी नारायण ने कहा…

वाह, क्या अनुभूतियां हैं!

अजित वडनेरकर ने कहा…

संबंधों की नींव में बस यही एक बात तो है-
कपट न हो बस मै तो जानूँ
बढ़िया बात कही है कविता में.

Unknown ने कहा…

कपट ही संबंधों में दरार डालता है। सुंदर अभिव्‍यक्ति के लिए बधाई।

Sanjay Karere ने कहा…

बहुत सुंदर बात कही. ये आपका त्रिपदम् अच्‍छा चल रहा है. लेकिन इसमें विविधता बनाए रखने की आवश्‍यकता है अन्‍यथा जल्‍द ही एकरसता का शिकार हो जाएगा. अच्‍छा काव्‍य.......

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

लगता है पूरी तन्मयता से भगवान से सम्प्रेषण हो रहा है।

बेनामी ने कहा…

भागती दुनिया सरपट
हुई प्रतिक्रिया झट्पट
ना हो दिल मे कपट
यही है आज कि रपट

Rachna Singh ने कहा…

nice composition meenakshi

पारुल "पुखराज" ने कहा…

निस्वार्थ भाव स्वीकार करें तुम्हे
तुष्ट न क्यों तुम मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !

sundar ..bahut sundar bhaav Di,kal raat aapki post ka dusra asar thaa aaj subh ko ye kholi to alag suruur hai...shukriya

anuradha srivastav ने कहा…

भाव ह्रदय के हैं अति शुष्क
पाषाण बने क्यों मैं न जानूँ
अरे कुछ तो कीजिये........ ऐसे कैसे चलेगा।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर

मीनाक्षी ने कहा…

आप सब का शुक्रिया....
ज्ञान जी, भगवान छल तो करते ही नहीं..जो सोचते हैं सब अच्छे के लिए ही सोचते हैं.. हर नियति के पीछे कोई कारण... !
संजय जी , यह त्रिपदम नहीं हैं... त्रिपदम में सिर्फ तीन पंक्तियाँ होती हैं और 5-7-5 वर्ण हर लाइन में...
अनुराधा जी ,आपकी "टिप" ने चेहरे पर मुस्कान ला दी.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया!!!