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सोमवार, 31 दिसंबर 2007

मैं स्वार्थी हूँ

नए साल में छुटकारा कैसे पाऊँ उससे ? लिखने का एक मुख्य कारण मेरा स्वार्थ है. मीर साहब और शेख साहब कहा करते थे कि दुयाओं में गज़ब का असर होता है. मीर साहब रियाद स्कूल में उर्दू के उस्ताद थे और शेख साहब हिन्दीविभाग के अध्यक्ष हुआ करते थे. आजकल दोनो रिटायर हैं और कभी कभी दूसरे मित्रों से उनके बारे में हालचाल मालूम कर लेते हैं. रियाद में रहते हुए एक बात पर अटल विश्वास हो गया था कि परिचित अपरिचित सभी जब एक दूसरे के लिए दुआ माँगते हैं तो उसका गहरा असर होता है. इन दुआओं का असर होते मैंने खुद देखा था अपने पर, अपने बेटे पर और उन दुआओं का असर आज भी दिखाई देता है.
होता यह है कि जब हम दूसरों के लिए बिना स्वार्थ दुआ माँगते हैं तो एक पल के लिए अपने स्वार्थों को भूल कर दूसरे के हित के लिए, उसके कल्याण की कामना करते हैं. उस पल में किसी दूसरे के लिए की गई प्रार्थना असर कर जाती है. भाव-तरंगें शक्ति-पुंज बन कर सकारात्मक रूप में उस तक पहुँचने लगती हैं जिसके लिए प्रार्थना की गई है.
बस इसी विश्वास ने मुझे स्वार्थी बना दिया. नए वर्ष में ब्लॉगर परिवार से भी शुभकामनाएँ और दुआएँ पाने का लालच रोक न पाई.
वरुण की प्रेयसी पीड़ा के विषय पर फिर कभी चर्चा करेंगे अभी तो आप अपने परिवार के साथ 2007 के बचे कुछ घण्टों को नए वर्ष के आने तक खुशी खुशी मनाइए.
हम यहाँ दोनो बेटो के साथ और विजय दमाम से अंर्तजाल पर आभासी दुनिया में मधुर संगीत का आनन्द लेते हुए पुराने साल को अलविदा करते नए वर्ष का स्वागत करेंगे.
एक बार फिर सबको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ