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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

मीरा राधा की राह पे चलना

पवन पिया को छू कर आई
पहचानी सी महक वो लाई.

गहरी साँसें भरती जाऊँ
नस-नस में नशा सा पाऊँ.

पिया प्रेम का नशा अनोखा
पी हरसूँ यह कैसा धोखा.

पिया पिया का प्रेम सुधा रस
मीत-मिलन की जागी क्षुधा अब.

सजना को देखूँ सूरज में
वो छलिया बैठा पूरब में.

चंदा में मेरा चाँद बसा है
घर उसका तारों से सजा है.

मेघों में मूरत देखूँ मितवा की
घनघोर घटा सी उनमें घुल जाऊँ.

पिया मिलन की प्यास जगी है
दर्शन पाने की आस लगी है.

मीरा राधा की राह पे चलना
जन्म-जन्म अभी और भटकना !!

ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ