जब भी हमें शायर कहकर पुकारा जाता
दिल हमारा बाग़-बाग़ हो जाया करता !
तन से पहले मन मंच पर पहुँच जाया करता
शायरी करने को जी मचल मचल जाया करता !
लेकिन ------------
नाम हमारा सुनते ही श्रोताओं पर गिरते कई बम
उनका रुख देखते ही हमारा भी निकल जाता दम !
हिम्मत कर फिर भी बढ़ाते कदम
सीधा पहुँचते मंच पर हम !
एक ही साँस में पढ़ जाते लाइनें दस
फिर लेते थोड़ा हम दम !
कुछ श्रोताओं का होता सब्र कम
शोर कुछ श्रोताओं का जाता बढ़ !
कुछ श्रोताओं की बेरुखी सहते हम
कुछ श्रोताओं की मुस्कान भी पाते हम !
फिर भी मैदान में डटे सिपाही से हम
पीछे न हटते, हार न मानते हम !
सब्र से बैठे हुए लोगों पर
अपनी शायरी का सिक्का जमाते हम

