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मंगलवार, 16 दिसंबर 2025

मैं हूँ इक लम्हा (काव्य संग्रह )




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मैं हूँ इक लम्हा जो अपने लफ्जों को  इंद्रधनुषी सोच से सजा कर मन की बात रखता है सबके सामने । सोच का सैलाब उमड़ता है छोटी बड़ी लहरों जैसे और कविता के रूप में  कई भाव जन्म लेने लगते हैं ।  लिखना तो बचपन से ही शुरू हो गया था लेकिन कविता कब से लिखनी शुरू की इसकी सही तारीख बताना मुश्किल होगा। 

बड़े बेटे वरुण का मानना है कि हर कविता का जन्म उसके अंदर छिपी किसी न किसी कहानी से होता है और कविता लिखते वक्त उस कहानी का जिक्र  होना  ज़रूरी है ।  इस बात से सहमत होकर उसी वक्त सोच  लिया कि पूरी कोशिश करूंगी कि हर कविता के जन्म के पीछे की कहानी को अच्छे से कह  पाऊँ ।  इस कोशिश में छोटा बेटा विद्युत और जीवनसाथी विजय ने पूरा साथ दिया । छोटे  बहन भाई बेला और चंद्रकांत अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर हमेशा कुछ न कुछ प्रतिक्रिया भेजते रहते  जिससे लेखन में सुधार करने की कोशिश रहती । मेरे लेखन को पुस्तक के रूप में देखने का सपना लेकर पिता इस दुनिया को अलविदा कह गए और माँ आज भी समीक्षक बन कर मेरे लेखन को कभी नकार देती है तो कभी तारीफ करती है  ।  परिवार और दोस्तों का  तहे दिल से शुक्रिया जिनके कारण मेरे शब्दों को खूबसूरत बसेरा मिला । एक पुस्तक  में एक साथ मिल कर सभी शब्द और उनके भाव कैसा  महसूस कर रहे होंगे , उसकी खुशी मेरे मन में कहीं ज्यादा है । 

सुबह की पहली किरण के उगते या दोपहर किसी छाया में या फिर अमावस या पूनम की रात में अगर इस पुस्तक को पढ़ना हो तो अपने देश के Amazon.in पर उपलब्ध है !









बुधवार, 19 नवंबर 2025

करनी का फल ( धंवंतरि)



नगर के बाहर जंगल था. उसी जंगल में एक भयानक राक्षस रहता था. लोग उस राक्षस के डर के कारण दूसरे नगर या गाँव में नहीं जा सकते थे. एक बार एक अंजान मुसाफिर उस नगर मे आया. वह उसी जंगल मे से गुज़र ही रहा था कि भयानक राक्षस के साथियो ने उसे देख लिया. उन्होने उस मुसाफिर को मारने की कोशिश की परंतु वह खुद मर गए. भयानक राक्षस को गुस्सा आ गया वह और साथियो को लेकर मुसाफिर के पास गया . मुसाफिर ने कहा...क्या तुम ही भयानक राक्षस हो? भयानक राक्षस ने कहा . हाँ मै ही वही राक्षस हूँ . मुसाफिर ने उस राक्षस के साथियों को भी मार दिया . मुसाफिर बोला. क्या यही है तुम्हारी प्रजा.?
भयानक राक्षस बोला, 'चुप कर मूर्ख...मुसाफिर बोला, ' इतना गुस्सा अच्छा नहीं होता...राक्षस बोला, 'तुम्हारी मौत मेरे हाथो लिखी है...मुसाफिर बोला यह तो भगवान ही जानते हैं कि किस की मौत किस के हाथो लिखी है. भयानक राक्षस उस मुसाफिर पर तलवार से वार करता है और मुसाफिर भी राक्षस पर टूट पड़ता है और राक्षस की तलवार से ही उसे मार डालता है.
भयानक राक्षस मरने से पहले कहता है कि तुम्हारे भगवान अच्छे है , मै बहुत बुरा हूँ मेरी और से अपने भगवान से मेरी गलतियो की माफी माँग लेना यह कह कर राक्षस मर जाता है.
शिक्षा -- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमे पाप नही करना चाहिए क्योकि पुण्य की पाप पर सदा जीत होती है... यह तो सभी जानते है.... फिर पाप क्यो करते हो.... जिस प्रकार भयानक राक्षस को अपनी गलती का एहसास हुआ उसी प्रकार तुम्हे भी अपनी गलती का एहसास होना चाहिए . बस यही मेरी तरफ से आप को शिक्षा है.....ऋषभ धंवंतरि


(प्रिय ऋषभ  आज 19 नवम्बर तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हारी लिखी एक कहानी को अपने ब्लॉग में फिर से पब्लिश कर रही हूँ जो अंबाला के अखबार में बहुत पहले छप चुकी है ) 



मंगलवार, 18 नवंबर 2025

डाक बक्सा ( To Letter Box)

To Letter Box 

तेरा लाल रंग कहीं पीला पड़ा 

तो कहीं काला और बदरंग हुआ 

और तू 

खाली खाली वीरान सा 

खामोश खड़ा 

शायद सोचता होगा 

एक दिन 

कोई तो आएगा और 

ज़ंग लगा ताला तोड़ कर 

फिर से आबाद कर देगा तुझे 

लो आज तुम्हारी तम्मना पूरी हुई 

आज सरहद को भुला कर 

एक मियां बीबी आए 

अपने  खत औ खिताबत के साथ 

प्यार मुहब्बत का पैगाम लेकर 

सरहद वागा भी जी उठा

डाकिया बन कर 

खतों  की खुशबू फैलाने लगा 

उनमें कहीं आंसुओं का खारापन 

तो कहीं इश्क की खुशबू महकने लगी 

यही नहीं हुआ डाक बक्से 

अनगिनत एहसासों में डूबे लफ़्ज 

भी जी उठे 

और छा गई रौनक तुझ पर 

सुर्ख हुआ समूचा वजूद तेरा 

हो सके तो बताना , एहसास कराना 

मुझे ही नहीं सारी कायनात को 

खतो  के जरिए मुहब्बत जगाना 

इसे कहते हैं 

खतो  के जरिए मुहब्बत जगाना 

इसे कहते हैं 


इंतज़ार में 

मीनाक्षी धन्वंतरि 


शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

मैं हूं इक लम्हा

मैं हूं इक लम्हा 

मृत्यु अंधकारमय कोई शून्य लोक है 
या नवजीवन का उज्ज्वल प्रकाशपुंज है
या मृत्यु-दंश है विषमय पीड़ादायक
या अमृत-रस का पात्र है सुखदायक
तन-मन थक गए जब यह सोच
सोच 
तब मन-मस्तिष्क मे नया भाव
जागा 
मेरे पास सिर्फ एक लम्हा है
जो अजर-अमर है 
इस मृग-तृष्णा में जी लेने दो !!

रविवार, 11 अगस्त 2024

प्रेम ही सत्य है



 एक बार फिर उंगलियां हरकत में आईं और थिरकने लगीं ब्लॉग जगत की दुनिया में। अगस्त 2007 में ब्लॉग "प्रेम ही सत्य है" का जन्म हुआ था जो अब अपनी किशोर अवस्था में पहुंचा जो बहुत कुछ नया करने की चाहत रखता है तो आज अपने शब्दों को अपनी आवाज़ द्वारा आप से साझा कर रही हूं इस यकीन के साथ कि आपको पसंद आएगी ये नई कोशिश 




बुधवार, 7 अगस्त 2024

गहराई (Depth)


कुछ डगमग डगमग करते हुए विचार घेर लेते हैं तो उदास मन मंथन करते हुए बहुत कुछ सोचने लगता है । स्वयं को एक मुर्दा झील सी समझ कर ठहर जाता है । उस वक्त  किसी की भी कही गई बात ठहरे पानी में गिरते पत्थर सी लगती है और गोल गोल भंवर जैसे हलचल करने लगते हैं दिल और दिमाग में । ऐसे में किसी की बात की गहराई को समझने के लिए  मन को वश में करना जरूरी होता  है और तब मन शांत हो जाता है । 





 

Hummingbird

 प्रकृति से प्रेम करने वाला मानव ही मानव से प्यार कर सकता है, ऐसा मेरा विश्वास है इसलिए  मानव का प्रकृति से प्रेम होना बहुत जरूरी है।  घर के बगीचे या गमले में लगे फूल , उस पर बैठे  पक्षी, तितलियाँ, भंवरे और कभी कभी भूले भटकते hummingbirds को देख कर मन गदगद होकर कुछ इस तरह कह उठता - 












दूर हो पर दिल के करीब हो

 
कभी कभी जिस मित्र या सखी से हम बात करना चाहते हैं , वह हमसे दूर भागता है और हम दुखी होकर बैठ जाते हैं। किसी काम में दिल नहीं लगता और हम बेचैन हो जाते हैं लेकिन एक कड़वा सच ये भी है कि ज़िंदगी बहुत छोटी है जिसमें निराश हो कर ज़िंदगी से मुंह मोड़ लेना सही नहीं । जीवन चलने का नाम है या तो बिना कुछ मांगे प्यार करते रहो या आगे बढ़ कर नए रास्ते तलाश करो - 





ज़िंदगी समतल जमीन नहीं



 ज़िंदगी zigzag सी चलती है, शायद यही इसकी खूबसूरती  है । नकरात्मता होती है तो हम सकारात्मक होने के लिए तत्पर होते हैं इसलिए दोनों भाव साथ साथ चलते हुए हमारे व्यक्तित्व में निखार लाते हैं -



सिहर गई मैं (Sihar gayi main)





 बड़े बेटे वरुण की नई सोच से एक नई कोशिश की जिसमें अपने शब्दों को संगीत और चलचित्र के माध्यम से 

आप से साझा करने की चाहत हुई , यकीन है आपको ये नहीं कोशिश पसंद आएगी !! 


गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

मैं और मेरा बातूनी मन



कभी कभी चंचल मन खुद से बातें करता हुआ उकसाता है किसी मित्र , सखी या परिवार के किसी सदस्य से शिकायत करने के लिए लेकिन संयम में रहता मन इस बात को नकार कर नज़रन्दाज़ करने की सलाह देता है। प्रसन्नचित मन कहता है -  जितना मिले उतने में खुश रहने की आदत हो तो ज़िंदगी सदाबहार ! 


शनिवार, 4 मार्च 2023

बेवजह ज़िन्दगी की चाहत


बहुत पुराना ड्राफ्ट जिसे आज मुक्त किया पब्लिश करके - छोटी बहन जैसी भावुक नीलम की लिखी कविता -- आशा है आप सबको पसंद आएगी -- 

जब ज़िन्दा थे तो किसी ने प्यार से अपने पास न बिठाया
अब मर गए तो चारों ओर बैठे हैं !

पहले किसी ने मेरा दुख मेरा हाल न पूछा
अब मर गई तो पास बैठ कर आँसू बहाते हैं !

एक रुमाल तक भी भेंट न दी जीते जी किसी ने
अब गर्म शालें औ’ कम्बल ओढ़ाते हैं !

सभी को पता है ये शाले ये कम्बल मेरे किसी काम के  नहीं
मगर बेचारे सब के सब दुनियादारी निभाते हैं !

जीते जी तो खाना खाने को कहा नहीं किसी ने
अब देसी घी मेरे मुँह में डाले जाते हैं !

जीते जी साथ में एक कदम भी चले नहीं हमारे साथ जो
अब फूलों से सजा कर काँधे पर बिठाए जाते हैं !

आज पता चला कि मौत ज़िन्दगी से कितनी अच्छी नेमत है
हम तो बेवजह ही ज़िन्दगी की चाहत में वक्त गँवाए जाते थे.... !!

द्वारा - नीलम

रविवार, 29 मई 2022

गीत संगीत की दुनिया




गीत संगीत की दुनिया में ख़्य्याम याद आते हैं साँझ की ख़ामोशी में...उनकी धुनें मन को नाज़ुक सा सुकून देती हैं... शहर के शोर से दूर किसी दूसरी दुनिया में ही ले जाता है उनका संगीत .... कैफ़ी आज़मी के बोल जिन्हें आवाज़ दी हो मो. रफ़ी ने तो फिर बार-बार सुनने का दिल क्यों न चाहेगा...
सन 1817 में ‘लल्हा रोख़’ पर कवि थॉमस मूर लिख चुके थे फिल्म बनी 1958 में .. यह औरंगज़ेब की बेटी लल्हा रोख़ की प्रेम कहानी है जिसमे वह कवि फ़रमोर्ज़ से प्यार करती है अंत में वही राजकुमार होता है जिससे लल्हा रोख़ की सगाई हुई होती है..श्यामा और तलद महमूद थे इस फिल्म में.......
अरब देशों में प्रचलित नृत्य का प्राचीन रूप ‘रक़्स शरक़ी’ कहलाता है जो पश्चिमी देशों में भी किया जाता है ... ‘रक़्स बलदी’  लोक नृत्य की तरह घर घर में शादी ब्याह और खुशी के अनेक अवसरों पर सभी में प्रसिद्ध है.. बचपन से ही बच्चे आसानी से इस नृत्य को करना सीख जाते है.....मिस्त्र, लेबनान, तुर्की आदि में भाव-भंगिमाओं के साथ साथ उनकी वेशभूषा में भी कुछ कुछ अंतर है. यू ट्यूब पर एक प्रशंसक ने अरब देशों के प्रचलित बैली डांस के साथ रफ़ीजी के गीत को सजा दिया.....


“ है कली कली के लब पर , तेरे हुस्न का फ़साना
मेरे गुलिस्तान का सब कुछ तेरा सिर्फ मुस्कुराना ---- कली-कली के लब पर....  

ये खुले खुले से गेसु , उठे जैसे बदलियाँ सी
ये झुकी झुकी निगाहें गिरे जैसे बिजलियाँ सी
तेरे नाचते कदम में है बहार का ख़ज़ाना --- है कली-कली के लब पर....

तेरा झूमना मचलना, ये नज़र बदल बदल कर
मेरा दिल धड़क रहा है तू लचक सँभल सँभल के
कहीं रुक ना जाए ज़ालिम इसी मोड़ पर ज़माना -- कली-कली के लब पर....




सोमवार, 18 मई 2020

ताउम्र भटकना



आज भी माँ कहती है-
“बेटी, कल्पनालोक में विचरण करना छोड़ दे, 
क्रियाशील हो जा, ज़िन्दगी और भी खूबसूरत दिखेगी” 
और मैं हमेशा की तरह सच्चे मन से माँ से ही नहीं 
अपने आप से भी वादा करती हूँ
कि धरातल पर उतर कर 
ज़िन्दगी के नए मायने तलाश करूँगीं  
लेकिन ये तलाश कहाँ पूरी होती है. 
ताउम्र चलती है और हम भटकते हैं 
हर पल इक नई राह पर चल कर 
जाने क्या पाने को....  

शुक्रवार, 15 मई 2020

मस्त रहो 


महामारी के इस आलम में 
मन पंछी सोचे अकुला के 
छूटे रिश्तों  की याद सजा के
ख़ुद ही झुलूँ ज़ोर लगा के  
 आए अकेले , कोई ना अपना  
 साथ निभाते भरम पाल के ! 
 ख़ुद से रूठो ख़ुद को मना के  
 स्नेह का धागा ख़ुद को बाँध के  
 यादों का झोंका आकर कहता   
 मस्त रहो ख़ुद से बतिया के !! 
 मीनाक्षी धनवंतरि 

बुधवार, 13 मई 2020

पुस्तक से ब्लॉग तक - अनमोल वचन


एक पुस्तक प्रेमी पाठक का कहना था - दूरदर्शन तो आँख को टिकने नहीं देता, किताब की पंक्ति पर तो आँखें रुक सकती हैं , पीछे पलट कर देख सकती हैं , पढ़ते पढ़ते आँखें नम हो जाए तो किताब तो प्रतीक्षा कर सकती है,  दूरदर्शन यंत्र कहाँ करेगा...

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साहित्य देश को गति देता है, उसे जीवन्त बनाने की कोशिश करता है. लेकिन आज के पाठयक्रम में साहित्य
का स्थान नगण्य है, है भी तो कोई पढ़ने वाला नहीं, पढ़े पढाए क्यों..... साहित्य से तो जीवन चलता नहीं, साहित्य तो अब मनोरंजन भी नहीं है.
साहित्य का मनोरंजन योग्य पदार्थ श्रव्य - दृश्य संचार साधनों ने गहरी हंडिया में पका कर भपके से खींच लिया है. मेरा विचार है साहित्य के प्रति चाव अभी भी है, विरल हो ...यह अलग बात है.
किताब की दुकान पर जब लोगो को नई किताब खोजते हुए देखो तो लगता है कि साहित्य के प्रति चाव संस्कार अभी बना हुआ है...

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पुरुस्कार की कामना

जो कुछ तुम करो, उसके लिए किसी प्रकार की प्रशंसा अथवा पुरुस्कार की आशा मत रखो. ज्यों ही हम कोई
सत कार्य करते हैं, त्यों ही हम उसके लिए प्रशंसा की आशा करने लगते हैं . ज्यों ही हम किसी सत कार्य में
चन्दा देते हैं त्यों ही हम चाहने लगते हैं कि हमारा नाम अखबारों मे खूब चमक उठे... ऐसी कामनाओं का फल दुख के अतिरिक्त और क्या होगा.

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इसमें सन्देह नहीं कि 'करने' की अपेक्षा 'कहना' अत्यंत सरल होता है परंतु जो 'कहना' छोड़ कर 'करने' में जुट
जाते हैं ऐसे व्यक्ति इतिहास के उज्ज्वल हस्ताक्षर बन जाते हैं.
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए संत कबीर ने कहा है ----

" कथनी मीठी खाँड सम , करनी विष की लोय
कथनी छड़ करनी करे, विष से अमृत होए !! "

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रविवार, 26 जनवरी 2020

गणतंत्र दिवस २०२०



देश विदेश में रहने वाले सभी भारतवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  देश के अंंदर बाहर तैनात जवानों और शहीदों के परिवाजनों को नत मस्तक प्रणाम