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शुक्रवार, 15 मई 2020
बुधवार, 6 जून 2018
अनायास
आभासी दुनिया में ब्लॉग जगत की अपनी अलग ही खूबसूरती है जो बार बार अपनी ओर खींचती है
अनायास..
अनायास..
पुरानी यादों का दरिया बहता
चट्टानों सी दूरी से जा टकराता
भिगोता उदास दिल के किनारों को
अंकुरित होते जाते रूखे-सूखे ख़्याल
अतीत की ख़ुश्क बगिया खिल उठी
और महक उठी छोटी-छोटी बातों से
यादों के रंग-बिरंगे फूलों की ख़ुशबू से
मेरी क़लम एक बार फिर से जी उठी
बेताब हुई लिखने को मेरा इतिहास
भुला चुकी थी जिसे मैं
या भूलने का भ्रम पाला था
शायद !!
सोमवार, 30 जून 2014
इक नए दिन का इंतज़ार
हर नया दिन सफ़ेद दूध सा
धुली चादर जैसे बिछ जाता
सूरज की हल्दी का टीका सजा के
दिशाएँ भी सुनहरी हो उठतीं
सलोनी शाम का लहराता आँचल
पल में स्याह रंग में बदल जाता
वसुधा रजनी की गोद में छिपती
चन्दा तारे जगमग करते हँसते
मैं मोहित होकर मूक सी हो जाती
जब बादल चुपके से उतरके नीचे
कोमल नम हाथों से गाल मेरे छू जाते
और फिर होने लगता
इक नए दिन का इंतज़ार .....!
सोमवार, 5 मई 2014
अपनापा
रोज़ की तरह पति को विदा किया
दफ़तर के बैग के साथ कचरे का थैला भी दिया
दरवाज़े को ताला लगाया
फिर देखा आसमान को लम्बी साँस लेकर
सूरज की बाँहें गर्मजोशी से फैली हैं
बैठ जाती हूँ वहीं उसके आग़ोश में..
जलती झुलसती है देह
फिर भी सुकूनदेह है यूँ बाहर बैठना
चारदीवारी की कैद से बाहर
ऊँची दीवारों के बीच
नीला आकाश, लाल सूरज, पीली किरणें
बेरंग हवा बहती बरसाती रेत का नेह
गुटरगूँ करते कबूतर, बुदबुदाती घुघुती
चहचहाती गौरया
यही तो है अपनापा !!
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