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गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

मैं और मेरा बातूनी मन



कभी कभी चंचल मन खुद से बातें करता हुआ उकसाता है किसी मित्र , सखी या परिवार के किसी सदस्य से शिकायत करने के लिए लेकिन संयम में रहता मन इस बात को नकार कर नज़रन्दाज़ करने की सलाह देता है। प्रसन्नचित मन कहता है -  जितना मिले उतने में खुश रहने की आदत हो तो ज़िंदगी सदाबहार ! 


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