’बस भी करो, जल्दी आओ स्टाफरूम में...सारा साल पढे नहीं तो अब क्या तीर मार लेंगे....’ आदत से मजबूर तब्बू ऊँची आवाज़ में बोलती हुई इधर ही आ रही थी...
मैं मुस्करा रही थी लेकिन लड़कों के चेहरों के बदलते रंग भी देख रही थी...राघव कुछ कहते कहते चुप रह गया.... चारों छात्र सिर झुकाए अपनी अपनी किताबों पर नज़र गड़ाए चुप बैठे रहे....
दसवीं के क्लास रूम में तब्बू दाखिल हुई, मेरे साथ ही सीनियर सेक्शन को सोशल पढ़ाती थी....हम दोनों एक ही स्टाफरूम में बैठते थे.. उसे अनदेखा करके बच्चों के सिर नीचे ही झुके रहे...
एक टीचर को विश न करना अच्छा तो नहीं लगा लेकिन उस वक्त डाँटना भी सही नहीं लगा सो चुप लगा गई....
उधर तब्बू बोले जा रही थी.....’इन पर मेहनत करके कुछ नहीं मिलेगा...इन्हें तो बस टीचर को बिज़ी करने का बहाना चाहिए.....और पैरेंटस को बेवकूफ बनाने का....तुम्हें बड़ा शौक है अपना वक्त इन पर बरबाद करने का’
‘तुम चलो....मैं अभी आती हूँ बस दस मिनट और’ मुस्कुराते हुए हल्की आवाज़ में कहा.....
‘टेबल लग चुका है.... सब तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे हैं, जल्दी आओ’ कह कर वह निकल गई....
तब्बू के बाहर निकलते ही शोहेब से रहा नहीं गया..... ‘वाय मैम...वाय... होऊ कैन यू बीयर हर?’
(विदेशों के बाकि स्कूलों का तो पता नहीं लेकिन यहाँ के स्कूलों में टीचर और स्टूडैंट्स में बहुत अपनापन होता है. टीचर, अभिवावक और दोस्त सभी उन्हें एक ही टीचर में चाहिए..... वन इन वन इंट्रैक्शन - जिससे वह उन सभी अभावों को भूल पाएँ जो अपने देश में आराम से पा सकते हैं.)
राघव भी बोल उठा...’ मैम... तब्बू टीचर आपको इतना कुछ कह गईं और आपने पलट के जवाब नहीं दिया...क्यों’
चुप रहने वाला जमाल भी बोल उठा... ‘कम से कम हमारे लिए ही बोलना था.....दसवीं बोर्ड के एग्ज़ाम्ज़ में तो सभी टीचर हैल्प करते हैं.’
राघव बड़े दार्शनिक अन्दाज़ में बोला....’मैम, यू शुड लर्न हाऊ टू से ‘नो’’ सच कह रहा हूँ ....आप कभी किसी भी स्टूडैंट को ‘ना’ नहीं बोलतीं...’
’हाँ मैम...आज अगर स्टाफ पार्टी थी तो मना कर देतीं....’ अमित बोला.
राघव ‘सॉरी मैम’ कह कर उठ गया....उसी के साथ ही बाकि तीन बच्चे भी सॉरी कहते हुए उठ खड़े हुए...
अच्छी तरह से जानती थी कि तब्बू कभी किसी स्टूडैंट को एक्स्ट्रा नहीं पढ़ाती और न ही नोटस बनाने या चैक करने में मदद करती...बिन्दास वह शुरु से ही थी....बिना सोचे समझे किसी के लिए भी कभी भी कुछ भी कह देती.... कुछ लोग बहस करने से रोक नहीं पाते लेकिन कुछ चुप लगाना सही समझते ..... खासकर मुझे तो समझ नहीं आता कि रिऐक्ट किया कैसे किया जाए....!
मन ही मन गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन जाने क्यों उस वक्त मैं कुछ बोल न पाई....कभी कभी अपने आप पर ही मन खीजता है कि एक दम पलट कर वैसी ही तीखी प्रतिक्रिया क्यों नहीं कर पाती...
लेकिन जो अपने आप को कंट्रोल नही कर पाते और बात को तूल दे देते हैं... उन्हें इच्छा होती है कि काश वे अपने आप को काबू में कर पाएं.....
दरअसल दोनों तरह के रिएक्शन ही गलत हैं....सही वक्त पर सही जवाब देना और नज़ाकत समझ कर चुप रहना....दोनों तरह का संतुलन बनाना ज़रूरी होता है.....
बच्चों के साथ दोस्ताना बर्ताव मुझे उनकी दुनिया में घूमने की इजाज़त दे देता है.... सरल मन के बच्चे सहज भाव से दोस्ती कर लेते हैं और अपने मन के अंजाने कोनों को भी दिखाने में झिझकते नहीं... खेल खेल में बहुत कुछ सीखना सिखाना हो जाता है....बस यही कारण है कि सख्ती से पेश आने की बात कभी सोची ही नहीं....
जाने अनजाने यही आदत धीरे धीरे व्यक्तित्त्व का हिस्सा बन गई शायद !
17 टिप्पणियां:
अच्छी आदत है। सबमें नहीं होती कि हम हर उम्र के दोस्त बन पायें। जिनमें होती है वे बहुत चाहे जाते हैं।
बच्चे बहुत जल्दी दोस्ती करते हैं, यहाँ तक कि वे दो-चार घंटे की दोस्ती को भी बखूबी निभाते हैं। कभी कभी चुप रहना चाहिए। कभी चुप्पी साधने से बेहतर कोई जवाब होता भी नहीं है। चुप्पी हथियार/औजार भी बन जाती है।
बच्चे तो सबसे अच्छे दोस्त होते हैं जो बिना किसी उम्मीद के दोस्ती करते हैं ।
बार-बार की चुप्पी को सब कमजोरी ही समझते हैं ।कभी-कभी चुप्पी तोड़ना भी जरूरी हो जाता है ।आभार ...
मौके की नजाकत के हिसाब से बोलना और चुप रहना ही श्रेयकर होता है... फिर दोस्ताना व्यवहार तो सभी उम्र के लोगों के साथ रखना हमेशा ही सुख देता है.
बच्चों के साथ टीचर की तरह तो नही पर मुझे अक्सर बोलने का मौका मिलता है। मैं हमेशा प्रयत्न करता हूं कि उनके दोस्ताना व्यवहार रखूं।
Aapkaa ravaiyya behtareen hai!
this is the right attitude...
बहुत सही व्यवहार किया है आपने.
जब तक आप खुद परेशान नहीं होना चाहते,तब तक आप को कोई परेशान नहीं कर सकता.
बल मन को समझना भी सब के बस की बात नहीं.बहुत बड़ी खूबी है यह.
अच्छा लिखा है आपने। तर्कसंगत ढंग से विषय का विवेचन किया है। भाषा में भी सहज प्रवाह है।
मैने भी अपने ब्लाग पर एक लेख- कब तक धोखे और अत्याचार का शिकार होंगी महिलाएं- लिखा है। समय हो तो पढ़ें और टिप्पणी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
तीखी प्रतिक्रिया देना सरल नहीं है। बस बाद में ही सोचते रहते हैं कि ऐसा बोलना चाहिए था या वैसा बोलना चाहिए था।
चुप रहना भी एक जवाब है, इसमें कई बार बॉडी लैंग्वेज का सहारा भी लिया जा सकता है. बिन कहे सब कुछ कह जाना.
नई पीढ़ी को समझने के लिए...और खुद भी जमाने के साथ चलने के लिए बच्चों से दोस्ताना व्यवहार बहुत ही आवश्यक है....आप बखूबी इसे निभाती हैं..इतना तो अंदाज़ा है:)
कई बार व्यर्थ की बहस की शुरुआत ना कर चुप रह जाना ही श्रेयस्कर होता है
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हालाँकि वर्तमान घटना में आपका व्यवहार उचित ही था, पर मैं बच्चों को बरज देता कि, " प्लीज़ डोन्ट मिंगल इन टीचर्स मैटर !"
अपने सहकर्मी के लिये शत्रुवत व्यवहार हठात स्वीकार न करना उनको अपनी सीमाओं में रखता !
ना कहने की आदत डालें, जैसे अभी आप तब्बू को ही ना कह सकती थीं ।
ना न कह पाने वाले अँततोगत्वा घुटन के शिकार होते देखे गये हैं ।
पोस्ट प्रस्तुति का अँदाज़ बहुत लुभावना है !
ना कह पाना कईयों के व्यक्तित्व की मजबूरी सी होती है. वो चाह कर भी नहीं कह पाते !
:) मुझे ऐसे लोग बहुत पसंद हैं..
पंकज ने सही कहा!!
वे बहुत सरल होते हैं ...मुझे इन बच्चों की जिंदगी में पैठ बनाकर हमेशा सुकून मिलता है ....शुभकामनायें आपको !
bilkul sahi kaha har cheez me santulan hona chahiye fir pyar ki bhasha to ek hi hoti hai aur sabki jarurat v
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