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शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

फिर जन्मे कुछ त्रिपदम (हाइकु)














शब्दों की कमी
समझ लेंगे सब 
भाव है मुख्य 

सपना प्यारा
मुख मासूम दिखा
भूल न पाऊँ 

बाँहों का घेरा
है मनचाही कैद
न्यारा बंधन

जादुई हाथ 
चाह स्पर्श की जागी
हरते पीड़ा 

प्यासे अधर 
अमृत रसपान
तृष्णा मिटती 


10 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

वाह कित्ते प्यारे हायकू प्रेम रस में सराबोर -ब्रेविटी इज द सोल आफ विट !

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया हाईकू!!

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

हाइकू सद-वाक्‍य के समान है, इसलिए असर करते ही हैं।

मीनाक्षी ने कहा…

@अरविन्दजी,शेक्सपीयर की कोट पढकर लॉर्ड पोलोनियस की याद आ गई और हेमलेट में उनका चरित्र..कोट के उसके शाब्दिक अर्थ से हम फूल गए :)
@समीरजी,,धन्यवाद
@अजितदी... लिखने का उत्साह मिला...
आभार

नस-वस ने कहा…

ankahi baatein par aa kar vichar rakhne ke liye shukriya.

haiku bhi badhiya hai.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

वाह!
ब्लॉगजगत में सामान्यत: शब्द मुखर हैं। भाव हैं। मूक!

Abhishek Ojha ने कहा…

वाह !

Ashok Pandey ने कहा…

सुंदर अभिव्‍यक्ति। भाव मुख्‍य ही नहीं गहरे भी हैं। शब्‍दों का आधिक्‍य उनके संप्रेषण में बाधक ही बनता।

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही गहरे भाव लिए सारे हाइकु

Amrita Tanmay ने कहा…

sundar hayku