आज की कविता का रूप-सौन्दर्य बढ़ाने में सहायक हैं नए बिम्ब और नई भाषा शैली .... और चमत्कृत कर देते हैं भाव ..... कवि-मन में जब गहन अनुभूति के पल आते हैं तब वह उन्हें कविता का रूप दे देता है... कहीं कहीं तो अनुभूति का ईमानदार पल मन में हलचल पैदा कर देता है...जीवन के हर पल का रंगीन और बेरंग चित्र कविता में दिखाई देता है.... पिछली पोस्ट में भी इसी बात का ज़िक्र था कि "आज कविता में कोई विषय अछूता नहीं है" कभी कभी मुझे कविता मनमोहिनी माया का रूप लगती है जो कभी तो बहुत हल्की बात को गम्भीरता से कह जाती है और कहीं छोटी छोटी बातों में चमत्कार दिखाने लगती है....
कुछ किताबें अन्धेरे में चमकती हैं रास्ता देती हुई
तो कुछ कड़ी धूप में कर देती हैं छाँह
कुछ एकांत की उदासी को भर देती हैं
दोस्ती की उजास से
तो कुछ जगा देती हैं आँख खुली नींद से
तन्हाई का साथी अश्रु
ये भी बहता अकेला है
कितना बदनसीब है
सहारा खोजता - खोजता
भिगोता अपना ही दामन है (निवेदिता)
"मगर
मर्यादा
और विश्वास
चुन लेते हैं
कई बार
मौन
और बन जाते हैं
स्वयं एक जवाब" (वाणी गीत)
मर्यादा
और विश्वास
चुन लेते हैं
कई बार
मौन
और बन जाते हैं
स्वयं एक जवाब" (वाणी गीत)
औरत पीती है
हर रोज़ अँधेरी रातों में
कुछ हथेली पे मल के
होंठों तले दबा लेती है
कुनैन की तरह
ज़िन्दगी को ...... (हरक़ीरत हीर)
हर रोज़ अँधेरी रातों में
कुछ हथेली पे मल के
होंठों तले दबा लेती है
कुनैन की तरह
ज़िन्दगी को ...... (हरक़ीरत हीर)
"देह पीरे
पीर रे
नाच रही पीरे पी रे
चन्दन पलंग रात न सोहे
नेह बिछौना अंग न तोरे
निदियाँ नाहीं पीर रे।
नाच रही मैं पीर रे।" (गिरिजेश राव)
नाच रही पीरे पी रे
चन्दन पलंग रात न सोहे
नेह बिछौना अंग न तोरे
निदियाँ नाहीं पीर रे।
नाच रही मैं पीर रे।" (गिरिजेश राव)
" कहाँ गये
वो लोग जिन्होने,
आजादी का सोपान किया था,
लगा बैठे थे जान की बाजी,
आजाद हिन्दुस्तान किया था." (सुनिता शानू)
"तब कोई सपना ही कहाँ रहेगा
बस विलासिता होगी हर तरफ
न कोई तपिश होगी
न कोई कशिश
फिर जिंदगी आज की तरह रंगीन कहाँ होगी" (कुमार)
बस विलासिता होगी हर तरफ
न कोई तपिश होगी
न कोई कशिश
फिर जिंदगी आज की तरह रंगीन कहाँ होगी" (कुमार)
कुछ किताबें अन्धेरे में चमकती हैं रास्ता देती हुई
तो कुछ कड़ी धूप में कर देती हैं छाँह
कुछ एकांत की उदासी को भर देती हैं
दोस्ती की उजास से
तो कुछ जगा देती हैं आँख खुली नींद से
इक दौर है ये भी ...
प्रगति का दौर ....
अब.... सब के पास... सब अपना है
सब.... अलग-अलग अपना
अपना अलग कमरा... अपना अलग टी.वी.
अलग ख़ुशी, अलग सोच, अलग मर्ज़ी ...
हाँ , सब... अलग-अलग अपना (दानिश)
प्रगति का दौर ....
अब.... सब के पास... सब अपना है
सब.... अलग-अलग अपना
अपना अलग कमरा... अपना अलग टी.वी.
अलग ख़ुशी, अलग सोच, अलग मर्ज़ी ...
हाँ , सब... अलग-अलग अपना (दानिश)
नहीं चाहती मैं
कि कोई भी
हो व्यथित
मेरे कारण
और लगाए
मुझसे कोई उम्मीद ... (संगीत स्वरूप 'गीत')
ब्लॉग़जगत में कविताओं के अथाह सागर के किनारे खड़ी हूँ ....कविताओं की अनगिनत चंचल लहरों को देखती हूँ तो मन में कई भाव उठने लगते हैं.... इसी कारण इतना लिख पाई....लौट रही हूँ फिर आने के लिए कभी...... !
17 टिप्पणियां:
काव्य सागर से चुने बहुमूल्य मोती ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति
@संगीताजी..मेरी अंजुली में जितने आए उतने ही समेट पाई...नहीं तो अनगिनत बहुमूल्य मोती है जिन्हें चुन पाना संभव नहीं...बस मूक प्रशंसक बन सराहते रहते हैं...
मिनाक्षी जी ,
आप सुन्दर मोती चुन कर लायी हमारे लिए, हमने भरपूर आनंद भी उठाया। आभार और अभिवादन स्वीकार कीजिये।
इन्हें पढ़कर हम आगे बढ़ जाते हैं पर सहेजने का यह प्रयास आप जैसे पारखी ही कर पाते हैं ...आभार के साथ बधाई ।
kitni uddat lahren mujhe phir chhu gain
हमारे लिए आप सुन्दर मोती चुन कर लायी आभार|
बहुत सी बेहतरीन रचनाएँ पढ़ने को मिल गई .........आभार
मीनाक्षी ,कई और ब्लाग्स की जानकारी मिली ... तुम्हारी मेहनत का आनन्द हम सब ले रहें हैं ....:)
यह तो पूरी काव्य गोष्ठी हो गयी !:)
अपनी पसन्द को मित्रों के साथ साझा करना अच्छा लगता है और उसे मित्र पसन्द कर लें , यह और भी अच्छा लगता है...आप सबका आभार
आभार
सुन्दरतम संकलन....दिव्य प्रकाश का यह विडियो एक जमाने से हमारे संकलन की शोभा बढ़ाता आया है...आभार प्रस्तुत करने का.
खूबसूरत संकलन है...एक दो और तीन, तीनो पार्ट आज ही पढ़ा...:)
वाह,पढकर आनन्द हुआ.
घुघूती बासूती
वाह! ये तो कविता चर्चा हो गयी।
Meenakshi Ji! It's unique & i like it ver much. Please also visit my Blog - Tumchhulo (http://tumchhulo.blogspot.com) and post your comments please.
Dr. Ashok Madhup (Geetkar),
NOIDA.
aapne anmol motion kuchh chun kar laye hai, mujhe pasand hai. aabhaar
Kalipad "Prasad"/Request your visit to my blog.
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