आज की नई कविता का रूप सौन्दर्य निहारते हुए उसका बखान करने का तरीका सबका अपना अपना अलग हो सकता है.... जैसे तराशे हुए हीरे को सभी अपने अपने कोण से देख कर उसकी प्रशंसा करेंगे... आज कुछ और कविताओं के छोटे छोटे अंश सहेजे हैं....
कविता पढ़ते पढ़ते कभी लगता है जैसे ब्लॉग़ जगत के गाँव में हर कवि अपनी अपनी सोच और समझ से शब्दों के बीज बो रहा हो.... एक नई नस्ल की नई फसल को लहलहाते देख कर मन में कई भाव आते हैं.....अक्सर एक भाव जो मेरे मन में उठता है कि किसी भी कविता को पढ़ते हुए अनायास मन कह उठता है कि उस सादगी में बला की पेचीदगी भी है....कभी दूसरा भाव यह आता है कि जैसे कवि अपनी क़लम को तलवार बना लेना चाहता है...
संक्षेप में कहा जा सकता है कि आज की कविता जीवन को अन्दर-बाहर से समझना-समझाना चाहती है इसलिए आज कविता में कोई विषय अछूता नहीं है...... हर विषय पर कवि मन में नए-नए भाव पैदा होते हैं.... और उन भावों को पढ़ कर पाठक के मन भी हलचल पैदा हो जाती है....कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक जो भी हो फिर भी कविता का हर रूप मन को मोह लेता है....
क्यों नफरतें हैं पालते
हम लोग प्यार से
साँसे हैं, कितनी पास
हमें खुद पता नहीं
जीवन में कई मोड़ , बड़े खतरनाक है
रास्ता कहाँ जाता है, हमें खुद पता नहीं! (सतीश सक्सेना)
"ये कैसा गणतंत्र है
कविता पढ़ते पढ़ते कभी लगता है जैसे ब्लॉग़ जगत के गाँव में हर कवि अपनी अपनी सोच और समझ से शब्दों के बीज बो रहा हो.... एक नई नस्ल की नई फसल को लहलहाते देख कर मन में कई भाव आते हैं.....अक्सर एक भाव जो मेरे मन में उठता है कि किसी भी कविता को पढ़ते हुए अनायास मन कह उठता है कि उस सादगी में बला की पेचीदगी भी है....कभी दूसरा भाव यह आता है कि जैसे कवि अपनी क़लम को तलवार बना लेना चाहता है...
संक्षेप में कहा जा सकता है कि आज की कविता जीवन को अन्दर-बाहर से समझना-समझाना चाहती है इसलिए आज कविता में कोई विषय अछूता नहीं है...... हर विषय पर कवि मन में नए-नए भाव पैदा होते हैं.... और उन भावों को पढ़ कर पाठक के मन भी हलचल पैदा हो जाती है....कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक जो भी हो फिर भी कविता का हर रूप मन को मोह लेता है....
क्यों नफरतें हैं पालते
हम लोग प्यार से
साँसे हैं, कितनी पास
हमें खुद पता नहीं
जीवन में कई मोड़ , बड़े खतरनाक है
रास्ता कहाँ जाता है, हमें खुद पता नहीं! (सतीश सक्सेना)
एक ख्वाहिश .....
सोचता हूँ अब इन नेज़ो को तराश लूँ
ओर घोप दूं आसमान के सीने मे.........
इल्म क़ी बारिश हो ओर वतन भीग जाये.. (डॉ अनुराग आर्य)
सोचता हूँ अब इन नेज़ो को तराश लूँ
ओर घोप दूं आसमान के सीने मे.........
इल्म क़ी बारिश हो ओर वतन भीग जाये.. (डॉ अनुराग आर्य)
अपने हर झूठ
और अपने अहम् को
कब तक उछालोगे
गेंद की तरह
सपनों के आसमान में
आखिर एक दिन तो आ कर
जमीन पर ही गिरोगे
क्यों कि
जीवन का सत्य यही है ...... (रंजू भाटिया)
और अपने अहम् को
कब तक उछालोगे
गेंद की तरह
सपनों के आसमान में
आखिर एक दिन तो आ कर
जमीन पर ही गिरोगे
क्यों कि
जीवन का सत्य यही है ...... (रंजू भाटिया)
"पर्यावरण अनापत्ति मिल चुकी है
बहुत पहले ही
नक़्शे भी
रातो रात हो गए हैं पास
भूमिपूजन के दिन
होने वाला है
सितारों का जमावड़ा
नक़्शे भी
रातो रात हो गए हैं पास
भूमिपूजन के दिन
होने वाला है
सितारों का जमावड़ा
यह भी एक बड़ा
आकर्षण है
साठ मंजिला
अपार्टमेन्ट का. " (अरुण चन्द्र रॉय)
चलने लगा, चलता गया, बनता गया, मैं भी शहर
बेमन हवा, लाचार गुल, ठहरी सिसक, सब बेअसर
रोड़ी सितम, फौलाद दम, इच्छा छड़ी, कंक्रीट मन
उठने लगी, अट्टालिका, बढ़ती गयी, काली डगर (जोशिम)
बेमन हवा, लाचार गुल, ठहरी सिसक, सब बेअसर
रोड़ी सितम, फौलाद दम, इच्छा छड़ी, कंक्रीट मन
उठने लगी, अट्टालिका, बढ़ती गयी, काली डगर (जोशिम)
पूरी एक रात के
अँधेरे को
काट काट कर
नाप के ...माप के....
साये बनाती रही.....
ताकि....
दिन के उजालों में....
यह साये पहना कर
मन में दुबके
ख्यालों को ...सवालों को....
आज़ाद कर दूँ..... (बेजी)
काट काट कर
नाप के ...माप के....
साये बनाती रही.....
ताकि....
दिन के उजालों में....
यह साये पहना कर
मन में दुबके
ख्यालों को ...सवालों को....
आज़ाद कर दूँ..... (बेजी)
प्यारे ये
कैसा गणतंत्र ?
जो करते घोटाले
देश को देते बेच
उसी को हार पहनाते हैं" (वन्दना)
जो करते घोटाले
देश को देते बेच
उसी को हार पहनाते हैं" (वन्दना)
"शहर सिर्फ खो
जाने के लिए नहीं है..धुएं में, भीड़ में...
अपनी-अपनी खोह में...
शहर सब कुछ पा लेना है..
नौकरी, सपने, आज़ादी.." (निखिल आनन्द गिरि)
19 टिप्पणियां:
भावों की अभिव्यक्ति किसी भी रुप मे हो...मन तो मोह ही लेती है...
बहुत सुन्दर मनभावन अभिव्यक्ति|
चकाचक संकलन है-कवियों के लिखे का!
सार्थक प्रविष्टी !
विचारनीय
कल 16/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत अच्छा चयन ... छोटी कविताएँ गहन भाव समेटे होती हैं .. सुन्दर प्रस्तुति
दोनों कलेक्शन शानदार हैं.
बढ़िया संकलन |
मेरी नई रचना देखें-
**मेरी कविता:हिंदी हिन्दुस्तान है**
बहुत सुन्दर मनभावन अभिव्यक्ति|
एक और बेहतरीन पोस्ट ... अभिव्यक्त्यों के माध्यम को बाखूबी समझा है आपने ...
meenakshi ji
bahut sundar rachna ke liye badhai.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
**************
ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
Limati Khare ji
sundar prastuti ke liye badhai sweekaren.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
**************
ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
अरे वाह मीनाक्षी जी ये तो आपका एकदम अलग सा लेख है । नई कविता के अदभुत रूप को समेटे ।
दिल से लिखी गई बात हमेश खूबसूरत ही होती है और उसमें थोड़ा सा शब्द-कौशल या कोई शैली जुड़ जाए तो चार-चंद लग जाते हैं । सार्थक लेख ...धन्यवाद
वाह ...यह भी बढि़या प्रयास ...सभी को एक साथ पढ़वाने का आभार ।
ise kahte hain asli pashmine kee pahchaan
चलने लगा, चलता गया, बनता गया, मैं भी शहर
बेमन हवा, लाचार गुल, ठहरी सिसक, सब बेअसर
रोड़ी सितम, फौलाद दम, इच्छा छड़ी, कंक्रीट मन
उठने लगी, अट्टालिका, बढ़ती गयी, काली डगर ।
जी आपका विचार सर्वथा सत्य है कि आज की कविता बेबाकी के हद तक सत्य को बयान करती है।वैसे भी जहाँ सत्य व ईमानदारी हो, वह स्वभावतः ही सुंदर हो जाता है।
ब्लॉग जगत में कविताओं का अथाह सागर है... यह तो कुछ लहरें हैं बस जो मन भिगो गईं....आप सभी मित्रों का आभार..
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