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शनिवार, 10 सितंबर 2011

चलती क़लम को रोक लिया 2

(करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान - और अगर अभ्यास ही न रहे तो सिल पर निसान कैसे पड़े. कल ऊपर लिखी कविता को रीपोस्ट करते हुए पुरानी पोस्ट को खो दिया था जिसे ढूँढने का रास्ता(गूगल) शुक्लजी ने बताया जिसे हम  हमेशा  से ही इस्तेमाल करते हैं... भूलने की बीमारी हो गई है लेकिन इसे उम्र का तकाज़ा तो कतई नहीं कहेंगे ...हाँ यह कह सकते हैं कि इंसान गलतियों का पुतला है और ताउम्र सीखता रहता है  ...उसी दौरान पता ही नहीं चला कि कुछ ऐसा क्लिक हुआ है जो टिप्पणी देने के ऑप्शन को बन्द कर देता है..आज खुद ही ढूँढने की कोशिश की कि कहाँ गलती कर गए...और अंत में टिप्पणी का ऑप्शन खोल ही दिया...) 

अपने मन की हलचल को अपने ही ब्लॉग़ के मन से बाँट लेने से बढ़ कर और कोई बात नहीं... अतीत की यादों को कविता में उतारा था कभी... आज कुछ फिर ऐसा हुआ कि उस कविता की याद आ गई सो रीपोस्ट कर रही हूँ .......... !!  

छोटे बेटे द्वारा बनाया यह चित्र मुझे बहुत पसन्द है 




पढ़ने-लिखने वाले नए नए दोस्त हमने कई बनाए
दोस्तों ने ज़िन्दगी आसान करने के कई गुर सिखाए
उन्हें झुक कर शुक्रिया अदा करना चाहा
पर उनके अपनेपन ने रोक लिया.


दोस्त या अजनबी सबको सुनते और अपनी कहते
देखी-सुनी बेतरतीब सोच को भी खामोशी से सुनते
पलट कर हमने भी वैसा ही कुछ करना चाहा
पर मेरी तहज़ीब ने रोक लिया.


नई सोच को नकारते बैठते कई संग-दिल आकर
हैरान होते उनकी सोच को तीखी तंगदिल पाकर
हमने भी उन जैसा ही कुछ सोचना चाहा
पर आती उस सोच को रोक लिया.


सीरत की सूरत का मजमून न जाना सबने
लोगों पर तारीजमूद को बेरुखी माना हमने
सबसे मिलकर हमने भी बेरुख होना चाहा
पर हमारी नर्मदिली ने रोक लिया.


साथ चलने वालों से दाद की ख्वाहिश नहीं थी
तल्ख़ तंज दिल में न होता यह चाहत बड़ी थी
मिलने पर यह अफसोस ज़ाहिर करना चाहा
पर आते ज़ज़्बात को रोक लिया.


सोचा था चुप रह जाते दिल न दुखाते सबका
पर खुशफहमी दूर करें समझा यह हक अपना
सर्द होकर कुछ सर्द सा ही क़लाम लिखना चाहा
पर चलती क़लम को रोक लिया.



2 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

झुककर शुक्रिया अदा करना चाहा पर उनके अपनेपन ने रोक लिया.....वाह ! बेमिसाल पंक्तियाँ ....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कभी इंसान खुद को रोक लेता है और कभी दूसरे उसे रोक देते हैं ... मेरा मानना है जो दिल में हो कह देना चाहिए इससे पहले की देर हो जाए ...
बाहर लाजवाब कविता है ... दस्तावेज़ की तरह ...