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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

मेरे बहते जज़्बात


आज सुबह सुबह पहला ब्लॉग ‘ज़ील’ खुला जिसमें पहली अप्रेल को सुधार दिवस का नाम दिया. बहुत अच्छा किया. इसी बहाने अपने अन्दर भी झाँकने का मौका मिल गया...अपने आपको गलतियों का पुतला ही मानती हूँ लेकिन कोशिश यही रहती है कि एक ही गलती दुबारा न करूँ पर भी हो ही जाती है.....
खैर दूसरा ब्लॉग़ ‘उड़नतश्तरी’ खुला. उनकी कविता की कुछ् पंक्तियों ने जैसे पुराने ज़ख्मों को ताज़ा कर दिया....शुक्र है कि शुक्र की छुट्टी होने पर भी विजय ऑफिस चले गए किसी ज़रूरी काम से... और बेटा अभी सो रहा है...बहते दर्द को रोका नहीं....बेलगाम सा, बेतरतीब सा गालों पर बहने दिया...जो मेरे ही दामन को भिगोता रहा...

दर्द, छटपटाहट, बेबसी के ज्वालामुखी में पूरा बदन पिघलने लगा... आँखें अँगारे सी जलने लगीं... कानों में बार बार कोई जैसे  पिघलता लावा डाल रहा हो... कुछ देर के बाद ही गहरी उदासी और शिथिलता ने जकड़ लिया...दिल भारी हो गया.. गले में कुछ अटकने सा लगा और उस दर्द में आँखें धुँधली होने लगी...एक दर्द का सैलाब उमड़ आया जो सँभाले नहीं सँभला...

एक मासूम से बच्चे को दर्द से जूझते हुए देख कर कैसे कह दूँ कि  ‘अपने ही कर्मों के फल का अभिशाप’ है....सिर्फ 12 साल का बच्चा जिसे बेसब्री से ‘टीन’ में जाने का जोश था...जिसे अभी किशोर जीवन की सारी मस्तियों का मज़ा लेना था... उसे एक अंजाने से दर्द ने जकड़ लिया था...
ठंडी साँस लेकर लोग कहते.....पिछले कर्मों का फल है....अपने कर्मों का फल है... इस अभिशाप को कैसे टालोगे.... यह तो भुगतना पड़ेगा....मेरा मन ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगता.... कैसा अगला पिछला जन्म...जो है बस यही है...यही एक जन्म है...जो दुबारा नहीं मिलेगा....सब जन्मों का हिसाब किताब बस इसी जन्म में ही हो जाता है ....

अगर ऐसा भी है तो उस अबोध बालक को क्या बतलाऊँ .... अपने किन कर्मों का अभिशाप है ये दर्द....नहीं........यह अभिशाप नहीं......जैसे माता-पिता अपने बच्चों को जानबूझ कर तकलीफ़ नहीं पहुँचाते तो फिर भगवान ऐसा क्यों करेंगे.... कोई न कोई कारण तो रहता ही होगा.....
बेटा दर्द में छटपटाते हुए पूछता – वाय मीईईई....... वाय मम्मीईई....वाय मीईईई... मैं ही क्यों ..मुझे ही क्यों यह दर्द  मिला....!!!!!
मुस्कुरा कर कहती कि अभी आकर बताती हूँ और बाथरूम जाकर खूब रोकर दिल को काबू  में करती और एक नई मुस्कान के साथ आकर उसके पास बैठ जाती......

”बेटा, क्या तुमने अपने आपको कभी आइने में देखा है..कितनी प्यारी मुस्कान है तुम्हारी...भगवान तुम्हारी इसी मुस्कान पर फिदा हो गए...तुम्हें अपना खास बेटा मान लियाजिन पर वह ज़्यादा हक मानता है उन्हें ही अपने ख़ास ख़ास कामों के लिए चुन लेता है.”

अपनी तारीफ सुनकर बेटा मुस्कुरा दिया...”मम्मी, आप बहुत चालाक हो और बातें भी खूब बनाती हो.””नहीं नहीं...सच कह रही हूँ ..सुनो कैसे... उन्हें तुम पर पूरा भरोसा है कि इस दर्द में भी तुम मुस्कुराते रहोगे... अपने दूसरे कमज़ोर बच्चों को हौंसला और हिम्मत देने के लिए तुम्हें उनके सामने खड़ा करना चाहते हैं जो छोटे छोटे दुख - दर्द से रोने लगते हैं...तुम्हें दर्द में मुस्कुराते देख कर अपना दर्द भूल जाएँगे.......”
बीच बीच में वह अपने घुटने को दबाता , दर्द को पीता हुआ मेरी बातें सुनता जाता... अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता... मेरे रुकने पर फिर कह देता... “मम्मी यू आर क्लेवर, बहुत चालाक हो.. बातें बनाना तो आपसे कोई सीखे...”. मैं भी कहाँ रुकती...झट से कह दिया.... “अरे भगवानजी ज्यादा चालाक हैं इसी बहाने तुम्हारा टेस्ट भी ले रहे हैं कि तुम दर्द में भी मुस्कुराते रहोगे या रोना शुरु कर दोगे..”
मासूम आँखों में एक अजीब सी चमक देखी जिसने मेरे दिल पर मरहम लगा दिया..

क्रमश....   

15 टिप्‍पणियां:

रचना ने कहा…

dard kaa rishta gehra hotaa haen

Arvind Mishra ने कहा…

क्या हुआ है ?

ZEAL ने कहा…

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मिनाक्षी जी ,

आपका संस्मरण पढ़ा । मन बेहद उदास हो गया । छोटे से बच्चे का असहनीय दर्द रुला गया। उसके दुःख में दुखी माँ का आंसुओं में सराबोर चेहरा और छटपटाता हुआ व्यथित ह्रदय महसूस किया।

आपने किसके बारे में लिखा है ? क्या आपके बच्चे को कोई तकलीफ है ? आपके बारे में ज्यादा नहीं जानती इसलिए पूछा । यदि कुछ अनुचित पूछ लिया हो तो माफ़ कर दीजियेगा।

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Sunil Kumar ने कहा…

मर्मस्पर्शी संस्मरण अगर यह काल्पनिक है तो बधाई काश! यह काल्पनिक ही हो !

Udan Tashtari ने कहा…

मंशा कतई ऐसी न थी कि आपका दिल दुखे..अनजाने में पंक्तियाँ आपकी पीड़ा को जगा गई....मुझे एक अपराध बोध ने जकड़ लिया है...

अनेक शुभकामनाएँ.....

क्या कहूँ....

शारदा अरोरा ने कहा…

dard jaise jeeta jaagta saamne aa gayaa ...maarmik

rashmi ravija ने कहा…

आज दिन भर व्यस्त थी......जिन ब्लॉग का जिक्र किया है आपने अभी पढना बाकी है.....अभी पहला ब्लॉग आपका ही पढ़ा
मन भर आया....माँ का ह्रदय ही जानता है...उसपर क्या बीतती है...जब अपने आपको असहाय पाती हैं और कलेजे के टुकड़े का दर्द हर नहीं पाती.

ऐसे ही हौसला बनाए रखें....बेटे की मुस्कान...माँ के सहस पर ही निर्भर है..

किलर झपाटा ने कहा…

आपने रुला दिया।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Kramshah padh kar dukh huaa, agla kab padhne ko milega.?

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क्या ब्लॉगों की समीक्षा की जानी चाहिए?
क्यों हुआ था टाइटैनिक दुर्घटनाग्रस्त?

Shabad shabad ने कहा…

मीनाक्षी जी ,
नमस्कार !
आपके ब्लाग पर पहली बार आना हुआ .....आपने तो रुला ही दिया ! कितना दर्द ..! उफ़ क्या कहूँ ?
आभार
हरदीप सन्धु

मीनाक्षी ने कहा…

आप सबको अपनी व्यथा कथा से दुखी करने का कोई इरादा नहीं था...
पर्दानशीं दर्द जब कभी भी बेपर्दा हुआ...जज़्बातों की तेज़ आँधी के चलते हुए हुआ...इंसान की यही कमज़ोरी उसे अपनी ही नज़रों में शर्मिन्दा कर देती है.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

समझा जा सकता है इस दर्द को। पर जो कुछ भी है उस के लिए कठोर हो कर मुकाबला तो आप को ही करना होगा। हम आप के कष्ट में आप के साथ हैं।

Satish Saxena ने कहा…

वाकई यह दर्द असहनीय होता है ....काश यह इस मासूम की वजाय हमें मिला होता तो सह लेने में कष्ट नहीं होता ! हाल में अपनी बेटी के कष्ट के लिए बरसों बाद मंदिर जाकर, ईश्वर से उसका दर्द माँगा था ! हम तो झेल लेंगे पर यह मासूम ....
शुभकामनायें आपको और इस मासूम को !

shikha varshney ने कहा…

जाने कैसे भटकते हुए आपकी इस पोस्ट तक आ गई और अब कुछ लिखना मुश्किल हो रहा है..आपके दर्द को समझ सकती हूँ पर हौसला देने के लिए शब्द नही मिल रहे.

बेनामी ने कहा…

बात तो सही है
'ऊपर वाला' पक्का टेस्टिंग करता है जी, कभी कभी

वरुण को मेरी शर्त याद ही होगी?
देखते हैं कब मिलता है मौक़ा