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गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

जन्मदिन मुबारक हो माँ ...!




दुलारी अपने माँ बाबूजी की आखिरी संतान और सातवीं बेटी थी ...सारे घर की लाडली....दुलारी के पैदा होने से पहले से ही दूर के एक रिश्तेदार आते..हर बार एक लड़की का नाम ले लेते कि इसे बहू बना कर ले जाऊँगा....दुलारी की माँ हँस पड़ती..अरे भई पहले बेटा तो पैदा करो फिर बहू की सोचना....पंडितजी तो धुन के पक्के थे ...उन्हे तो पक्का विश्वास था कि इसी घर की बेटी उनके घर की बहू बनेगी.....
एक दिन ईश्वर ने पंडितजी की सुन ही ली... लाखो मन्नतो के बाद बेटा पैदा हुआ... अपने नाम को सार्थक करेगा... अपने पिता का नाम रोशन करेगा...सोच कर नाम रखा गया ओम.... उधर ओम के पैदा होने के बाद तोषी और दो साल बाद दुलारी का जन्म हुआ...
पडितजी बहुत खुश थे.....अपने सात साल के बेटे ओम को लेकर फिर गए दुलारी की माँ से मिलने... दुलारी की माँ की मेहमाननवाज़ी पूरे खानदान मे मशहूर थी.... चाय नाश्ते का इंतज़ाम किया...फिर इधर उधर की बाते होने लगी.... नन्हा ओम गली के दूसरे बच्चों के साथ गुल्ली डंडा खेलने में मस्त हो गया.... लाख बुलाने पर भी खाने पीने की चीज़ों पर नज़र तक न डाली....
दुलारी अपनी दो साल बडी बहन तोषी के साथ लडको को खेलते देख रही थी...ओम के पिता ने जैसे ही दोनो
लडकियो को देखा ... लपके अपने बेटे ओम की तरफ.... ‘अच्छा बेटा ...बता तो सही तू किससे शादी करेगा.... ‘
दो बार बताने पर भी कुछ न बोला ओम....शायद उसे शादी का मतलब ही पता नहीं था.....पडितजी कहाँ कम थे...
झट से बोले...’अच्छा तो ऐसा कर...दोनो मे से जो तुझे अच्छी लगती हो उसके सिर  पर डंडा रख दे... ओम ने एक पल दोनो को देखा और दुलारी के सर पर डंडा रख छुआ कर भाग गया फिर से खेलने....
बस इस तरह हो गई बात पक्की....दुलारी और ओम की.....दुलारी ने अभी दसवीं पास ही की थी कि उधर से शादी की जल्दी होने लगी..पंडितजी को लगा कि वे ज़्यादा दिन ज़िन्दा नहीं रहेंगे...इसलिए दुनिया से छह महीने पहले कूच करने से पहले ही झट मंगनी पट शादी कर दी...
दोनो बँध गए जन्मजन्म के बँधन में.... तीन बच्चे हुए... दो लडकियाँ ...एक लडका...मिलजुल कर सुख दुख साथ साथ बाँट कर चलते रहे.... ज़िन्दगी के ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर दोनो एक साथ बढते रहे आगे.... बच्चों को उनकी मंज़िल तक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोडी..... सब अपने अपने घर परिवार में सुख शांति से खुश थे .... ओम और दुलारी जानते थे कि बच्चे हर मुश्किल का डट कर सामना करेंगे..... 
एक दिन ज़िन्दगी जीने की जंग मे ओम हार गए.... रह गई अकेली दुलारी .... जीने की चाहत न होने पर भी जीना....मुहाल था...लेकिन बस नहीं था.... मन को मुट्ठी मे कस कर बाँधे दुलारी जीने के हर पल की कोशिश में जुटी है....


बुधवार, 27 अप्रैल 2011

ईरान का सफ़र 4 (रश्त, रामसार)


(सन 2002 में पहली बार जब मैं अपने परिवार के साथ ईरान गई तो बस वहीं बस जाने को जी चाहने लगा. एक महीने बाद लौटते समय मन पीछे ही रह गया. कवियों और लेखकों ने जैसे कश्मीर को स्वर्ग कहा है वैसे ही ईरान का कोना कोना अपनी सुन्दरता के लिए जन्नत कहा जाता है. अपने दर्द को पीकर जीना यहाँ के लोगों को आता है इसलिए भी जन्नत है..  
सफ़र की पिछली किश्तों में ईरान का सफ़रईरान का सफ़र 2 ईरान का सफ़र 3 अपने दिल के कई भावों को दिखाने की कोशिश की है...)
गूगल द्वारा


तेहरान से निकले तो लगा था कि अभी 300किमी का लम्बा सफ़र कार से तय करना है... मैं और विद्युत तो
ठीक थे... वरुण को देखा कि शायद उसे थकावट होगी लेकिन वह भी खुश ही दिखाई दिया...अली अंकल के साथ कार में आगे बैठने में उसे और भी मज़ा आ गया... रास्ते में एक बार भी रुकने के लिए नहीं कहा....गाज़विन रुकने के बाद फिर चाय के लिए शाम को ही रुके...

चाय और बिस्कुट की छोटी सी दुकान... बड़ी सी केतरी (केतली) स्टोव पर उसके ऊपर काली चाय की कूरी (छोटी केतली) ...शीशे के छोटे छोटे गिलासों में फीकी काली चाय और साथ में दो तीन टुकड़े गेन्द के... गेन्द चीनी या शक्कर ही है जो बेतरतीब से टुकड़ों में थी...मुँह में रखी और घूँट लिया ईरानी चाय का....पहला घूँट लेते ही ताज़गी महसूस हुई..... अपने यहाँ की दूध की चाय से बहुत हल्की...
डूबते सूरज की लाल स्याही ने जैसे आसमान को रंग दिया हो


चाय खत्म करते उससे पहले ही दिन खत्म हो गया.... सलोनी साँझ ने चारों ओर के नज़ारे को और भी खूबसूरत बना दिया था...हल्की हल्की ठंड़ी हवा गालों को थपथपा रही थी... एक ठंडी झुरझुरी सी हुई... फौरन कार में जा बैठे....
चलते चलते अब सिर्फ पहाड़ियों के काले साए दिखाई दे रहे थे.... उन पर कहीं कम तो कहीं ज़्यादा घरों में जलती रोशनी के कारण वे सभी तारों से टिमटिमाते दिखाई दे रहे थे...

रश्त से 30 किमी पहले इमामज़ादा हाशिम की मस्जिद आती है.... जिसके बाहर दान बक्सा लैटर बॉक्स की तरह का दिखाई दे रहा था...अली ने रुक कर जेब से रियाल निकाले और हम सब को छूते हुए दानबक्से में डाल दिए... इस रास्ते से आते जाते अली कुछ पैसा दान के बक्से में डालने के लिए ज़रूर रुकते हैं....धार्मिक सोच नहीं बस दान करना है इस मकसद से.....बातों बातों में पता चला कि अपने जन्मस्थान करमशाह के यतीमख़ाने में किसी एक बच्चे के लिए हर महीने की मदद निश्चित की हुई है....
रश्त से 30किमी पहले इमामज़ादा हाशिम 


साढ़े सात हम रश्त में दाख़िल हुए....उत्तरी ईरान के गिलान प्रांत का रश्त शहर समुन्दर से सात मीटर नीचे है और सबसे ज्यादा नमी वाला इलाका माना जाता है...रश्त शहर सबको आकर्षित करता है...ईरान के सभी राज्यों के लोग यहाँ छुट्टियाँ मनाने आते हैं...यहाँ की सिल्क फैक्टरी, धान के खेत...चाय की बागवानी... देखने लायक है... यहाँ के घर ईरान के बाकि राज्यों से अलग दिखते हैं...लाल स्लेटों की छतें और चौड़े बरामदे हर घर में दिखते हैं ..चाहे विला हो या फ्लैटस.....

लगभग सभी घरों की छतें लाल स्लेटों से बनी होती हैं

यहाँ भी ट्रेफिक का वही हमारे देश जैसा हाल दिखा...लेकिन यहाँ भी कारें और उनके ड्राइवर  एक दूसरे की भाषा समझते हैं...एकदम पास से निकल जाते हैं  या निकलने देते हैं...औरतें भी उसी तरीके से ड्राइवरिंग करते हुए दिखीं.....सड़कों पर सबसे ज़्यादा पेजो कार दिखीं...हर मोटर साइकिल पर आगे बड़ा सा शीशा देख कर अजीब सा लगा....

नए पुराने बाज़ारों को पार करते हुए आगे बढ़ रहे थे... सड़के के किनारे फुटपाथ पर लोगों की भीड़ पैदल ही चलती दिखाई दी...सभी औरतों ने ओवरकोट और स्कार्फ़ पहना था....ओवरकोट काले और नीले रंग के ही थे..कहीं कोई चटकीला रंग नहीं दिखा.... ओवरकोट जिसे यहाँ मोंटू कहा जाता है....कुछ का घुटनो तक और कुछ का घुटनों से नीचे था...काली पैंट या जींस के साथ..... बालों का डिज़ाइन दिखाने के लिए लड़कियों ने स्कार्फ़ से आधा सिर ही ढक रखा था....चौंकाने वाली बात यह थी कि लगभग दस में से आठ जवान लड़के लड़कियों के नाक पर बैंडेज थी... पूछने पर पता चला कि कुछ बच्चे नाक की सर्जरी करा कर दिखाने चाहते हैं कि वे दकियानूसी नहीं बल्कि नए ज़माने की सोच रखते हैं.....औरतें भी इस सोच को दिखाने के लिए आगे रहती हैं...आइब्रोज़ , लिप लाइनर और आई लाइनर की खूबसूरती के लिए टैटूज़ बनवाए जाते हैं....कुल मिलाकर कॉस्मैटिक सर्जरी यहाँ दीवनगी की हद तक का शौक है....

पार्किंग की कमी और चुस्त रहने के लिए लोग पैदल चलना ज्यादा पसन्द करते हैं...यूँ ही नज़र चली गई और देखा कि सबके जूते आरामदायक हैं जिसके कारण चलने  में कोई मुश्किल नहीं होती होगी...रियाद में तो बिल्कुल फैशन नहीं पैदल चलने का, बशर्ते कि डॉक्टर चलने की हिदायत दे तभी लोग सैर करते दिखाई देते हैं वह भी वहीं जहाँ सैर के लिए रास्ते बनाए हों...  दुबई में खूब लम्बी सैर हो जाती है चाहे मॉल हो या खुले बाज़ार हों...और अपने देश का तो कहना ही क्या....

कार बाज़ार से होती हई एक गली में मुड़ी और रुक गई... समझ गए कि घर आ गया है...घर पहली मंज़िल पर था...पहली मंज़िल की एक खिड़की खुली और लिडा ने नीचे झाँका.....लिडा और बेटा अर्दलान दोनों नीचे आ गए...
सभी एक दूसरे से गले मिले..... सामान लेकर ऊपर पहुँचे... घर के अन्दर घुसने से पहले जूते बाहर उतारे...
बेटे अर्दलान ने दरवाज़े पर रुकने के लिए कहा और एक फोटो खींच ली, उसके बाद से सोने तक उसने कई तस्वीरें खींची....

अर्दलान ने दरवाज़े पर ही रोक कर एक तस्वीर खींच ली 

 ताज़ा चाय और वहाँ की खास मिठाइयों के साथ स्वागत हुआ.....डिनर में वहाँ के पकवानों के साथ साथ अपने देश की काली उड़द की दाल भी बनी थी, उसे बनाने का तरीका वह इंडिया से सीख कर आई थी...एम.डी.एच का करी मसाले का इस्तेमाल किया गया था...हमारी तरह दाल सब्ज़ी को तड़का नहीं लगाया जाता...उबलती हुई दाल सब्ज़ियों और माँसाहारी भोजन में मसाले और टमेटो प्यूरी डाल दी जाती हैं...
डिनर टेबल पर - विद्युत की कला अर्दलान के चेहरे पर.. 

लगा ही नहीं कि किसी अजनबी देश में हैं या अजनबी लोगों से मिलना हो रहा है... हालाँकि अर्दलान कुछ झिझक रहा था, उसे अंग्रेज़ी बिल्कुल नहीं आती थी लेकिन फिर भी उसे अपने पर यकीन था कि जल्दी ही वरुण विद्युत के साथ बात करते हुए सीख लेगा....

डिनर के बाद ताज़े फल और एक बार फिर चाय का दौर चला... संगीत को लगातार बज ही रहा था लेकिन रोचक बात यह थी कि हिन्दी गीत बज रहे थे..... उस वक्त तय किया गया कि अगले ही दिन रामसार चलेंगे...खासकर वरुण के लिए... गर्म पानी के चश्मे में नहाना सेहत के लिए तो अच्छा है ही , वहाँ की खूबसूरती भी देखने लायक है..... 

अगले दिन निकले रामसार की ओर....अली लिडा के दोस्त मारी और उसके पति बच्चों सहित एक खास जगह पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे.... अपनी अपनी कार में दोनों परिवार निकल पड़े रामसार की ओर.... आसपास की खूबसूरती देख कर हम दंग रह गए....कुदरत की इस खूबसूरती से दुनिया बेखबर है.....हरे भरे पहाड़...पाम, ओक और नारंगी के पेड़ों से लदे पहाड़....दूर दूर तक फैले रंगबिरंगे फूलों का बिछौना.....न कंकरीट का जंगल...न इंसानों की भीड़...खामोश खूबसूरत कुदरत को जैसे यहाँ सुकून मिल रहा हो....


रश्त से निकलते 

रामसार मज़न्दरान जिले का बहुत ही खूबसूरत शहर है...यह शहर अलबोर्ज पहाड़ियों, गर्म पानी के चश्मे,  और आखिरी शाह के म्यूज़ियम(मूज़ेह ख़ाक ए शाह) के कारण मशहूर है....

अलबोर्ज पर्वत श्रृंखला अज़रबाइजान और अर्मेनिया से होती हुए पूर्व की ओर तुर्कमेनिस्तान और अफगानिस्तान तक चली जाती है....तेहरान से निकलते हुए जब गाजविन पहुँचते हैं तो अचानक ही कुदरत अपना रूप बदल लेती है.... अलबोर्ज 
पहाड़ियों की खूबसूरती देखते ही बनती है...

अलबोर्ज की पहाड़ियाँ 

यहाँ के गर्म पानी के चश्मे सेहत के लिए अच्छे माने जाते हैं.... अली ने औरतों और अपने लिए अलग अलग हमाम बुक करवा लिए..औरतें एक तरफ चली गईं और आदमी बच्चों के साथ दूसरी तरफ चले गए... बहुत गर्म पानी था... लेकिन कुछ ही पलों में सारी थकान एक दम दूर और गज़ब की उर्जा शक्ति की महसूस हुई.....

कहा जाता है कि पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा प्राकृतिक रेडियोधर्मिता (natural radioactivity)  रामसार में पाई जाती है.... सेहत पर बुरा असर होते नहीं देखा गया है बल्कि यहाँ के लोगों की सेहत और अच्छी पाई गई..इसलिए यहाँ गर्म पानी के चश्मे स्पा के रूप में लोग अपने और पर्यटकों के लिए प्रयोग करते हैं.

रामसार में गर्म पानी का चश्मा (स्पा) 

नहाने के बाद दोपहर के खाने के लिए वहाँ से बाहर निकले....कुछ देर में एक रेस्तराँ में पहुँचे जहाँ बिना देर किए ही टेबल पर खाना लग गया...खाने से पहले अखरोट, चीज़, हरे पत्ते , अखरोट और अनारजूस के पेस्ट में जैतून और वहाँ की रोटी संगक रखी जाती है, रोटी में चीज़, अखरोट का टुकड़ा और हरा पत्ता रख कर उसे लपेट कर खाया जाता है.... कभी जैतून डाल कर खाया जाता.... दोनों ही तरीकों से खाना एक नया अनुभव तो था ही... स्वाद भी बढिया लगा....उसके बाद मेन कोर्स का खाना आता है....अब यहाँ मेनकोर्स में क्या खाया...शाकाहारियों का ध्यान रखते हुए इस पर चर्चा नहीं करते....
उसके बाद म्यूज़िम देखने का प्रोग्राम बना..हालाँकि वरुण थक चुका था फिर भी चुप रहा... म्यूज़ियम पहुँच कर थोड़ा घूम फिर कर वहीं के रेस्तराँ में बैठ गया.....हम सब भी जल्दी ही वापिस लौट आए... अखरोट और दालचीनी से भरे बिस्कुटों के साथ चाय पी और घर की ओर लौटे.....

आख़िरी शाह के म्यूज़ियम के बाहर 

छोटे बेटे विद्युत के साथ लिडा की दोस्त मारी

अभी रास्ते में ही थे कि लिडा की मम्मी का फोन आ गया कि कल हम सब उनके यहाँ पहुँचे डिनर के लिए....उन्हें ना करने का तो कोई सवाल ही नहीं था...मारी और फरज़ाद भी अपने घर आने की दावत दे चुके थे....लिडा की एक और दोस्त कियाना का भी फोन आ चुका था.....बड़े बुर्ज़ुगों का प्यार और आशीर्वाद तो स्वाभाविक होता है लेकिन दोस्तों के दोस्तों का प्यार और सत्कार पाकर हम मंत्रमुग्ध हो गए...अगले दिन लिडा के मॉमान बाबा को आने का वादा करके घर पहुँचे..घर पहुँच कर ताज़ी चाय और फलों के साथ साथ लिडा की पसन्द के हिन्दी गीत सुने........

अगली बार सफर की कुछ और यादों के साथ मिलते हैं फिलहाल अभी इतना ही...ख़ानाबदोश ज़िन्दगी है..पुरानी तस्वीरें मिलना मुश्किल लगा फिर भी कुछ तस्वीरें जुटाने में कामयाब हो गए...
कैसा लगा यहाँ तक का सफ़र ज़रूर बताइएगा.....  

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

ईरान का सफ़र 3

Source Unknown
ज़िन्दगी के सफ़र के अनुभव ही मेरी धरोहर हैं.... सफ़र के हर पड़ाव पर कुछ न कुछ सीखा और अपनी यादो में सहेज कर रख लिया......सफ़र की उन्हीं यादों को यहाँ उतारने की हर कोशिश बेदिली से शुरु हुई शायद.. या  बार बार कोई न कोई रुकावट आती रही ज़िन्दगी में.... जिस कारण लिखना मुश्किल होता रहा.. .... हर बार आधे अधूरे सफ़रनामे लिख कर बीच में ही छोड़ दिए...इस बार मन ही मन निश्चय किया कि ब्लॉगजगत के इस विशाल समुन्दर में अपनी ब्लॉग नैया को एक नए विश्वास के साथ उतारना ही है...कोशिश न की तो अफसोस रहेगा....आज उसी कोशिश की शुरुआत है.....बिना आलस , बिना डरे लेखन की पतवार ली और खेने लगे अपनी ब्लॉग नैया को......

हालाँकि कहा जाता है कि किसी भी सफर को समय पर लिखित रूप में दर्ज कर लिया जाए तो अच्छा रहता है...  फिर भी पूरी कोशिश करूँगी कि पुरानी यादों को उसी खूबसूरती से यहाँ सजा सकूँ .....ईरान के सफ़र  की दो पोस्ट लिख चुकी हूँ लेकिन वह तो सिर्फ भूमिका ही थी....विस्तार तो अभी देना बाकि था.... इस  सफ़र का हर सफा खूबसूरत है....  

 मेरे लिए बहुत ज़रूरी है  अपने लोगों को उस देश के आम लोगों के दिल की खूबसूरती दिखाना ...अलग देश, धर्म , जाति, भाषा , खानपान और रहनसहन के दो इंसानों में  कुछ पलों की दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो जाएगी सोचा नहीं था... लेकिन दो दोस्त ही नहीं बने ... दोनों के परिवारों में भी उतना ही प्यार मुहब्बत हुआ...... 


पहली पोस्ट -
मानव मन प्रकृति की सुन्दरता में रम जाए तो संसार की असुन्दरता ही दूर हो जाए। प्रकृति की सुन्दरता मानव मन को संवेदनशील बनाती है। हाफिज़ का देश ईरान एक ऐसा देश है जहाँ प्रकृति की सुन्दरता देखते ही बनती है। सन 2002 में पहली बार जब मैं अपने परिवार के साथ ईरान गई तो बस वहीं बस जाने को जी चाहने लगा। एक महीने बाद लौटते समय मन पीछे ही रह गया।

दूसरी पोस्ट -
ईरानी लोगों का लखनवी अन्दाज़ देखने लायक होता है. हर बार मिलने पर झुक कर सलाम करते-करते बहुत समय तक हाल-चाल पूछना हर ईरानी की खासियत है. 'सलाम आगा'-सलाम श्रीमान् 'सलाम खानूम'-सलाम श्रीमती 'हाले शोमा चतुरी?'-आपका क्या हाल है? 'खूबी?'-अच्छे हैं, 'शोहरे शोमा खूबी?'- आपके पति कैसे हैं?, 'खानूम खूबे?'- श्रीमती कैसी हैं?', 'बच्चेहा खूबी?'-बच्चे ठीक हैं? 'खेली खुशहाल शुदम'- बहुत खुशी हुई मिलकर 'ज़िन्दाबशी' – लम्बी उम्र हो,

पहली पोस्ट में लिखा था कि विजय ऑफिस के किसी काम से रियाद ही रुक गए थे.. ईरान के लिए पहली बार  विजय के बिना ही  दोनों बेटों के साथ  पहुँची  थी.. तेहरान एयरपोर्ट पर दोस्त अली पहले से ही इंतज़ार में खड़े थे....यहाँ बता दूँ कि अली और लिडा को पहले अपने देश में मिल चुके थे... दोनों की इच्छा थी ताजमहल देखने की ...उस सफ़र के सफ़े को फिर कभी खोलूँगी.....

कार में सामान रख कर निकले अगले सफ़र के लिए.....तेहरान से रश्त 300 किमी की दूरी कार से तय करनी थी.....रास्ते में बर्फबारी हुई तो छह सात घंटे भी लग सकते थे.....हरे भरे पहाड़.... उनमें से निकलती खूबसूरत लम्बी चौड़ी सड़कें.... बीच बीच में लम्बी लम्बी सुर्ंगे... जिनमें से गुज़रते हुए कार की लाइटस ऑन करनी पड़ती थी.... अपना कश्मीर भी कम खूबसूरत नहीं है...लेकिन एक नए अंजान देश की खूबसूरती भी मन मोह रही थी....

रास्ते में छोटे छोटे शहर आए... सड़क के किनारे अलग अलग चीज़ों से सजी दुकानें मन में उत्सुकता जगा रही थीं कि क्या क्या रखा होगा उनमें....अब पहली बार आना हुआ था सो थोड़ी झिझक भी हो रही थी कि पूछें या नहीं.....हम अभी सोच ही रहे थे कि उन्होंने खुद ही बतलाना शुरु किया...

"शीशे और प्लास्टिक की बोतलों में सिरका है और उनमें साबुत लहसुन है... जितना पुराना होगा उतना ही दवा का काम करेगा..फारसी में सिरका को सिरकेह कहते हैं और लहसुन है सीर.. .कुछ बोतलों में अखरोंट और अनार जूस के पेस्ट में बिना गुठली के जैतून हैं"..अखरोट को गेर्दु कहते हैं लेकिन अनार और जैतून हमारी भाषा जैसे ही हैं.... .दिल किया अभी खरीददारी शुरु कर दें...लेकिन कार रुकवाएँ कैसे.... खैर चुपचाप सुन कर मन ही मन कल्पना कर रहे थे करके कि कैसा स्वाद होगा.....

कार में ईरानी गीत बज रहे थे जिन्हें सुनकर दिल और दिमाग को एक अजीब सा सुकून मिल रहा था...हालाँकि बोल कुछ कुछ ही समझ आ रहे थे लेकिन कुल मिला कर ईरानी संगीत ने दिल को छू लिया.....

 सफ़र के नए सफे के खुलने तक  फिलहाल उस सफ़र के दौरान का हमारा सबसे पसन्दीदा गीत सुनिए.....

pouya - safar.mp3





रविवार, 24 अप्रैल 2011

आफ़ताब और अज़ान








आज भी हर रोज़ की तरह खिड़की से बाहर उगते सूरज को देखा....साथ ही नज़र गई मस्जिद की ऊँची मीनार पर ...जाने क्यों उस खूबसूरत नज़ारे ने दिल मोह लिया...झट से कैमरे में कैद कर लिया उस खूबसूरती को .
मन में कुछ भाव उठे.....जी ने चाहा कि आप संग बाँटू उन भावों को इसलिए उतार दिया यहाँ ..... 

मस्जिद की ऊँची मीनार..... आफ़ताब के निकलने से पहले ही जाग जाती है.... हर रोज़...पाँच वक्त आवाज़ देकर हमें भी जगाती है.....जैसे कहती हो फज़र हुई... सूरज के आने से पहले उठो.... नया सवेरा हुआ...उस शक्तिपुंज का नाम लो जिसने यह दुनिया  बनाई... दिनचर्या शुरु करो.... 
दोहर होते ही ऊँची मीनार फिर से आवाज़ देकर हमें काम रोक कर आराम करने का सन्देश देती है..... सब तरफ ख़ामोशी..... फुर्सत के पल..... उन पलों में खो न जाएँ..इसलिए  असर के वक्त आवाज़ आती कि उठो उठो ....फिर से काम शुरु करो.... तब तक काम करो जब तक सन्ध्या न हो जाए... 
उधर सूरज डूबा इधर महगरिब की अज़ान होती है.....यह आवाज़ सन्देश देती है कि साँझ हुई...अब घर की ओर चलो....अपने अपने घर पहुँच कर सब मिल जुल कर सारे दिन का लेखा जोखा सुनो सुनाओ....एक साथ बैठ कर रात का खाना खाओ.....अगले दिन की तैयारी में जुट जाओ...  

मीनार से आखिरी आवाज़ सुनाई देती ईशा की......आज के सब काम सम्पन्न हुए.... शुक्र करो उस शक्ति का जिसने हमें मानव के रूप में इस धरती पर उतारा..... और फिर नए दिन की खूबसूरत शुरुआत की आशा लेकर मीठे सपनों की नींद में डूब जाओ......
बचपन तो लगभग ऐसा ही था....स्कूल जाने के लिए सुबह सवेरे उठ कर तैयार होना... मम्मी और दादी के भजनों की  आवाज़ कानों में पड़ती तो एक अजीब सा सुकून मिलता.....स्कूल में दोपहर का खाना खाने से पहले हाथ धोकर भोजन मंत्र पढ़े जाते.... सन्ध्या का दीप जलता तो पूरे परिवार के साथ मिल कर  आरती गाई जाती ... सूरज डूबने से पहले खाना तैयार हो जाता.... आठ बजते ही चटाई बिछाकर सब एक साथ रसोई में बैठ कर साथ साथ खाना खाते.... घर के बाहर गली में सैर करते हुए स्कूल और ऑफिस की बातें करते... सब कुछ अब जैसे सपने सा हो गया है लेकिन मीठे सपने सा....

आफ़ताब और अज़ान






आज भी हर रोज़ की तरह खिड़की से बाहर उगते सूरज को देखा....साथ ही नज़र गई मस्जिद की ऊँची मीनार पर ...जाने क्यों उस खूबसूरत नज़ारे ने दिल मोह लिया...झट से कैमरे में कैद कर लिया उस खूबसूरती को .
मन में कुछ भाव उठे.....जी ने चाहा कि आप संग बाँटू उन भावों को इसलिए उतार दिया यहाँ ..... 
 
मस्जिद की ऊँची मीनार..... आफ़ताब के निकलने से पहले ही जाग जाती है.... हर रोज़...पाँच वक्त आवाज़ देकर हमें भी जगाती है.....जैसे कहती हो फज़र हुई... सूरज के आने से पहले उठो.... नया सवेरा हुआ...उस शक्तिपुंज का नाम लो जिसने यह दुनिया  बनाई... दिनचर्या शुरु करो.... 
दोहर होते ही ऊँची मीनार फिर से आवाज़ देकर हमें काम रोक कर आराम करने का सन्देश देती है..... सब तरफ ख़ामोशी..... फुर्सत के पल..... उन पलों में खो न जाएँ..इसलिए  असर के वक्त आवाज़ आती कि उठो उठो ....फिर से काम शुरु करो.... तब तक काम करो जब तक सन्ध्या न हो जाए... 
उधर सूरज डूबा इधर महगरिब की अज़ान होती है.....यह आवाज़ सन्देश देती है कि साँझ हुई...अब घर की ओर चलो....अपने अपने घर पहुँच कर सब मिल जुल कर सारे दिन का लेखा जोखा सुनो सुनाओ....एक साथ बैठ कर रात का खाना खाओ.....अगले दिन की तैयारी में जुट जाओ...  

मीनार से आखिरी आवाज़ सुनाई देती ईशा की......आज के सब काम सम्पन्न हुए.... शुक्र करो उस शक्ति का जिसने हमें मानव के रूप में इस धरती पर उतारा..... और फिर नए दिन की खूबसूरत शुरुआत की आशा लेकर मीठे सपनों की नींद में डूब जाओ......
बचपन तो लगभग ऐसा ही था....स्कूल जाने के लिए सुबह सवेरे उठ कर तैयार होना... मम्मी और दादी के भजनों की  आवाज़ कानों में पड़ती तो एक अजीब सा सुकून मिलता.....स्कूल में दोपहर का खाना खाने से पहले हाथ धोकर भोजन मंत्र पढ़े जाते.... सन्ध्या का दीप जलता तो पूरे परिवार के साथ मिल कर  आरती गाई जाती ... सूरज डूबने से पहले खाना तैयार हो जाता.... आठ बजते ही चटाई बिछाकर सब एक साथ रसोई में बैठ कर साथ साथ खाना खाते.... घर के बाहर गली में सैर करते हुए स्कूल और ऑफिस की बातें करते... सब कुछ अब जैसे सपने सा हो गया है लेकिन मीठे सपने सा....


बुधवार, 20 अप्रैल 2011

रेत में डूबा रवि










प्याला हो जैसे
रेत में डूबा रवि
आधा भरा सा


धूल के कण
पत्तों पर पसरे 
चमकीले से 


सिर चढ़ती
धूल है नकचढ़ी
चिड़चिड़ी सी  

धूल ही धूल 
हवा तूफ़ानी तेज़
दम घुटता

धूसर पेड़ 
धूल भरी शाखाएँ
पत्तों पे गर्द 

नभ ने ओढ़ा
धरती का आँचल 
मटमैला सा 


मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

‘सॉरी’ कहने में सच्चाई दिख रही थी.


‘मैम,,,आपने पलट के जवाब नहीं दिया...क्यों?’ पोस्ट को लिखने का कोई न कोई कारण रहा होगा...उस पर ज़िक्र की ज़रूरत नहीं है...... बहरहाल इस पोस्ट पर आई टिप्पणियों को पढकर लगा कि उस घटना से जुड़ी दो और घटनाओं का ज़िक्र भी करना चाहिए.....वैसे भी आजकल रियाद में पुरानी यादों ने पूरी तरह से घेर रखा है.... पीछा ही नहीं छोड़तीं....
चार छात्र जो  हिन्दी पढने के लिए बैठे थे...उनमें से एक छात्र को तीन दिन पहले एक अंग्रेज़ी अध्यापक के साथ बुरा बर्ताव करने पर बहुत बुरी तरह से डाँटा गया था.... उसके बाद भी उसने उन अध्यापक से सॉरी नहीं कहा था,,,,सभी बच्चों के मुताबिक टीचर की गलती थी......
हुआ यह था कि कोर्स पूरा कराने के लिए उन्होंने चार पीरियड एक साथ पढ़ाने की सोची....पढ़ाने के बाद जब वे दूसरी क्लास में पहुँचे तो वहाँ पिछली क्लास के एक छात्र को देख कर भड़क गए कि कैसे इसने बंक किया....बस आव देखा न ताव कॉलर पकड़ कर क्लास से बाहर ले आए और.... “हाऊ डेयर यू.... यू ब्ल.....बा.....तुम लोगों के लिए सिर खपाओ और तुम ऐश करो” कह कर उसे लगा दिए दो तमाचे.....गुस्से में और मारते उससे पहले ही लड़के ने हाथ पकड़ लिया....बस फिर क्या था..... तहलका मच गया.....
तब्बू टीचर का भी रवैया कुछ ऐसा ही रहता है.... बच्चे अपमानित महसूस करते हैं और गुस्से में कुछ का कुछ कर बैठते हैं......
“कोई भी टीचर क्लास के अन्दर दाखिल हों तो खड़े होकर विश करना ज़रूरी है...हर रोज़ कहती हूँ फिर भी कान पर जूँ नहीं रेंगती........अपने सहकर्मी के लिए बुरा भला सुनकर कहना चाहती थी....’माइंड योर ऑन बिज़नेस’ ... उस वक्त अगर कुछ भी कहती तो बच्चों के भन्नाए दिमाग पर कोई असर नहीं होता सो चुप्पी लगाना सही समझा था .......
बच्चों को काम देकर मैं स्टाफरूम चली गई थी... एक घंटे बाद जब वापिस आई तो सभी लड़के एक साथ बोल उठे..... “सॉरी मैम.... वी आर रीयली सॉरी... आपसे हमें ऐसे नहीं बोलना चाहिए था....”
मुझे उनके ‘सॉरी’ कहने में सच्चाई दिख रही थी.... जानती हूँ आजकल के बच्चे हमारी हरकतों की ज़रूरत से ज़्यादा स्क्रूटनी करते हैं....उन्हें सब समझ आता है....यह अलग बात है कि जो उन्हें भाता नहीं या जिसका लॉजिक समझ नहीं आता उसे नज़रअन्दाज़ कर देते हैं....
उनमें से एक चुपचाप नज़रें नीची किए खड़ा रहा...उसके पास पहुँची.....’क्या हुआ शोहेब... समथिंग इज़ बॉदरिंग यू? प्लीज़ शेयर विद मी...’ पूछने पर धीरे से बोला....’मैम... डू यू थिंक आई शुड गो टू इंग्लिश टीचर एंड से सॉरी...?’
सुनकर मुझे जितनी खुशी हुई ...उसकी कोई इंतहा नहीं थी.... 

रविवार, 17 अप्रैल 2011

मैम.. आपने पलट के जवाब नहीं दिया...क्यों ?


’बस भी करो, जल्दी आओ स्टाफरूम में...सारा साल पढे नहीं तो अब क्या तीर मार लेंगे....’ आदत से मजबूर तब्बू ऊँची आवाज़ में बोलती हुई इधर ही आ रही थी... 
मैं मुस्करा रही थी लेकिन लड़कों के चेहरों के बदलते रंग भी देख रही थी...राघव कुछ कहते कहते चुप रह गया.... चारों छात्र सिर झुकाए अपनी अपनी किताबों पर नज़र गड़ाए चुप बैठे रहे....
दसवीं के क्लास रूम में तब्बू दाखिल हुई, मेरे साथ ही सीनियर सेक्शन को सोशल पढ़ाती थी....हम दोनों एक ही स्टाफरूम में बैठते थे.. उसे अनदेखा करके बच्चों के सिर नीचे ही झुके रहे... 
एक टीचर को विश न करना अच्छा तो नहीं लगा लेकिन उस वक्त डाँटना भी सही नहीं लगा सो चुप लगा गई....

उधर तब्बू बोले जा रही थी.....’इन पर मेहनत करके कुछ नहीं मिलेगा...इन्हें तो बस टीचर को बिज़ी करने का बहाना चाहिए.....और पैरेंटस को बेवकूफ बनाने का....तुम्हें बड़ा शौक है अपना वक्त इन पर बरबाद करने का’

‘तुम चलो....मैं अभी आती हूँ बस दस मिनट और’ मुस्कुराते हुए हल्की आवाज़ में कहा.....

‘टेबल लग चुका है.... सब तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे हैं, जल्दी आओ’ कह कर वह निकल गई....

तब्बू के बाहर निकलते ही शोहेब से रहा नहीं गया..... ‘वाय मैम...वाय... होऊ कैन यू बीयर हर?’

(विदेशों के बाकि स्कूलों का तो पता नहीं लेकिन यहाँ के स्कूलों में टीचर और स्टूडैंट्स में बहुत अपनापन होता है. टीचर, अभिवावक और दोस्त सभी उन्हें एक ही टीचर में चाहिए..... वन इन वन इंट्रैक्शन - जिससे वह उन सभी अभावों को भूल पाएँ जो अपने देश में आराम से पा सकते हैं.)

राघव भी बोल उठा...’ मैम... तब्बू टीचर आपको इतना कुछ कह गईं और आपने पलट के जवाब नहीं दिया...क्यों’
चुप रहने वाला जमाल भी बोल उठा... ‘कम से कम हमारे लिए ही बोलना था.....दसवीं बोर्ड के एग्ज़ाम्ज़ में तो सभी टीचर हैल्प करते हैं.’
राघव बड़े दार्शनिक अन्दाज़ में बोला....’मैम, यू शुड लर्न हाऊ टू से ‘नो’’ सच कह रहा हूँ ....आप कभी किसी भी स्टूडैंट को ‘ना’ नहीं बोलतीं...’ 
’हाँ मैम...आज अगर स्टाफ पार्टी थी तो मना कर देतीं....’ अमित बोला.
राघव ‘सॉरी मैम’ कह कर उठ गया....उसी के साथ ही बाकि तीन बच्चे भी सॉरी कहते हुए उठ खड़े हुए...

अच्छी तरह से जानती थी कि तब्बू कभी किसी स्टूडैंट को एक्स्ट्रा नहीं पढ़ाती और न ही नोटस बनाने या चैक करने में मदद करती...बिन्दास वह शुरु से ही थी....बिना सोचे समझे किसी के लिए भी कभी भी कुछ भी कह देती.... कुछ लोग बहस करने से रोक नहीं पाते लेकिन कुछ चुप लगाना सही समझते ..... खासकर मुझे तो समझ नहीं आता कि रिऐक्ट किया कैसे किया जाए....!  
मन ही मन गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन जाने क्यों उस वक्त मैं कुछ बोल न पाई....कभी कभी अपने आप पर ही मन खीजता है कि एक दम पलट कर वैसी ही तीखी प्रतिक्रिया क्यों नहीं कर पाती...

लेकिन जो अपने आप को कंट्रोल नही कर पाते और बात को तूल दे देते हैं... उन्हें इच्छा होती है कि काश वे अपने आप को काबू में कर पाएं.....
दरअसल दोनों तरह के रिएक्शन ही गलत हैं....सही वक्त पर सही जवाब देना और नज़ाकत समझ कर चुप रहना....दोनों तरह का संतुलन बनाना ज़रूरी होता है.....

बच्चों के साथ दोस्ताना बर्ताव मुझे उनकी दुनिया में घूमने की इजाज़त दे देता है.... सरल मन के बच्चे सहज भाव से दोस्ती कर लेते हैं और अपने मन के अंजाने कोनों को भी दिखाने में झिझकते नहीं... खेल खेल में बहुत कुछ सीखना सिखाना हो जाता है....बस यही कारण है कि सख्ती से पेश आने की बात कभी सोची ही नहीं....

जाने अनजाने यही आदत धीरे धीरे व्यक्तित्त्व का हिस्सा बन गई शायद !  


शनिवार, 16 अप्रैल 2011

स्मृति-दंश














ख़ाली आँखें
रेगिस्तान अपार
वीरानापन

पीछा करती
सपनों के हैं साए
छूना है बस

स्वप्न सलोना
पा लूँगी इक दिन
विश्वास भरा

खुश्बू प्यार की
महकते हैं प्राण
खिला जीवन

स्वर्णिम पल
मिलन अलौकिक
स्मृति-दंश



शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

फिर जन्मे कुछ त्रिपदम (हाइकु)














शब्दों की कमी
समझ लेंगे सब 
भाव है मुख्य 

सपना प्यारा
मुख मासूम दिखा
भूल न पाऊँ 

बाँहों का घेरा
है मनचाही कैद
न्यारा बंधन

जादुई हाथ 
चाह स्पर्श की जागी
हरते पीड़ा 

प्यासे अधर 
अमृत रसपान
तृष्णा मिटती 


मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

मेरे त्रिपदम (हाइकु)

क्षमा चाहिए
त्वरित वेग था वो
बाँध लिया है

होती गलती
सुधार भी संभव
आधार यही

नित नवीन
सोच के फूल खिलें
महकें बस

दम घुटता
तोड़ दे पिंजरे को
मन विकल


कल न पड़े
मन-पंछी आकुल
उड़ना चाहे



शनिवार, 9 अप्रैल 2011

अपने को बदलो....बदलाव नया इक आएगा....

अन्नाजी अनशन पर बैठे सपना सुन्दर लेकर

इक दिन ऐसा आएगा जब होगा भष्ट्राचार खत्म ....

होगा लोकपाल बिल पास, बंद होगा बेईमानी का खेल

भ्रष्टाचारी नेता जाएँग़ें जेल, जनता में जागी इक आस......


टीवी के हर चैनल में खबर यही थी...

अखबारों में भी चर्चा इसकी थी......

बेटा टीवी देख रहा था, सोच में अपनी डूब रहा था...

पापा से बोला.....

बिजली पानी का मीटर डायरेक्ट लगा है....

गेट हमारा सरकारी सड़क पर बना है....

हाउसटैक्स क्या भरा हुआ है...इंकम टैक्स .....

बात काट के पापा चिल्लाए......

चुप कर.....तू तो बच्चा है .... अक्ल का कच्चा है...

तू क्या जाने , समझेगा कैसे.....

दसवीं में पढ़ता हूँ , कुछ कुछ समझ रहा हूँ

सहमा सहमा सा बेटा समझ न पाया

पापा क्यों चिल्लाए...


मुझसे बोला, माँ सीख हमेशा देतीं तुम कहती हो

अपने को बदलो....बदलाव नया इक आएगा....


बदलेगा सब कुछ बाहर भी........



अनशन पर बैठे अन्नाजी क्या सब कुछ बदल सकेंगे.....

अनशन खत्म हुआ तो भी क्या कुछ बदलेगा..... !!!!!


सोच रही हूँ बस...... बस सोच रही हूँ ........ !

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

या तो दीवाना हँसे या अल्लाह जिसे तौफ़ीक दे


          पिछली पोस्ट को याद करते हुए सोचा कि अपना जन्मदिन प्यारे प्यारे मुस्कुराते बच्चों की तस्वीरों के साथ मनाया जाए......



किसी शायर ने सही कहा है ----

 “या तो दीवाना हँसे या अल्लाह जिसे तौफ़ीक दे
वरना इस दुनिया में आकर मुस्कुराता कौन है. 

 

 

यह है शरारती आर्यान, जानता है कि भारत के लोगों को नमस्ते करके आशीर्वाद लिया जाता है.



यकीन मानिए चपाती बनाने का हुनर काबिले तारीफ है... यह ईरानी नानुवा जो नान ए हिन्द बेहद पसन्द करता है.

 
छोटे भाई के बच्चे नन्ही नटखट ऑनेला के साथ सयाना समर्थ


छोटी बहन की बेटी आरुषी कहती है पोज़ बनाना कोई मुझसे सीखे


  छोटा बेटा विद्युत बचपन से ही अदाकार... 
                                                

अदाकारी भी और कलाकारी भी

 

 

 
बड़ा बेटा वरुण भागता तो कोई पकड़ न पाता  


कहता है अब मैं मस्ती करने के मूड में हूँ