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मंगलवार, 15 जनवरी 2008

फुर्सत के पल यादों के मोती बने !! 2



सुबह सवेरे सूरज की किरणें नीचे उतरीं और हम भी ट्रेन से नीचे उतरे. जम्मू पहुँच चुके थे , पता चला कि श्री नगर की बस कुछ ही देर में श्रीनगर के लिए निकलने वाली है. हमने जल्दी-जल्दी नाश्ता किया और बस में चढ़ गए. मैं फट से खिड़की वाली सीट पर आकर बैठ गई.
हरी भरी वादियों में बलखाती काली चोटी सी सड़क पर बस दौड़ रही थी. बहुत दूर के पहाड़ों पर कहीं कहीं थोड़ी बहुत बर्फ थी जिसे कभी कभी बादल आकर ढक देते थे. नीचे नज़र जाए तो गहरी खाइयों में पतली रेखा सी नदी बस के साथ साथ ही भाग रही थी. प्रकृति के सुन्दर नज़ारों को मन में बसाते हुए पता ही नहीं चला कि कब बस श्रीनगर के लाल चौक पर आकर रुक गई. जीजाजी पहले ही बस स्टेशन पर खड़े हमारा इंतज़ार कर रहे थे. मित्र को धन्यवाद देकर हम घर की ओर रवाना हुए.
अभी सूरज पहाड़ों के ऊपर था और कुछ ही देर बाद नीचे भी उतर गया. शाम का गहराता साँवला रंग और गहरा होता गया. उस साँवले रंग में अनोखी सी खुशबू जो मस्ती में डुबो रही थी. उसी मस्ती में मैंने घर तक ताँगे पर जाने की इच्छा जताई तो फट से सुन्दर सी घोड़ा गाड़ी सामने आ खड़ी हुई. ताँगे पर बैठ कर घर तक जाने का भी एक अलग मज़ा था. आधे से कुछ ज़्यादा बड़ा चाँद साथ साथ चल रहा था लेकिन तारे ऐसे दिख रहे थे जैसे अपनी अपनी जगह खड़े टिमटिमा कर बस टुकुर टुकुर देख रहे हों. मैं आकाश में इतने सारे तारों को देखकर हैरान थी क्योंकि दिल्ली में इतने तारे तो कभी दिखाई नहीं देते.
बीस मिनट में घर पहुँच गए थे. दीदी और नन्हा सा पारस जिसे हम प्यार से सोनू कहते हैं, गेट पर खड़े थे. गेट तक पहुँचते कि एक तेज़ खुशबू का झोंका साँसों के साथ अन्दर उतर गया. देखती क्या हूँ कि गेट के आसपास लाल लाल गुलाब के फूल खिले हैं. मैंने लपक कर सोनू को गोद में ले लिया, दीदी हैरान थी कि बिना रोए मेरी गोद में नन्हा सा खरगोश मुझे देखे जा रहा है.

अगली सुबह का सूरज सोनू की प्यारी मुस्कान के साथ चमका. उसके बाद तो कश्मीर की सैर शुरु हुई तो कभी न खत्म होने वाली यादों का सिलसिला बन गई. डल लेक में शिकारे की सैर , नगीन लेक और वुलर लेक ऐसी हैं जैसे झीलों की सड़कें बनीं हों और शीशे से साफ जिसमे छोटे छोटे पत्तों का स्पष्ट प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है. चश्माशाही का स्वास्थ्यवर्धक शीतल जल, निशात बाग, शालीमार गार्डन के रंग-बिरंगे खुशबूदार फूल, सोनमर्ग, खिलनमर्ग के हरे भरे मैदान .... शंकराचार्य मन्दिर से पूरे श्रीनगर के रूप को निहारना. इन सब की सुन्दरता पर तो महाग्रंथ लिखा जा सकता है.

खूबसूरत वादियों के जादू ने मुझे स्वप्नलोक पहुँचा दिया. सपनों का सुन्दर लोक दिल और दिमाग पर ऐसी छाप छोड़ चुका था जिसे भुला पाना आसान नहीं था.

आज एक विशेष भाव जो मन में आ रहा है कि उस वक्त अगर मम्मी डैडी ने मुझे अकेले कश्मीर आने की इजाज़त न दो होती तो क्या मेरे लिए ऐसी खूबसूरत यादों को सहेज पाना संभव हो पाता ! !


9 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर व मधुर यादें बहुत ही काव्यात्मक शैली में बतायी है आपने ।
घुघूती बासूती

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है। सचित्र। आंखों के सामने तस्वीर उभर आती है

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

MEENAKSHI JEE AAPNE TO SHABDON KE SAHARE HAMEN BHEE KASHMIR GHUMA DIYA. UN PALON KO MOTI NA KAHIYE, MOTI SE MULYAWAAN TO HEERA HOTA HAI.
FURST KE PAL YAADON KE HEERE BANE.

MERE PC ME AAYEE KISI TAKNIKI KHARABEE KI WAJAH SE HINDI ME TIPPANI NA KAR PANE KA DUKH HAI.

mamta ने कहा…

आपने तो हमे दुबारा कश्मीर घुमा दिया। यादें शायद इसीलिए होती है सहेज कर रखने के लिए।

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

वाह..! सच में यादें बहुत खूबसूरत हैं.....!

Sanjeet Tripathi ने कहा…

घुघूती जी ने सच कहा, यादें सुंदर है ही पर लेखन शैली ज्यादा सुंदर है!

बेनामी ने कहा…

आप सबका धन्यवाद.. सहेजी यादें को खोला तो मन पीछे ही चला गया..पोस्ट को छोटी रखने की चिंता में लगा कि बहुत कुछ अनकहा रह गया :)

विवेक रस्तोगी ने कहा…

बहुत ही सुँदर व साहित्यिक शैली में लिखा है, बधाई आपको..

रंजू भाटिया ने कहा…

सुंदर ....जम्मू तो मेरा शहर रहा है ..इसको पढ़ के कई यादे ताजा हो आई श्रीनगर की भी ..बहुत सुंदर लिखा है आपने !!