नए साल में छुटकारा कैसे पाऊँ उससे ? लिखने का एक मुख्य कारण मेरा स्वार्थ है. मीर साहब और शेख साहब कहा करते थे कि दुयाओं में गज़ब का असर होता है. मीर साहब रियाद स्कूल में उर्दू के उस्ताद थे और शेख साहब हिन्दीविभाग के अध्यक्ष हुआ करते थे. आजकल दोनो रिटायर हैं और कभी कभी दूसरे मित्रों से उनके बारे में हालचाल मालूम कर लेते हैं. रियाद में रहते हुए एक बात पर अटल विश्वास हो गया था कि परिचित अपरिचित सभी जब एक दूसरे के लिए दुआ माँगते हैं तो उसका गहरा असर होता है. इन दुआओं का असर होते मैंने खुद देखा था अपने पर, अपने बेटे पर और उन दुआओं का असर आज भी दिखाई देता है.
होता यह है कि जब हम दूसरों के लिए बिना स्वार्थ दुआ माँगते हैं तो एक पल के लिए अपने स्वार्थों को भूल कर दूसरे के हित के लिए, उसके कल्याण की कामना करते हैं. उस पल में किसी दूसरे के लिए की गई प्रार्थना असर कर जाती है. भाव-तरंगें शक्ति-पुंज बन कर सकारात्मक रूप में उस तक पहुँचने लगती हैं जिसके लिए प्रार्थना की गई है.
बस इसी विश्वास ने मुझे स्वार्थी बना दिया. नए वर्ष में ब्लॉगर परिवार से भी शुभकामनाएँ और दुआएँ पाने का लालच रोक न पाई.
वरुण की प्रेयसी पीड़ा के विषय पर फिर कभी चर्चा करेंगे अभी तो आप अपने परिवार के साथ 2007 के बचे कुछ घण्टों को नए वर्ष के आने तक खुशी खुशी मनाइए.
हम यहाँ दोनो बेटो के साथ और विजय दमाम से अंर्तजाल पर आभासी दुनिया में मधुर संगीत का आनन्द लेते हुए पुराने साल को अलविदा करते नए वर्ष का स्वागत करेंगे.
एक बार फिर सबको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
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सोमवार, 31 दिसंबर 2007
रविवार, 30 दिसंबर 2007
कैसे रोकूँ, कैसे बाँधू जाते समय को
कैसे रोकूँ, कैसे बाँधू जाते समय को
जो मेरे हाथों से निकलता जाता है.
कैसे सँभालूँ, कैसे सँजोऊँ बीती बातों को
भरा प्याला यादों का छलकता जाता है.
विदा करती हूँ पुराने साल को भारी मन से
नए वर्ष का स्वागत करूँ मैं खुले दिल से !!
क्षण-भँगुर जीवन है यह
हँसते हुए गुज़ारना !
रोना किसे कहते हैं यह
इस बात को बिसारना !
काम, क्रोध, मद, लोभ को
मन से है बस निकालना !
झूठ को निकृष्ट मानूँ
सच को सच्चे मन स्वीकारूँ !
जैसे लोहा लोहे को काटे
छल-कपट को छल से मारूँ !
त्याग, सेवा भाव दे कर
असीम सुख-शांति मैं पाऊँ !
कोई माने या न माने
प्रेम को ही सत्य मानूँ !
मानव-स्वभाव स्वयं को ही नहीं मायाकार को भी चमत्कृत कर देता है. आने वाले नव वर्ष में जीवन धारा किस रूप में आगे बढ़ेगी कोई नहीं जानता.
सबके लिए शुभ मंगलमय वर्ष की कामना करते हैं.
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007
मीरा राधा की राह पे चलना
पवन पिया को छू कर आई
पहचानी सी महक वो लाई.
गहरी साँसें भरती जाऊँ
नस-नस में नशा सा पाऊँ.
पिया प्रेम का नशा अनोखा
पी हरसूँ यह कैसा धोखा.
पिया पिया का प्रेम सुधा रस
मीत-मिलन की जागी क्षुधा अब.
सजना को देखूँ सूरज में
वो छलिया बैठा पूरब में.
चंदा में मेरा चाँद बसा है
घर उसका तारों से सजा है.
मेघों में मूरत देखूँ मितवा की
घनघोर घटा सी उनमें घुल जाऊँ.
पिया मिलन की प्यास जगी है
दर्शन पाने की आस लगी है.
मीरा राधा की राह पे चलना
जन्म-जन्म अभी और भटकना !!
ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ
पहचानी सी महक वो लाई.
गहरी साँसें भरती जाऊँ
नस-नस में नशा सा पाऊँ.
पिया प्रेम का नशा अनोखा
पी हरसूँ यह कैसा धोखा.
पिया पिया का प्रेम सुधा रस
मीत-मिलन की जागी क्षुधा अब.
सजना को देखूँ सूरज में
वो छलिया बैठा पूरब में.
चंदा में मेरा चाँद बसा है
घर उसका तारों से सजा है.
मेघों में मूरत देखूँ मितवा की
घनघोर घटा सी उनमें घुल जाऊँ.
पिया मिलन की प्यास जगी है
दर्शन पाने की आस लगी है.
मीरा राधा की राह पे चलना
जन्म-जन्म अभी और भटकना !!
ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ
विषैला शिशु-मानव
प्रकृति का ह्रदय चीत्कार कर रहा विकास के हर पल में !
विषैला शिशु-मानव हर पल पनप रहा उसके गर्भ में !
नस-नस में दूषित रक्त दौड़ रहा
रोम-रोम तीव्र पीड़ा से तड़प रहा !
पल-पल प्रदूषण भी फैल रहा
शुद्ध पर्यावरण दम तोड़ रहा !
मानव-मन में एक दूसरे के लिए घृणा का धुँआ भर रहा !
रक्त नहीं बचा अब, सिर्फ पानी ही उसके तन में बह रहा !
मानव-मन संवेदनशीलता खोज रहा
कैसे पा जाए यही बस सोच रहा !
आशा है मानवता की आँखों में
आश्रय पाती मानव की बाँहों में !!
नास्तिक फिल्म मे कवि प्रदीप द्वारा गाया गया गीत 'कितना बदल गया इंसान' सुनकर जहाँ दिल डूबने लगता है वहीं दूसरी ओर हेमंत और लता द्वारा गाया इसी फिल्म का दूसरा गीत मन को हौंसला देता है.
कितना बदल गया इंसान
गगन झनझना रहा
विषैला शिशु-मानव हर पल पनप रहा उसके गर्भ में !
नस-नस में दूषित रक्त दौड़ रहा
रोम-रोम तीव्र पीड़ा से तड़प रहा !
पल-पल प्रदूषण भी फैल रहा
शुद्ध पर्यावरण दम तोड़ रहा !
मानव-मन में एक दूसरे के लिए घृणा का धुँआ भर रहा !
रक्त नहीं बचा अब, सिर्फ पानी ही उसके तन में बह रहा !
मानव-मन संवेदनशीलता खोज रहा
कैसे पा जाए यही बस सोच रहा !
आशा है मानवता की आँखों में
आश्रय पाती मानव की बाँहों में !!
नास्तिक फिल्म मे कवि प्रदीप द्वारा गाया गया गीत 'कितना बदल गया इंसान' सुनकर जहाँ दिल डूबने लगता है वहीं दूसरी ओर हेमंत और लता द्वारा गाया इसी फिल्म का दूसरा गीत मन को हौंसला देता है.
कितना बदल गया इंसान
गगन झनझना रहा
बुधवार, 26 दिसंबर 2007
सुनहरा अतीत गीतों में गुनगुनाता हुआ .....
आज पहली पोस्ट जो खुली रेडियोनामा की "फ़िज़ाओं में खोते कुछ गीत" जिसे पढ़कर लगा कि जहाँ चाह हो, वहाँ राह निकल आती है...
संयोंग की बात कि हमारे सिस्ट्म में कुछ पुराने गीतों का फोल्डर है जिसमें उषा जी का गाया हुआ 'भाभी आई' गीत है. सुर नूर लखनवी के हैं और संगीत दिया है सी रामचन्द्रन ने.
हालाँकि अन्नपूर्णा जी सुधा मल्होत्रा का गाया गीत सुनना चाहती हैं , इस बात की कोई जानकारे नहीं है हमें. फिलहाल इस गीत को सुनिए ..आशा करती हूँ कि आपको पसन्द आएगा.
संयोंग की बात कि हमारे सिस्ट्म में कुछ पुराने गीतों का फोल्डर है जिसमें उषा जी का गाया हुआ 'भाभी आई' गीत है. सुर नूर लखनवी के हैं और संगीत दिया है सी रामचन्द्रन ने.
हालाँकि अन्नपूर्णा जी सुधा मल्होत्रा का गाया गीत सुनना चाहती हैं , इस बात की कोई जानकारे नहीं है हमें. फिलहाल इस गीत को सुनिए ..आशा करती हूँ कि आपको पसन्द आएगा.
कपट न हो बस मै तो जानूँ !
तुम छल क्यों करते मैं न जानूँ
क्यों मन रोए मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !
निस्वार्थ भाव स्वीकार करें तुम्हे
तुष्ट न क्यों तुम मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !
नैनों में है नहीं हास मुक्त
वीरान हैं क्यों मन मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ
भाव ह्रदय के हैं अति शुष्क
पाषाण बने क्यों मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ
मुक्त हास से स्नेह भाव से
मुख दीप्तीमान हो इतना जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ
क्यों मन रोए मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !
निस्वार्थ भाव स्वीकार करें तुम्हे
तुष्ट न क्यों तुम मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !
नैनों में है नहीं हास मुक्त
वीरान हैं क्यों मन मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ
भाव ह्रदय के हैं अति शुष्क
पाषाण बने क्यों मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ
मुक्त हास से स्नेह भाव से
मुख दीप्तीमान हो इतना जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ
मंगलवार, 25 दिसंबर 2007
हाईबर्नेशन की अवस्था में ही सभी पर्वों पर शुभकामनाएँ !
when christmas comes to town
एक बार हाइब्रेशन की अवस्था में जाने पर शीत ऋतु में बाहर आने में एक सिहरन सी होती है. एक हफ्ता क्या बीता जैसे हम ब्लॉगजगत की गलियाँ ही भूल गए. बदहवास से इधर उधर देख पढ़ रहे हैं. "एक शाम ...ब्लागिंग का साइड इफेक्ट....नये रिश्तों की बुनियाद बन चुकी थी।" शत प्रतिशत सच है.
सोचा नहीं था कि हमारी मुलाकात को बेजी इतने सुन्दर रूप में यादगार पोस्ट बना देगीं.पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आया ही...टिप्पणियाँ पढ़कर आनन्द चार गुना और बढ़ गया. सोचने लगे कि हम इसी ब्लॉग परिवार का हिस्सा हैं और यह सोचकर अच्छा लगने लगा.
उस शाम के बाद हम पतिदेव विजय और उनके छोटे भाई की मेहमाननवाज़ी में जुट गए जो साउदी से ईद की छुट्टियाँ मनाने आए थे. इस बार ईद पर छोटे भाई साहब के कारण शाकाहारी व्यंजन परोसे गए नहीं तो कबाब और बिरयानी के बगैर ईद मनाने का मज़ा कहाँ !
ईद के बाद ईरानी परिवार के साथ ऑनलाइन चैट करके शब ए याल्दा मनाई गई. इस रात को सबसे लम्बी रात माना जाता है. इस रात दिवान ए हाफिज़ पर चर्चा होती है और उसी किताब से ही अपना फाल निकाला जाता है बस इतना ही मालूम है. एक शब ए याल्दा हम ईरान में बिता चुके हैं जिसकी मधुर यादें आज भी मस्ती में डुबो देती हैं. हमारे मित्र अली के बिज़नेस पार्टनर मुहन्दिस ज़ियाबारी हाफिज़ पर बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन फारसी में. अली और उनकी पत्नी लिडा बारी बारी से अंग्रेज़ी में बताते हैं. धीरे धीरे सुनने पर फारसी भी कुछ कुछ समझ आ ही जाती थी.
खुशियाँ लेकर क्रिसमस आया. मित्रों को बधाई देते हुए विजय अपने भाई को एक हफ्ते में दुबई की सैर भी करवाना चाहते थे सो हम भी उनका साथ देते हुए घूमते रहे पर दिमाग में ब्लॉग घूम रहे थे जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा था.
अब जाकर कुछ समय निकाल पाए हैं कि वापिस आभासी दुनिया में लौटा जाए.
नए साल में जाने से पहले पिछले साल को अलविदा करते हुए उसे कुछ देने की चाह....
विदाई का तोहफा !
क्या तोहफा दिया जाए हम इस सोच में डूबे हैं.
आप क्या कहते हैं !!!!
लब पे आती है दुआ ... !
एक बार हाइब्रेशन की अवस्था में जाने पर शीत ऋतु में बाहर आने में एक सिहरन सी होती है. एक हफ्ता क्या बीता जैसे हम ब्लॉगजगत की गलियाँ ही भूल गए. बदहवास से इधर उधर देख पढ़ रहे हैं. "एक शाम ...ब्लागिंग का साइड इफेक्ट....नये रिश्तों की बुनियाद बन चुकी थी।" शत प्रतिशत सच है.
सोचा नहीं था कि हमारी मुलाकात को बेजी इतने सुन्दर रूप में यादगार पोस्ट बना देगीं.पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आया ही...टिप्पणियाँ पढ़कर आनन्द चार गुना और बढ़ गया. सोचने लगे कि हम इसी ब्लॉग परिवार का हिस्सा हैं और यह सोचकर अच्छा लगने लगा.
उस शाम के बाद हम पतिदेव विजय और उनके छोटे भाई की मेहमाननवाज़ी में जुट गए जो साउदी से ईद की छुट्टियाँ मनाने आए थे. इस बार ईद पर छोटे भाई साहब के कारण शाकाहारी व्यंजन परोसे गए नहीं तो कबाब और बिरयानी के बगैर ईद मनाने का मज़ा कहाँ !
ईद के बाद ईरानी परिवार के साथ ऑनलाइन चैट करके शब ए याल्दा मनाई गई. इस रात को सबसे लम्बी रात माना जाता है. इस रात दिवान ए हाफिज़ पर चर्चा होती है और उसी किताब से ही अपना फाल निकाला जाता है बस इतना ही मालूम है. एक शब ए याल्दा हम ईरान में बिता चुके हैं जिसकी मधुर यादें आज भी मस्ती में डुबो देती हैं. हमारे मित्र अली के बिज़नेस पार्टनर मुहन्दिस ज़ियाबारी हाफिज़ पर बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन फारसी में. अली और उनकी पत्नी लिडा बारी बारी से अंग्रेज़ी में बताते हैं. धीरे धीरे सुनने पर फारसी भी कुछ कुछ समझ आ ही जाती थी.
खुशियाँ लेकर क्रिसमस आया. मित्रों को बधाई देते हुए विजय अपने भाई को एक हफ्ते में दुबई की सैर भी करवाना चाहते थे सो हम भी उनका साथ देते हुए घूमते रहे पर दिमाग में ब्लॉग घूम रहे थे जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा था.
अब जाकर कुछ समय निकाल पाए हैं कि वापिस आभासी दुनिया में लौटा जाए.
नए साल में जाने से पहले पिछले साल को अलविदा करते हुए उसे कुछ देने की चाह....
विदाई का तोहफा !
क्या तोहफा दिया जाए हम इस सोच में डूबे हैं.
आप क्या कहते हैं !!!!
लब पे आती है दुआ ... !
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