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| चित्र नेट द्वारा |
पिछले दो दिनों से तबियत कुछ ऐसी है कि आधी रात गहरी नींद में लगने लगता है जैसे दिल की धड़कन रुक जाएगी.. कोई खास बीमारी भी नहीं है जिस कारण चिंता हो .... .शायद थायरोएड....या फिर गालबलैडर में स्टोन...जो अभी दर्द ही नहीं देता तो उस तरफ कभी ख्याल ही नहीं गया....
आजकल अपने आप से ज़्यादा बातचीत होती है ...अपने आप से बात करने का कितना आनन्द है... कुछ भी ...कैसा भी... कह दो ....मन चुपचाप सुनता रहता है... दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गई...आधी रात के आसमान पर चाँद तारे दिखाई नहीं दे रहे थे...बादलों की या शायद धूल की हल्की चादर सी फैली थी... ठंडी हवा भी एक अजीब से सुकून के साथ बह रही थी...
यही हवा सूरज के सामने कैसे व्याकुल सी हो कर भागती है इधर उधर .... सूरज की याद आते ही रेगिस्तान में मृगतृष्णा की याद आ गई ... जो सूरज से जन्म लेती और उसी के साथ ही कहीं गुम हो जाती है....रात के काले साए याद दिलाते हैं कि वह तो एक खूबसूरत भ्रम होता है......जैसे ये दुनिया .... कितनी खूबसूरत है ...मेरी है....नहीं शायद ये दुनिया किसी की भी नहीं...फिर भी हम इस खूबसूरत भ्रम से कितना मोह करते हैं...मेरे विचार में मोह होना भी चाहिए... जब तक साँसों में गर्मी है......इस खूबसूरत भ्रम में ही जीने का आनन्द है.....
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| चित्र नेट द्वारा |
चंचल मन जाने कहाँ कहाँ दौड़ता है.....उसकी सोच की कोई सीमा नहीं...सोचने लगा ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाने के लिए दिन रात कोल्हू के बैल की तरह लगे रहते हैं... फिर मौत के स्वागत के लिए क्यों न कुछ तैयारी की जाए..
पहली बार जब ईरान गई थी तो वहाँ की खूबसूरती देख कर लगा था बस आखिरी नींद के लिए यही जगह जन्नत है..... लेकिन सोचते ही दम घुटने लगा कि धरती के नीचे कैसे रह पाऊँगी , कॉकरोचज से डर लगता है और नीचे तो जाने कैसे कैसे कीड़े मकौड़े होंगे, नहीं नहीं कुछ और सोचा जाए तब एक नई सोच ने जन्म लिया
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| चित्र नेट द्वारा |
घर के पास के शमशान घाट है , वहाँ जला दिया जाए तो सबको आराम रहेगा... कहीं दूर नहीं जाना पड़ेगा... फिर एक नई सोच ने जन्म लिया , एक मरे हुए इंसान के लिए पता नहीं कितने पेड़ों की हत्या करनी पड़ेगी..... उस पर घी तेल की अलग बरबादी...फिर प्रियजनों को तेज़ आग के आगे खड़ा होना पड़ेगा...कितनी गर्मी लगेगी उन्हें....जून जुलाई हुआ तो...
जल समाधि कैसी रहेगी... ओह... जी घबराने लगा सोच कर ..पानी से बहुत डर लगता है ... खास कर नदी और समुन्दर के किनारे पर खड़े होकर ही लगने लगता है कि जैसे उनकी अनदेखी बाहें अपनी ओर खींच रही हों... .एक बार अखबार में पढ़ा था कि निगम बोध घाट के आस पास के गाँवों की औरतों को, जो बच्चे पैदा करते हुए जान से हाथ धो बैठती .या किसी बीमारी के कारण बच्चे चल बसते उन्हें नदी में बहा दिया जाता था... अपने जाल में फँसे हुए मृत शरीरों के टुकडों को देख कर बेचारे मछुआरे दुखी हो जाते.... कभी कभी तो बड़ी मछली को देख कर जितना खुश होते... उससे ज़्यादा दुखी होते उनके अन्दर इंसान के अंगों को देख कर........
सैर करते करते सोच रही थी या सोचते सोचते सैर कर रही थी......वैसे मरने की तारीख तय कहाँ होती है... पता नहीं मौत भी क्यों हर बार ब्लाइंड डेट पर ही निकलती है......कितना अच्छा हो अगर पहले पता हो तो मरने से एक घंटे पहले तक सब काम निपटा लिए जाएं । अचानक बच्चों की तस्वीर आँखों के सामने आ गई ...बच्चो को देख कर पति याद आ गए.... पल भर में ही उनके मोहजाल ने जकड़ लिया .... पैरों से जैसे ज़मीन खिसकने लगी...शरीर में से सारी ताकत रुई के फोहों सी उड़ने लगी.....बच्चों के कमरे में आकर बैठ गई..... ध्यान हटाने के लिए नेट खोल लिया... अक्सर बच्चों की और कुदरत के नज़ारों की तस्वीरें देखना अच्छा लगता है और मन ठीक हो जाता है ....
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| ईरान (रश्त) |
मन चंगा तो कठौती में गंगा.... बस दिमाग में बिजली कौंधी...शरीर की एक दो बीमारी को छोड़ कर सब पुर्ज़े सही सलामत ही हैं.... चिकित्सा जगत में अगर कुछ काम आ सके तो इससे बढ़िया कोई बात नहीं... उसके बाद शरीर को गत्ते के डिब्बे में मलमल की चादर से लपेट कर आधुनिक बिजली शमशान ले जाया जाए....लकड़ी के साँचे में अपने आप को बँधना कतई पसन्द नहीं...सबकी अपनी अपनी पसन्द है...कास्केट या डिब्बा जिसमें आराम से लेटा जा सकता है....साधारण सा हो और उसपर बच्चे अगर कोई कलाकारी कर दें तो क्या कहना ....
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| चित्र नेट द्वारा |
बिजली शमशान के चैम्बर के अन्दर लगभग दो ढाई घंटे में ही 1400 से 1800 डिग्री फ़ॉहरनाइट तापमान में शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है.....अग्नि , वायु , धरती , आकाश और जलतत्व में से आत्मा कैसे कब और कहाँ जाती होगी.... यह पता ही नही चलता... शायद उस वक्त पता चले..... मिट्टी के कलश में अपने शरीर की मिट्टी को रखने की चाह ....फिर उसे कहाँ उड़ेला जाए... मन की इस चाह को न कहा जाए तो उसे शांत करने की राह कहाँ मिलेगी......
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| घर का कलश |
लेटिन भाषा में अफ़ीम को नींद लाने वाली वनस्पति "sleep-bringing poppy" कहा जाता है.....आखिरी नींद को ज़्यादा से ज़्यादा गहरी करने के लिए अस्थि कलश को अगर उन खूबसूरत खेतों में बिखेर दिया जाए तो कैसा रहे .....सदा के लिए गहरी नींद में डूब कर सपनों की दुनिया में रहना कितना आसान हो जाएगा... अफ़ीम का ज़िक्र करना अगर किसी को बुरा लगे तो माफ़ कीजिएगा ... क्यों कि दर्द निवारक औषधि ‘मॉरफिन’ बनाने के लिए अफ़ीम का ही इस्तेमाल किया जाता है....कुदरत की हर देन वरदान ही होती है, हम इंसान ही उसे अभिशाप बना देते हैं....
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| चित्र नेट द्वारा |
वाह ...जहाँ चाह ...वहाँ राह.. गूगल करने पर एक लिंक मिल ही गया ....
‘माई फंकी फ्यूनरल’..इसमे बहुत रोचक जानकारी है .... एक इंसान की राख से 240 पैंसिलें बन सकती हैं...बच्चे कलाकार है तो बरसों तक पैंसिलें इस्तेमाल करके याद करेंगे... वैसे देखा जाए तो सभी एक से बढ़कर एक आइडिया है लेकिन मुझे लिखने में , कलाकारी करने में इस्तेमाल किया जाए , यही आइडिया मन को भा गया....
आखिरी नींद की तैयारी हो गई , मन कितना हल्का सा हो गया , हाँ एक और आखिरी तैयारी
हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला मन्ना डे की आवाज में बजने लगे तो क्या कहना