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रविवार, 29 मई 2011

यही तो सच है......


पिछली पोस्ट 'आख़िरी नींद की तैयारी' जितनी बेफ़िक्री से लिखी थी ...टिप्पणियों ने उतना ही बेचैन कर दिया...सभी मित्रों से निवेदन है कि अपने मन से किसी भी तरह की शंका को निकाल दें कि हम निराशा के सागर में गोते खाते हुए इतनी लम्बी  पोस्ट लिख गए.... होश और हवास में खूबसूरत चित्र इक्ट्टे किए थे...
एक खूबसूरत  लिंक भी जोड़ा था लेकिन शायद किसी ने खोला भी न हो.......सबने सोच लिया कि मैं निराशा में डूबी किसी बात से दुखी हूँ ...... सुख दुख तो सबके साथ हैं ..... ज़िन्दगी जीने का  मज़ा ही दोनों के साथ है..... यकीन मानिए वह पोस्ट दुख , निराशा या मौत से डर कर नहीं लिखी थी... बल्कि सच में ही मौत के स्वागत की तैयारी करना अच्छा लगा सो लिख कर आप सबके साथ बाँट लिया....


आज नहीं इस विषय पर तो अक्सर सोचते हैं........बहुत पहले 2007 में ईरान में भी ऐसा कुछ सोचा था.. वहाँ से वापिस आने पर कुछ कहती उससे पहले ही जाने कैसे...वैसा ही कुछ ज़िक्र बेटे ने कर दिया......माँ हूँ इसलिए थोड़ा सा घबराई थी उसकी बात सुनकर ..... लेकिन फिर अपने आप को सँभाल लिया...."यही तो सच है मम्मी....." उस वक्त बेटे ने कहा था.....इस बार मेरी पोस्ट पढ़ कर पति ने भी वही कहा.... " बस यही तो सच है बाकि सब झूठ" और हॉंगकॉंग की बात बताने लगे.... जहाँ अवशेष रखने  के छोटे छोटे लॉकर रखने की जगह भी कम पड़ रही है....उन दिनों उड़नतश्तरी के समीरजी ने भी एक पोस्ट "जाओ तो ज़रा स्टाईल से " लिखी थी....

पिछली पोस्ट लम्बी हो गई थी...... इसलिए कुछ लिखना बाकि रह गया था..... :) चाह कर भी लिखने से रोक नहीं पा रही.... लिख ही देती हूँ .......आजकल बहुत कम लोग नीचे ज़मीन पर बैठ पाते हैं इसलिए पहले से ही सफ़ेद चादरों से सजे सोफ़े हों पर बैठने की व्यवस्था हो तो आराम से बैठ कर अफ़सोस कर पाएँगे सब ..... ख़ाने पीने का पूरा इंतज़ाम खुद के घर में ही हो.... बड़े बड़े शहरों में लोग एक दूसरे को हल्की सी मुस्कान तो दे नहीं पाते फिर खाने पीने का इंतज़ाम तो दूर की बात है.....

अपने दिल के नज़दीकी छोटे छोटे शहर याद आ गए जहाँ सालों बाद जाने पर भी अपनापन सा लगता है.... बल्लभगढ़ में ननिहाल ... अम्बाला में ससुराल...  एक बात समझ नहीं आती... अपने आप को छोटे शहर का कह कह कर क्यों छोटे शहर के लोग हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं..... जानते नहीं शायद...कि छोटे छोटे गिफ्ट पैक्स में बड़ी बड़ी कीमत वाले तोहफ़े होते हैं... सोना, चाँदी और हीरे जैसे दिल वाले लोग अपनी ही कीमत नहीं आँक पाते....

लिखते लिखते बचपन याद आ गया जब मम्मी जेबीटी की ट्रेनिंग के लिए पलवल गई और मुझे नानी के पास छोड़ गईं.... एक साल के लिए नाना नानी के पास रहना मेरे लिए ज़िन्दगी का बेशकीमती वक्त था....सूरज उदय होने से पहले और सन्ध्या होने पर नानी की आवाज़ में गीता का पाठ किसी अलौकिक दुनिया में पहुँचा देता....रात छत पर बिस्तर लगाना....नानी की गोद में सिर रखना.....तारे गिनते गिनते गीता के श्लोक पाठ और उसकी व्याख्या सुनना..... सब आज भी याद है.... शायद इसलिए भागवतगीता में ही जीवन जीने का सार दिखाई देता है.... आज बस इतना ही ......

बड़े बेटे वरुण ने बाँसुरी  पर दो अलग अलग धुनें बजाईं और उन्हें मिक्स कर दिया.... नाम दिया  (Disease and Rainbows)  विद्युत द्वारा ईरान में ली गई तस्वीरों के साथ  वरुण की धुन को मिला कर एक छोटी सी संगीतमय फिल्म बना दी. दोनों की इजाज़त से ही यहाँ पब्लिश कर रही हूँ ...  सुनिए  और  बताइए कैसी लगी यह फिल्म .......






21 टिप्‍पणियां:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

भावनाओं का पूरा समुद्र उडेल कर रख दिया है आपने। क्‍या कहें इस पढकर। बस यही कि मन भावुक सा हो गया है।

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मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
बदल दीजिए प्रेम की परिभाषा।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सूरज निकलने के पहले
पूरब में अरुणाई देखी
दिल से कोई आवाज निकली
और घाटियों को गुंजा गई!
दिल ने वही सुनी
तन-मन झंकृत हो उठे
दुनिया जाग उठी

Sunil Kumar ने कहा…

savere savere sundr dhun aaj ka din bhi achha hoga....

Satish Saxena ने कहा…

लगा तो ऐसा ही था ...
वैसे मेरे साथ भी ऐसी घटना घट चुकी है :-) ....
चलिए अच्छा है अब हम चिंतित नहीं हैं !
आभार !

Arvind Mishra ने कहा…

प्राणेर धुन !

Udan Tashtari ने कहा…

हम तो पहले से ही निश्चिंत थे.... :) अब और हो गये....


फिल्म देखी..सुन्दर धुन और संयोजन!!! बधाई बच्चों को

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waah

arbuda ने कहा…

बहुत प्यारी और आकर्षक धुन लगी। वरुण को बधाई। विद्युत तुमने भी खूबसूरत फोटोज़ ली हैं। तुमको रोलिंग स्टोन पर वोट दिया है, उम्मीद कर रही हूँ कि अच्छी खबर जल्दी मिले। गुड लक।
मीनाक्षी, मौत ही तो सच है और मुक्ति ही परम लक्ष्य। ये शरीर तो बंधन है या कह लें कि परम लक्ष्य को पाने की तैयारी का समय। मुझे पिछली पोस्ट में लगा कि रियाद की गर्मी और रुखी हवा बंजर हो रही है, आपके जज़्बे पर हमेशा यक़ीन रहा है। इस पोस्ट को पढ़ कर वो जज़्बा फिर साफ दिखने लगा है। आपके लिखने के पीछे कुछ न कुछ विशेष होता है, वो स्पष्ट हो गया।
भारत लौट आओ, जल्दी।

arbuda ने कहा…

बच्चे और हम बहुत याद करते है इसलिये भारत बुला रहे हैं।

निर्झर'नीर ने कहा…

aapki creativity ka javab nahi ..

aapne nanihal bata diya ..sasural bata diya ..lekin gaanv to bataya hi nahi ?

मीनाक्षी ने कहा…

@सुनीलजी...सब दिन अच्छे हो यही कामना है
@सतीशजी...कभी न कभी ऐसी भावना मन में आती है..
@मिश्राजी.आपकी संस्कृतनिष्ठ भाषा चमत्कृत कर जाती है..
@अर्बुदा,,अपने लिए तुम्हारा लिखा पढना अच्छा लगता है...बच्चों को तुम्हारा संदेश दूँगी..अपने देश आने के लिए तो हर पल तैयार .. :)

कविता रावत ने कहा…

pichhle post ka vistar bahut achha laga... beeten lamhen yun hi ubhar-ubhar kar man mein aati jaati hai..

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

डा० अमर कुमार ने कहा…

नहीं जी, कम से कम मैंनें तो आपकी पिछली पोस्ट का कोई अनर्थ न लिया ।
बरसों पहले ( शायद 1982 में ) एक अठन्नी के बदले किसी अनाम फ़कीर ने दुआ दी कि, " ज़िन्दगी में हमेशा मालिक को , और मौत को याद रखा करो, ताउम्र बिना कोई गलती किये सुखी रहोगे !" यह सूत्र मैंनें अपना लिया है, मुझे किसी बात से कोई भय नहीं लगता । एक दूसरा सूत्र और भी.. लेकिन वह यहाँ उतना प्रासँगिक नहीं है ।
आपके होनहार द्वय के चित्र व सँगीत सँयोजन उत्कृष्ट के आस पास कहीं पर ठहरे हुये हैं.. किन्तु चीकने पात दिख गये ।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

इस छोटी फिल्म का संगीत वास्तव में दो तरह के भाव मन में लाता है। जैसे कुछ अन्दर का हो और कुछ बाहर का।

Manoj K ने कहा…

खूबसूरत फिल्म... दोनों भाइयों को हमारी ओर से बधाई दीजियेगा.

हाँ मृत्यु ही सच है बाकि सब झूठ..

मनोज

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर चित्र और हृदयस्पर्शी धुन ..... दोनों बच्चो को बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत प्यारी धुन ...बच्चों को बधाई

डॉ .अनुराग ने कहा…

हुनरमंद है आपके दोनों बेटे .....कहते है भारत से बाहर रहने वाला हर समय नोस्टेल जिक रहता है ...आपको देखकर यकीन हो गया ....
ये बांसुरी वाकई उसने बजाई है ....अद्भुत है....उससे कहिये इसे छोड़े नहीं....अपने हुनर को ओर पोलिश करे ...

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

मीनाक्षी जी -सुख दुःख निराशा और आशा तो हमारी जिंदगी के अद्भुत रंग हैं किसी को काला किसी को हरा , सफ़ेद मिल जाता है कभी कभी ये मिल अद्भुत बन जाते हैं न जाने क्या क्या कह जाते हैं कभी डरा जाते हैं तो कभी मन को भा जाते हैं -सुन्दर लेख लिंक के साथ बेटे कि सुरीली बांसुरी -बधाई हों अद्भुत भाव से रूबरू करवाया

शुक्ल भ्रमर 5

Smart Indian ने कहा…

लाजवाब जुगलबन्दी!