मम्मी एक कहानी सुनाया करती थी , बया और बन्दर की... बचपन में ही नहीं.... किशोर हुए तब भी ...फिर यौवन की दहलीज पर पाँव पड़े तो भी वही कहानी... माँ हमेशा किसी कहानी , मुहावरे या लोकोक्ति के बहाने बहुत कुछ कह जाती....कभी कभी हमें बहुत गुस्सा आता कि सीधे सीधे कह लो... तमाचा लगा दो... लेकिन ऐसे भिगो भिगो कर ........ मारना कहाँ का न्याय है...
मन की बातें मन ही रह जाती...सच कहें तो उनकी बातों का असर भी बहुत होता....मजाल कि एक ही गलती फिर से हो जाए .... लेकिन होशियार रहने पर भी नई गलती अपने आप ही हो जाती... डैडी अक्सर पक्ष लेकर कहते ....इंसान तो गलतियों का पुतला है ......लेकिन उस वक्त मम्मी के सामने कोई ठहर न पाता... गलतियाँ भी तो कुछ कम न होतीं....उन्हें लगता हम बच्चे जानबूझ कर उन्हें सताने के लिए गलती करते हैं ... बार बार उनका दिल दुखाते हैं....... दुखी दिल से कभी कोई कहानी कहतीं तो कभी दोहा गुनगुना देतीं....
“बया पक्षी बड़े प्यार से अपने बच्चों के लिए घौंसला तैयार करता है ताकि भविष्य में आँधी तूफ़ान बारिश से बचा जा सके....एक एक तिनका चुनकर बड़े जतन से नीड़ तैयार करता है.... घौंसला तैयार होते ही अपने बच्चों के साथ सुख शांति से रहने लगता है..
एक दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी.....बया पक्षी को बाहर किसी बन्दर की बेचैन और परेशान करे देने वाली आवाज़ सुनाई दी.... उसने अपने घौंसले से बाहर झाँक कर देखा....एक बन्दर बारिश में भीग रहा था.... बारिश से बचने के लिए पेड़ की शाखाओं में छिपने की कोशिश कर रहा था...
बया को उसकी हालत पर तरस आ रहा था ...उससे रहा न गया .... अपनी तरफ से सहानुभूति जतलाते हुए उसने बन्दर से कहा कि अगर उसने भी समय रहते अपने लिए कोई ठौर ठिकाना बनाया होता तो आज उसे इस तरह तेज़ बारिश में भीगना न पड़ता और इधर उधर भटकना न पड़ता.... अपना घौंसला दिखाते हुए बया ने कहा कि समय रहते उसने मज़बूत घौंसला बना लिया और अब उसके बच्चे सुरक्षित हैं....बन्दर ने इसे अपना अपमान समझा , उसके अहम को चोट लगी...उसने गुस्से में आकर बया के घर को तोड़ दिया...”
बार बार सुनते सुनते कहानी जैसे अंर्तमन में रच बस गई है....
“सीख ऐसे को दीजिए , जाको सीख सुहाए,
सीख जो दीनी वानरा, तो घर बया को जाए !“
6 टिप्पणियां:
बिल्कुल जी...सीख उसी को देना चाहिये जो सीखना चाहे.
कहीं आप मुझे ही बन्दर तो नहीं कह रहीं है ?
अनावश्यक रूप से चिढ़ाने के अँदाज़ में मिलने वाली सीख से भला कौन खुश होगा ?
इस दृष्टाँत में मैं श्री बन्दर जी के साथ हूँ ।
बहुत सुन्दर कहावत है। अनावश्यक सीख देना संकट उत्पन्न कर देता है।
बहुत ही जरूरी सीख है...जिंदगी भर के लिए गाँठ बाँध लेनी चाहिए..
.बिन मांगे सलाह देना अक्सर बहुत महंगा पड़ जाता है...
बड़ों की बातें तभी समझ आती हैं जब हम उस उम्र में पहुँच जाते हैं। मेरी मम्मी भी कहावतें और लोकोक्तियाँ बहुत कहा करती थीं और उसके ज़रिये हमें समझाने की कोशिश भी करती थीं, पर तब सब हँसी, खेल लगता था। आज यह पोस्ट पढ़ कर उनकी बहुत याद आई।
अर्बुदा
यह कहानी मैंने भी पढ़ी हुई है ..सच सीख उसी को देनी चाहिए जो पाना चाहता हो वरना अपना ही नुक्सान हो जाता है ...प्रेरक पोस्ट
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